कोई आपका वीडियो या MMS चोरी से बना ले तो क्या-क्या सजा दिला सकते हैं आप?
इन दिनों दुनियाभर में साइबर अपराध, यौन शोषण और रिवेंज पोर्नोग्राफी के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं. इसके जरिए कुछ लोग अपने पर्सनल फायदे के लिए आसानी से इस्तेमाल भी कर सकता है. तो आप इस सभी तरह की घटनाओं से बचने के लिए और अपराधी को क्या-क्या सजा दिला सकते हैं इसके लिए पढ़ें हमारी पूरी रिपोर्ट.
आरती राय/नई दिल्लीः भारत ने पिछले दशक के दौरान साइबर अपराध और यौन शोषण (sextortion) की घटनाओं में अच्छी खासी बढ़त हुई है. या ये कहे की टेक्नोलॉजी के दिन रात बढ़ने के साथ ही सेक्सटॉर्शन यानी (ऐसे मामले जिनमें आमतौर पर एक ब्लैकमेलर शामिल होता है जिसके पास पीड़ित की निजी फिल्मों या तस्वीरों तक पहुंच होती है). वही दूसरी तरफ ऐसे मामलों में रिवेंज पोर्नोग्राफी (revenge pornography) काफी आम बात है.
रिवेंज पोर्नोग्राफी को हम आम शब्दों में कहे तो ब्लैकमेलर (blackmailer) पीड़ित को पर्सनल फोटोस और MMS के जरीए धमका भी सकता है और अपने पर्सनल फायदे के लिए आसानी से इस्तेमाल भी कर सकता है. कई मामलो में वीडियो-कॉलिंग ऐप्स के उपयोगकर्ता इस बात से अनजान होते है. उनकी वीडियो टेप रिकॉर्ड की जा रही है.
ऐसे फोन ऐप है. जो व्हाट्सएप ऑडियो और वीडियो चैट रिकॉर्ड करते हैं. लोगों के शिकार होने के सबसे आम कारणों में से एक है. ज्यादातर आम लोगों में ऐसे फोन ऐप्स और तकनीक-आधारित क्षमताओं के बारे में जागरूकता की कमी होती है. ऐसे एप्लिकेशन जिनकी किसी की फोन गैलरी (जैसे गेम, फोटो-एडिटिंग ऐप और सोशल नेटवर्क ऐप) की सभी सामग्री तक पहुंच होती है और फॉर्मेट किए गए फोन से डेटा रिकवर करने के लिए सिस्टम में इस्तेमाल लाए जाते है.
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क्या है साइबर क्राइम
टेक्नोलॉजी के इस काल में कम्प्यूटर और इंटरनेट की दुनिया जितनी ही फास्ट है उतनी ही खतरनाक भी है. टेक्नोलॉजी की स्पीड के साथ तकनीकी सहारे से बढ़ने वाला क्राइम भी बढ़ रहे है. आज के समय में कई क्रिमिनल्स जुर्म करने के लिए कम्प्यूटर, इंटरनेट, डिजिटल डिवाइसेज और वर्ल्ड वाइड वेब आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं.
ऑनलाइन ठगी या चोरी भी इसी श्रेणी का अहम गुनाह होता है. किसी की वेबसाइट का डेटा को चुराना ये सभी साइबर क्राइम की केटेगरी में आते हैं. वही किसी की परमिशन के बिना उसकी फोटो खींचना वीडियो बनाना और शेयर करना भी साइबर अपराध की केटेगरी में आता है .
साइबर क्राइम करने पर लगती हैं आईपीसीसी की ये धारा
साइबर क्राइम को लेकर देश का कानून बहुत सख्त है. सरकार ऐसे मामलों को लेकर बहुत गंभीर है. भारत में साइबर क्राइम के मामलों में सूचना तकनीक कानून 2000 और सूचना तकनीक (संशोधन) कानून 2008 लागू होते हैं. मगर इसी केटेगरी के कई मामलों में भारती य दंड संहिता (आईपी सी), कॉपी राइट कानून 1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून और यहां तक कि आतंकवाद निरोधक कानून के तहत भी करवाई की जा सकती है.
आज के समय में इंटरनेट के माध्यम से अश्लीलता का व्यापार भी खूब फलफूल रहा है. ऐसे में पोर्नोग्राफी एक बड़ा कारोबार बन गया है, जिसके दायरे में ऐसे फोटो, वीडियो, टेक्स्ट, ऑडियो और सामग्री आती है. जो यौन, यौन कृत्यों और नग्नता पर आधारित होती है. ऐसी सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक ढंग से पब्लिश करने, किसी को भेजने या किसी और के जरिए पब्लिश करवा ने या भिजवा ने पर पोर्नोग्राफी निरोधक कानून लागू होता है.
