Pitru Paksha 2022: श्राद्ध और पिंड के लिए क्यों खास माना जाता है `पिहोवा तीर्थ`, महाभारत काल के युद्ध से है गहरा नाता
Pitru Paksha 2022: 10 सितंबर से शुरू होने जा रहे पित पृक्ष 25 सितंबर, 2022 को सर्व पितृ अमावस्या को समाप्त होंगे. पितृ पक्ष में पितरों को जल देना विशेष माना गया है, इसमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, तो चलिए जानें-
Pitru Paksha 2022: इस बार पितृ पक्ष (Pitru Paksha) 10 सितंबर, 2022 शनिवार से शुरू होने जा रहे हैं और 25 सितंबर सर्व पितृ अमावस्या को समाप्त होंगे. कहते हैं कि इन दिनों अपने पूर्वजों के निमित्त तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान किया जाता है. इतना ही नहीं इन दिनों में पित्तरों को प्रसन्न करने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भी बेहद खास माना जाता है.
छ लोग अपने पूर्वजों और पितरों का श्राद्ध लोग घर पर ही करते हैं. लेकिन, कुछ लोग पूरे विधि-विधान के साथ इन दिनों में अपने पतिरों की मुक्ति की कामना करते हैं और उनका श्राद्ध करने के लिए हरियाणा के कुरुक्षेत्र नगर से कुछ ही दूर बसे पिहोवा तीर्थ पर जाते हैं.
जानें, क्या है पिहोवा
क्या है पिहोवा (Pehowa) और हिंदू धर्म में इसका महत्व और इतिहास क्या है आज हम आपको इसे के बारे में बताने जा रहे हैं. हिंदू धर्म में पिहोवा को पितरों का तीर्थ कहा जाता है, लेकिन जब पिंड दान करने की बात आती है तो लोग बिहार के गया (gaya) तीर्थ को ही सबसे ज्यादा अहमियत देते हैं लेकिन पिहोवा का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है जिसे बेहद कम ही लोग जानते हैं.
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क्या है पिहोवा का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुरुक्षेत्र महाभारत की युद्ध भूमि रही है. इसी भूमि पर पांडवों और कौरवों की खून की धारा बही है. उस दौरान पांडवों ने युद्ध के समाप्त होने के बाद भगवान श्री कृष्ण के साथ मिल कर इस युद्ध में मरने वाले अपने परिवार और योद्धाओं की आत्मा को शांति पहुंचाने के लिए पिहोवा की धरती पर ही श्राद्ध किया था. तब से पिहोवा को पितरों का तीर्थ स्थल माना जाने लगा है.
शास्त्रों के अनुसार, पिहोवा तीर्थ पर आकर, जो भी अपने पितरों का पिंड दान करता है या फिर उनका श्राद्ध करता है, उस पर से पितृ दोष हटने के साथ-साथ उसकी सारी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. कहते हैं कि पिहोवा में 200 से भी ज्यादा पुरोहित रहते हैं. जो आपकी 200 साल पुरानी वंशावाली को बता सकते हैं. पिहोवा में कई बड़े राजा-महाराजाओं का श्राद्ध किया जा चुका है और उनके वंशजों द्वारा पिंडदान भी कराया जा चुका है.