Monkeypox Case: देश में मंकीपॉक्स का दूसरा मामला भी केरल से सामने आया है, जिसके बाद अब सरकार अलर्ट मोड पर है. विश्व में अब तक इस बीमारी के 13 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. जानवरों से फैलने वाली इस बीमारी को जूनोटिक बीमारी भी कहा जाता है. आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे की बच्चों के लिए इसे क्यों ज्यादा खतरनाक माना जा रहा है. 


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ICMR ने किया अलर्ट
दरअसल मंकीपॉक्स वायरस का संबंध पॉक्सविरिडे परिवार से है, जिसमें चेचक पैदा करने वाले वायरस भी शामिल हैं. भारत में साल 1975 तक स्मॉल पॉक्स और चिकन पॉक्स की बीमारियां बहुत पाई जाती थी, लेकिन उसके बाद वैक्सीनेशन कार्यक्रम के द्वारा इस बीमारी पर कंट्रोल कर लिया. 1975 के आस-पास तक जन्में ज्यादातर बच्चों को इसका टीका लगाया गया और कुछ को बीमारी होकर ठीक हो गई. आईसीएमआर ने हाल ही में जारी बयान में कहा है कि बच्चों को मंकीपॉक्स से अधिक सावधान रहना होगा क्योंकि उनको चेचक का टीका नहीं लगा है. दरअसल चेचक का टीका मंकीपॉक्स में भी फायदेमंद है. 


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मधुकर रेनबो अस्पताल की डॉ अनामिका के अनुसार मंकीपॉक्स एक जूनोटिक बीमारी है, जो जानवरों से इंसानों में फैलती है. बच्चों के लिए मंकीपॉक्स वायरस खतरनाक साबित होने की आशंका है क्योंकि बच्चों को स्मॉल पॉक्स की वैक्सीन नहीं लगी है. इसकी बड़ी वजह ये भी है कि बच्चे हाइजीन का ध्यान भी नहीं रख पाते हैं. अगर वे मंकीपॉक्स से संक्रमित होते हैं, तो वायरस कई दिनों तक उनमें रह सकता है, जिससे दूसरा व्यक्ति भी संक्रमित हो सकता है. 


आईसीएमआर की ओर से मंकीपॉक्स के टेस्ट के लिए 15 लैब निर्धारित की गई हैं. अगर आपको भी इस बीमारी के लक्षण नजर आते हैं, तो अपना टेस्ट जरूर कराएं. मंकीपॉक्स 21 दिन के आइसोलेशन के बाद ठीक हो जाती है और संक्रमित होने के 3 दिन बाद इसके लक्षण दिखाई दो सकते हैं. 


78 देशों में 13 हजार से ज्यादा मामले 
Monkeypoxmeter.com  पर मौजूद डेटा के अनुसार, अब तक विश्व के 78 देशों में अबतक 13,102 मंकीपॉक्स के मरीजों की पुष्टि हो चुकी है. 


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