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चाइल्ड पोर्नोग्राफी
भारतीय कानून के तहत चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना अवैध माना जाता है. इसके तहत आने वाले मामलों में आईटी (संशोधन) का कानून 2008 की धारा 67 (ए), आईपी सी की धारा 292, 293, 294, 500, 506 और 509 के तहत सजा का प्रावधान है. जुर्म की गंभीरता के लिहाज से पहली गलती पर पांच साल तक की जेल या दस लाख रुपये तक जुर्मा ना हो सकता है, लेकिन दूसरी बार गलती करने पर जेल की सजा सात साल तक बढ़ सकती है.
भारतीय कानून के तहत ब्लैकमेलिंग से संबंधित प्रावधान (PROVISIONS)
• यदि किसी महिला की तस्वीर अश्लीलता से ली जाती है और उसकी जानकारी के बिना वितरित की जाती है. तो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (टेक्नोलॉजी एक्ट) की अन्य संबंधित धाराओं की मदद से आईपीसी की धारा 354c के तहत मामला भी बनाया जा सकता है.
• आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66E- गोपनीयता का उल्लंघन- किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसकी तस्वीरें खींचने या प्रसारित करने पर रोक लगाता है. ये धाराएं लड़की या महिला को गलत तरीके से और छिप कर फिल्माने पर लगाई जाती है.
• आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 67- अश्लील इलेक्ट्रॉनिक सामग्री प्रसारित करना- किसी को बदनाम करने के लिए चित्र या वीडियो साझा करना दंडनीय अपराध है.
• आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 67B– बाल अश्लीलता- यदि पीड़ित नाबालिग है. 18 वर्ष से कम उम्र का है.
• आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 67A– स्पष्ट यौन कृत्यों (सेक्सुअली एक्सप्लीकिट एक्ट्स) वाली इलेक्ट्रॉनिक सामग्री- वीडियो क्लिप रिकॉर्ड करने और साझा करने के लिए छिपे हुए कैमरों का उपयोग करना दंडनीय अपराध है. इन धाराओं में भी दोषी पाए जाने पर सजा का प्रावधान है .
जानिए क्या कहते है सुप्रीम कोर्ट के वकील और साइबर कानून के विशेषज्ञ विराग गुप्ता
सुप्रीम कोर्ट के वकील और साइबर कानून के विशेषज्ञ विराग गुप्ता के अनुसार सोशल मीडिया के साथ साइबर अपराध भी दिन दुगने रात चौगुने बढ़ रहे हैं. इससे निपटने के तीन पहलुओं पर बातचीत और समझ जरुरी है.
पहला- कानून और अदालत
दूसरा- पुलिस और डिजिटल रेगुलेटर
तीसरा- सोशल मीडिया कंपनियों का शिकायत तंत्र है
आईटी एक्ट और आईटी इंटरमीडियरी रुल्स 2021 के तहत सोशल मीडिया कंपनियों की अनेक कानूनी जवाबदेही हैं. सोशल मीडिया में पीड़ित लोग हर छोटी या बड़ी बात के लिए पुलिस या अदालतों का दरवाजा नहीं खटखटा सकते है. पुराने 2011 के नियमों के तहत के. एन. गोविन्दाचार्य मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने फेसबुक, गूगल, ट्विटर और दूसरी सोशल मीडिया कंपनियों में शिकायत निवारण के लिए प्रभावी सिस्टम सुनिश्चित करने के लिए केन्द्र सरकार को आदेश दिया था. पिछले 9 सालों से इस बारे में सिर्फ कागजी खानापूर्ति हुई है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील और साइबर कानून के विशेषज्ञ विराग गुप्ता के अनुसार इस तरह के मामलो में आईपीसी की धारा 354-C और आई टी एक्ट की धारा 66E के तहत एफआईआर दर्ज की जाती है .ये धाराएं लड़की या महिला को गलत तरीके से और छिप कर फिल्माने पर लगाई जाती है. 66E का दोषी पाए जाने पर आरोपी को दो लाख तक का जुर्माना या तीन साल तक की सजा हो सकती है. वहीं 354-C का दोषी पाए जाने पर आरोपी को जुर्माना और एक से पांच साल तक की सजा हो सकती है.