राकेश भयाना/पानीपत: आपने किसी शहर में चोरों व बदमाशों का आतंक तो सुना होगा, लेकिन इस शहर के लोग एक ऐसे जानवर के आंतक के साये में जी रहे हैं, जो पालतू होने के साथ-साथ गली मोहल्ले में लावारिस घूम रहे हैं. हम बात कर रहे हैं आवारा कुत्तों की. इन लावारिस कुत्तों के कारण पानीपत शहर के गली मोहल्ले के लोगों का हाल बेहाल हैं, लेकिन निगम का कोई भी अधिकारी सुनने को तैयार नहीं है. सब मौन धारण किए हुए हैं. कई बार नसबंदी करवाने के बावजूद भी इंसानों से ज्यादा आवारा कुत्तों की जनसंख्या बढ़ रही है. आवारा कुत्तों के शिकार बच्चे, बूढ़े और जवान हो रहे हैं. आलम यह है कि कई बच्चों को कुत्तों के काटने से लिगामेंट भी फट गए.


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वहीं इस मामले को लेकर एमएससी कर रही छात्रा मुस्कान ने बताया कि लावारिस कुत्तों की वजह से घर से भी निकलने में काफी परेशानी हो रही है. उन्होंने बताया कि दुकान पर सामान लेने जाते हैं तो कुत्तों का झुंड काटने को दौड़ता है. मुस्कान ने बताया कि दाएं हाथ का लिगामेंट फटने से डॉक्टर ने 2 महीने का आराम बताया था.


सतबीर ने कहा कि लावारिस कुत्तों के कारण आम आदमी का निकलना गली से बड़ा मुश्किल हो गया है. बच्चों का स्कूलों में जाना मुश्किल हो गया है. कई बार बच्चों के साथ माता-पिता को भी काट लिया है. उन्होंने बताया कि गली में लगभग 50 से 7 आवारा कुत्ते हैं और निगम से प्रार्थना की कि कुत्तों का इलाज किया जाए. वहीं कामवाली राधा ने बताया कि घर घर में काम करने के लिए जा रहे थे तो लावारिस कुत्तों ने हमारे कपड़े फाड़ दिए.


दुकानदार सुरेंद्र ने बताया कि गलियों में लावारिस कुत्तों का बुरा हाल है. यहां 3 दिन पहले कई कुत्तों ने एक बच्ची को पकड़ लिया था. बड़ी मुश्किल से बच्ची को कुत्तों से बचाया था. उन्होंने कहा कि इन कुत्तों पर भी कानून बनना चाहिए. उन्होंने प्रशासन से अपील की कि इन आवारा कुत्तों का समाधान करें.


स्थानीय निवासी प्रवीण ने बताया कि पालतू व लावारिस कुत्तों पर कानून बनना चाहिए. उन्होंने कहा कि निगम या प्रशासन से परमिशन लेकर इन कुत्तों को पालने की अनुमति मिलनी चाहिए, क्योंकि इन कुत्तों की वजह से गली-गली में गंदगी भी खूब होती है, जिससे बीमारियां होने का डर रहता है.


सरकारी हॉस्पिटल के फार्मेसी इंचार्ज मोनू ने बताया कि लगभग हर रोज 150 रेबीज के इंजेक्शन लग रहे हैं. उन्होंने बताया कि हर महीने लगभग 4000 इंजेक्शन रेबीज के लगते हैं. बहरहाल यह सरकारी आंकड़ा है, लेकिन अगर निजी हॉस्पिटल की बात की जाए तो यह आंकड़ा 10,000 को भी पार कर सकता है.