Dev Adalat held in Kullu: क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसी अदालत भी है, जिसमें मुकदमा तो इंसानों का होता है, लेकिन फैसला देवी देवता करते हैं. आपको हैरानी हो रही होगी, क्योंकि हमारी मान्यता में देवता तो अलौकिक शक्ति होते हैं, तो फिर धरती पर कैसे अदालत लगाते हैं, मृत्युलोक में हो रहे अन्याय के मामलों में अपना फैसला कैसे सुनाते हैं. 


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कहां लगती है देवताओं की अदालत?


जिस मंदिर को देवताओं की अदालत कहा जाता है, उस मंदिर का ताल्लुक हिमाचल प्रदेश की प्राचीन कुल्लू रियासत से है. मंदिर का ज्ञात इतिहास करीब 6 सौ साल पुराना है. इसके मुताबिक मंदिर का निर्माण कुल्लू रियासत के राजा जगत ने कराया था. उन्हीं का नाम मंदिर में रखे गए चट्टान को दिया गया- जगती पट्टी. लेकिन स्थानीय मान्यताओं ने इन्हें पूरे जगत यानी संसार के लिए देवताओं के अंतिम न्याय का केन्द्र बना दिया.


कुल्लू के राजपरिवार के सदस्य दानवेन्द्र सिंह ने जगती परंपरा के बारे में बताते हुए कहा कि यह वही अदालत है, जिसमें देवताओं को बुलाया जाता है. दानवेन्द्र के मुताबिक आखिरी जगती साल 2014 में बुलाई गई थी, जब हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने पशु बलि पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था.
तब हाई कोर्ट के उस फैसले पर देवताओं को ऐसे ही आमंत्रित किया गया था.


18 कोटि के देवताओं को भेजा जाता है निमंत्रण


विविधताओं से भरे हमारे देश में कई परंपराएं, कई मान्यताएं चौंकाती हैं. कुल्लू का देव संसद, यानी देवताओं की अदालत भी ऐसी ही एक मान्यता है. जगती पट्टी की दैवीय शक्तियां इतनी शक्तिशाली मानी जाती हैं, कि इसके तहत कुल्लू मनाली से लेकर शिमला और दूर दराज के लाहौल स्पीति तक के देवता इसमें आते हैं. 


जैसी कि जगती पट्टी मंदिर की मान्यता है, यहां अदालती सुनवाई के लिए 18 कोटि देवताओं को बुलाया जाता है. मंदिर में सुनवाई के लिए इनके विराजमान होते ही दरवाजा बंद हो जाता है. मंदिर के अंदर सिर्फ देवताओं के गुर, यानी सेवक या पुजारी होते हैं और इनके साथ मौजूद होता है कुल्लू राजपरिवार का एक सदस्य. इसके बाद अदालती कार्रवाई से पहले कुछ ऐसी गुप्त क्रियाएं होती है, जिनका पता बाहरी दुनिया को आज तक नहीं. न कोई सेवक पुजारी बताता है, और ना ही कुल्लू राजपरिवार का वारिस.


लोग मानते हैं देवताओं की अदालत का फैसला


राजपरिवार के सदस्य को यहां पंजवीर कहते हैं. ये पंजवीर ही देवताओं का आह्वान करता है और बेहद ही गुप्त तरीके कुछ ऐसे अनुष्ठान किए जाते हैं, जिसके बाद हर देवता के संकेतों को स्थानीय परंपरा के मुताबिक समझा जाता है. देवताओं के संकेत मिलने के बाद वहां बैठे लोगों के बीच आम राय बनती है और पंजबीर की तरफ से फैसला सुनाया जाता है. जैसे पशुबलि पर हाई कोर्ट के फैसले से देवताओं की अदालत में असहमति जताई गई थी, जैसे कोरोना जैसी महामारी में देवताओं से रक्षा की गुहार लगाई गई थी, यहां हुआ हर फैसला लोगों को मानना ही पड़ता है.


यह मंदिर बाकी मंदिरों से इस मायने में अलग है क्योंकि यहां पर कोई मूर्ति नहीं, बस एक शिला है. तो आखिर में बात आकर इसी रहस्यमयी शिला पर रुक जाती है. जिस तरह जगती पट्टी मंदिर की विश्वसनीयत है, उसमें जब तक ये शिला रहेगी, देवताओं की अदालत यहां लगती रहेगी.