Haryana: जब संकट में थी अटल सरकार तो ओपी चौटाला ने अपने ऐलान से चेहरों पर ली दी थी मुस्कान
OP Chautala: जब अटल सरकार संकट में थी उस समय ओम प्रकाश चौटाला ने घोषणा की कि वह राष्ट्रीय हित को देखते हुए वाजपेयी सरकार को समर्थन देंगे. इस घोषणा ने सरकार के खेमे में खुशी की लहर दौड़ा दी. भाजपा के नेताओं के चेहरे पर मुस्कान लौट आई,
OmPrakash Chautala: 1999 में, अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे. उनकी सरकार को नीतीश कुमार की समता पार्टी, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और जयललिता समर्थन प्राप्त था. यह एक अस्थिर गठबंधन था, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच मतभेद स्पष्ट थे. इस समय, जयललिता ने अटल सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया.
जयललिता का दबाव
जयललिता, जो तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री थीं, उन्होंने अटल सरकार से कुछ अहम मंत्रालयों की मांग की और अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों को वापस लेने की मांग की. जब उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो उन्होंने 6 अप्रैल, 1999 को अपने मंत्रियों के इस्तीफे पीएम वाजपेयी को भेज दिए. यह कदम अटल सरकार के लिए एक बड़ा झटका था, जिससे सरकार की स्थिरता पर प्रश्नचिह्न लग गया.
राष्ट्रपति से मुलाकात
उस दौरान कुछ दिनों बाद, जब जयललिता दिल्ली पहुंचीं, तो राजनीतिक तापमान और बढ़ गया. 11 अप्रैल 1999 को, उन्होंने राष्ट्रपति के आर नारायणन से मुलाकात की और अटल सरकार से समर्थन वापस लेने की चिट्ठी सौंप दी. इस स्थिति ने अटल सरकार को अल्पमत में ला खड़ा किया, जिससे उन्हें लोकसभा में बहुमत साबित करने की आवश्यकता थी. प्रधानमंत्री वाजपेयी और उनके सहयोगियों को पहले से ही इस बात का अहसास हो गया था कि जयललिता समर्थन वापस लेने वाली हैं. इसके बाद, उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने हरियाणा के मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला से मदद मांगी. चौटाला ने कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं दिया, लेकिन उन्होंने कहा कि वे पार्टी नेताओं से विचार-विमर्श करेंगे.
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चौटाला का आश्वासन
17 अप्रैल को विश्वास मत परीक्षण होना था.16 अप्रैल को, ओम प्रकाश चौटाला ने घोषणा की कि वह राष्ट्रीय हित को देखते हुए वाजपेयी सरकार को समर्थन देंगे. इस घोषणा ने सरकार के खेमे में खुशी की लहर दौड़ा दी. भाजपा के नेताओं के चेहरे पर मुस्कान लौट आई, क्योंकि उन्हें लगा कि उन्होंने बहुमत का जुगाड़ कर लिया है.
लोकसभा में बहुमत परीक्षण के दौरान एक महत्वपूर्ण घटना घटी. लोकसभा अध्यक्ष ने महासचिव एस गोपालन को एक पर्ची दी, जिसमें कांगेस सांसद गिरधर गोमांग को विवेक के आधार पर वोट देने की अनुमति दी गई. गोमांग, जो फरवरी में ओडिशा के मुख्यमंत्री बने थे, उन्होंने तब तक अपना इस्तीफा नहीं दिया था. जब वोटिंग हुई, तो उन्होंने सरकार के खिलाफ वोट दिया. इस निर्णय ने अटल सरकार को 13 महीने बाद गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस तरह से अटल सरकार 13 महीने बाद फिर से गिर गई.