शिक्षा से कोई बच्चा दूर न रहे, इसलिए मीलों पैदल चलती है 17 साल की ललिता
बाल मजदूरी के दलदल से निकलकर सामाजिक बदलाव के जरिए अपनी अलग पहचान बनाने वाले यंगस्टर्स को आज रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (आरपीएफ) के डायरेक्टर जनरल संजय चंदर ने सम्मानित किया.
नई दिल्ली : बाल मजदूरी के दलदल से निकलकर सामाजिक बदलाव के जरिए अपनी अलग पहचान बनाने वाले यंगस्टर्स को आज एक कार्यक्रम में सम्मानित किया गया. यह कार्यक्रम दिल्ली स्थित कॉन्स्टिीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित किया गया. इस परिचर्चा का आयोजन नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) और कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) की ओर से किया गया.
परिचर्चा का विषय था कि ‘क्या साल 2025 तक भारत बालश्रम को पूरी तरह से खत्म कर पाएगा. इस मौके पर रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (आरपीएफ) के डायरेक्टर जनरल संजय चंदर ने समाज में बदलाव लाने वाले नौ यूथ लीडर्स को सम्मानित किया.
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बच्चों के भविष्य के लिए सरकार से की मांग
इस दौरान बच्चों ने अपनी मांगें भी रखीं. इनमें सबसे अहम थी कि बाल मजदूरी में लगे बच्चों के लिए रेस्क्यू एवं पुनर्वास के लिए नीति लाई जाए. रेजीडेंशियल स्कूल व रेस्क्यू किए गए बच्चों के लिए बजट में वृद्धि हो. इस नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए देश के सभी जिलों को राष्ट्रीय बालश्रम योजना(एनसीएलपी) के अंतर्गत घोषित किया जाए और तकनीक पर आधारित निगरानी प्रणाली सुनिश्चित की जाए.
सम्मानित हुए बच्चों में जयपुर के डेरा गांव की ललिता धूरिया (17) और अलवर के हिंसला गांव की पायल जांगिड़ (19) भी शामिल हैं. रीबॉक फिट टू फाइट अवॉर्ड से सम्मानित की जा चुकी ये दोनों लड़कियां सामाजिक बदलाव के लिए काम कर रही हैं. ललिता बाल मित्र ग्राम की सक्रिय कार्यकर्ता हैं. बाल मित्र ग्राम केएससीएफ का एक अभिनव प्रयोग है जो यह सुनिश्चित करता है कि हर बच्चा सुरक्षित, स्वतंत्र और सुशिक्षित हो सके. अशोका यंग चेंजमेकर अवॉर्ड से सम्मानित हो चुकीं ललिता लड़कियों को पढ़ने के लिए जागरूक करती हैं. वह किसी भी कारण से स्कूल न जाने वाले बच्चों पढ़ाई के लिए प्रेरित करते हैं.
घर-घर जाकर करती है अभिभावकों से आग्रह
ललिता ने बताया, मैं मीलों चलती हूं. अपने क्षेत्र में हर घर का दरवाजा खटखटाती हूं और पता करती हूं कि उस घर में कोई ऐसा बच्चा तो नहीं है, जो स्कूल से वंचित हो. अगर ऐसा कोई बच्चा मिलता है तो उनके परिवारों को समझाती हूं कि वह बच्चे को स्कूल जरूर भेजें. ललिता का यह भी कहना है कि बच्चों के साथ किसी तरह का भेदभाव न किया जाए.
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अलवर जिले के ही गांव हिंसला से आने वाली पायल जिंगड़ा भी बाल मित्र ग्राम का हिस्सा हैं. पायल की लड़ाई ने केवल बालश्रम के खिलाफ, बल्कि घूंघट पर्दा के खिलाफ भी है. साल 2013 में जब स्वीडिश काउंसिल के सदस्य पायल के कामकाज की समीक्षा करने आए थे तो उसके काम से इतना प्रभावित हुए कि पायल का चयन वर्ल्ड चिल्ड्रन्स प्राइज चुनने वाली जूरी का ही सदस्य बना दिया था.
पायल कहती हैं, ‘मैं अपने गांव के बच्चों को एकजुट रखने का प्रयास करती हूं, अगर वो एक साथ आएंगे तो किसी भी तरह के अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकेंगे। खुद के सशक्तीकरण के लिए शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है. पायल चाहती हैं कि महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा मिले और हर क्षेत्र में उन्हें काम करने का अवसर मिले.
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120 बच्चों के मददगार बने एमपी के सुरजीत
इसी तरह मध्य प्रदेश के बिदिशा जिले से आने वाले 18 साल के सुरजीत लोधी अपने गांव के 120 बच्चों को कठिन परिस्थितियों से निकालते हुए शिक्षा दिलवाने में मदद कर रहे हैं. वह बच्चों को शिक्षा हासिल करने के लिए जागरूक भी कर रहे हैं. सुरजीत अब तक अपने गांव व आसपास शराब की पांच दुकानों को बंद भी करवा चुके हैं. साल 2021 में सुरजीत को प्रतिष्ठित डायना अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. आज सुरजीत, दूसरे बच्चों के लिए एक प्रेरणा बन चुके हैं.
एंटी ट्रैफिकिंग बिल पास करने की मांग
सुरजीत कहते हैं कि बालश्रम के खिलाफ मौजूदा कानून को और अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है। सुरजीत ने कहा, ‘हम सरकार से आग्रह करते हैं कि वह जल्द से जल्द संसद में एंटी ट्रैफिकिंग बिल को पास करवाए. वह यह भी चाहते हैं कि शराबबंदी को हर तरह से प्रतिबंधित किया जाए. सम्मानित होने वाले यूथ लीडर्स में से तीन राजस्थान के हैं. इनमें तारा बंजारा, अमर लाल और राजेश जाटव शामिल हैं. वहीं तीन यूथ लीडर्स- 22 साल के नीरज मुर्मु, 16 साल की चंपा कुमारी और 17 साल की राधा कुमारी झारखंड से हैं.
आरपीएफ डायरेक्टर ने की सराहना
आरपीएफ के डायरेक्टर जनरल(डीजी) संजय चंदर ने कहा, इन बच्चों व युवाओं में समाज को बदलने की ताकत है और यही लोग समाज की कुरीतियों का अंत कर सकेंगे. डीजी ने कहा, इन बच्चों को सम्मानित करके मुझे बहुत खुशी महसूस हो रही है.