Vice President Election 2022: देश के उपराष्ट्रपति के चयन के लिए वोटिंग प्रक्रिया शुरू हो गई है. NDA की तरफ से जगदीप धनखड़ तो वहीं विपक्ष की तरफ से मार्गरेट अल्वा मैदान में है. वोटों के गणित पर नजर दौड़ाएं तो  NDA उम्मीदवार जगदीप धनखड़ की जीत पक्की मानी जा रही है. आज के इस आर्टिकल में हम आपको जगदीप धनखड़ के सियासी सफर के बारे में विस्तार से बताएंगे. 


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जगदीप धनखड़ का जन्म 
जगदीप धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के एक छोटे से गांव किठाना में हुआ था. उनके पिता एक गरीब किसान थे. उनकी स्कूली शिक्षा चित्तौरगढ़ के सैनिक स्कूल में हुई और फिर यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान से उन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया. 


राजनीतिक सफर
जगदीप धनखड़ 1989 में झुंझुनू लोकसभा क्षेत्र से जनता दल की टिकट पर सांसद चुने गए. साल 1989-1991 तक वो केन्द्रीय मंत्री भी रहे. इसके बाद 1991 के लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर वो कांग्रेस में शामिल हो गए. 1993 में कांग्रेस की टिकट पर अजमेर की किशनगढ़ सीट से विधायक बने. इसके बाद साल 2003 में कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन धाम लिया. 


विज के बड़े बोल- कांग्रेस की असली तकलीफ "लागा चुनरी पे दाग छुपाऊ कैसे बच जाऊं कैसे"


 


2019 में बने बंगाल के राज्यपाल
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 30 जुलाई 2019 जगदीप धनखड़ को को बंगाल का 28वां राज्यपाल नियुक्त किया था, जिसके बाद से ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ उनका टकराव शुरू हो गया. बंगाल का राज्यपाल रहते हुए जगदीप धनखड़ ने कई बार TMC सरकार के फैसलों पर विरोध जताया. 


NDA ने बनाया उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार
जगदीप धनखड़ की लोकप्रियता की शुरुआत राजस्थान में जाटों के आरक्षण दिलाने के समय से शुरू हुई. राजस्थान की जाट बिरादरी से आने वाले धनखड़ ने जाटों को आरक्षण दिलाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी है और जाट समुदाय में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है, यही वजह रही कि बीजेपी ने उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल और अब देश के उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है. 


सियासी दांवपेंच में हासिल है महारथ
71 साल के जगदीप धनखड़ हाइकोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट रह चुके हैं और लगभग 50 सालों से देश की राजनीति में सक्रिय हैं. राजनीतिक अनुभव और सियासी दांवपेंच की समझ को देखते हुए बीजेपी ने उनका चयन किया है.