पेरिस : अहम जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की पूर्व संध्या पर भारत ने रविवार को ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए एक संतुलित, निष्पक्ष और न्यायोचित समझौते की वकालत करते हुए कहा कि विकसित देशों को ‘जो कहा सो करना’ चाहिए। कार्बन उत्सर्जन सीमित करने के लिए एक दीर्घकालीन करार के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित दुनिया के करीब 150 नेता सम्मेलन में शिरकत कर रहे हैं। 


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पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि समानता के सिद्धान्त में 2015 के जलवायु सिद्धांत के सभी पहलुओं को समाहित किया जाना चाहिये। सम्मेलन का लक्ष्य जीवाश्म ईंधनों पर नियंत्रण कर औसत ग्लोबल वार्मिंग को औद्योगिक क्रांति पूर्व के स्तर से दो डिग्री सेल्सियस अधिक पर सीमित करना है।


मंत्री ने विकसित देशों से विकासशील देशों के लिए ‘कार्बन स्पेस’ मुहैया करने की भी मांग की। उन्होंने कहा कि विकसित देश उपलब्ध कार्बन स्पेस का दो तिहाई हिस्सा इस्तेमाल कर रहे हैं। जावड़ेकर ने कहा कि विकासशील देशों को कार्बन स्पेस मुहैया करना पृथ्वी, विकासशील देशों और खुद विकसित दुनिया के हित में है। विकसित देशों को अपनी कही गई बातों का अनुकरण करना चाहिए।


पर्यावरण मंत्री ने कहा है कि हर जलवायु कार्रवाई की एक कीमत होती है और दुनिया को अवश्य ही सोचना चाहिए कि नई प्रौद्योगिकियों के लिए कौन कीमत अदा करेगा। जलवायु परिवर्तन पर भारत की गति पर अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी की हालिया चिंताओं को जावड़ेकर ने पक्षपातपूर्ण, दुर्भाग्यपूर्ण और असत्य बताया।


गौरतलब है कि केरी ने एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय आर्थिक अखबार को दिए साक्षात्कार में कहा था कि पेरिस वार्ता में भारत एक चुनौती हो सकता है। सम्मेलन से पहले भारत सहित 175 से अधिक देशों ने अपने कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए लक्षित राष्ट्रीय प्रतिबद्ध योगदान (आईएनडीसी) का संकल्प लिया है।