नई दिल्ली: आज हम सबसे पहले वर्ष 2018 के एक वीडियो की बात करेंगे, जब वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो पर एक सैन्य समारोह के दौरान दो ड्रोन्स से हमला हुआ था. उस समय इन दोनों ड्रोन्स में एक एक किलोग्राम RDX रखा गया था, लेकिन हमले से पहले ही ये दोनों ड्रोन्स हवा में फट गए, जिसके बाद वहां भगदड़ मच गई थी और निकोलस मादुरो बाल बाल बच गए थे. इस वीडियो का जिक्र करने के पीछे हमारा मकसद है कि आप ड्रोन के बढ़ते खतरों को समझें, जो अब एक खतरनाक हथियार बन चुके हैं.


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इस वीडियो से आप समझ गए होंगे कि एक ड्रोन कैसे एक देश की सेना और उसके राष्ट्रपति को हिला सकता है, लेकिन अब ये सोचिए अगर ये ड्रोन्स आतंकवादियों के हाथों में पहुंच जाएं तो क्या होगा? तो ये Drone हवा में उड़ते हुए आत्मघाती हमलावर बन जाएंगे. जम्मू कश्मीर में पिछले एक हफ्ते से यही खतरा सामने आया है.


भारत ने संयुक्त राष्ट्र में जताई चिंता


जम्मू कश्मीर में 27 जनवरी को एयरफोर्स स्टेशन पर दो ड्रोन्स से हमला किया गया और आज भी सीमा पर सैन्य ठिकाने के पास एक ड्रोन की गतिविधि देखी गई, जिस पर भारत ने संयुक्त राष्ट्र में चिंता जताई है.


सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि इस पर संयुक्त राष्ट्र में क्या हुआ?


भारत की तरफ से केन्द्रीय गृह मंत्रालय के विशेष सचिव वी.एस.के. कौमुदी ने आज आर्म्ड ड्रोन्स यानी हथियारों से लैस ड्रोन्स के इस्तेमाल को लेकर ये मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया और उन्होंने कई गंभीर बातें कहीं. भारत की तरफ से UN में कहा गया कि इस तरह के आर्म्ड ड्रोन्स सस्ते होते हैं और बहुत ही आसानी से मिल जाते हैं या बना लिए जाते हैं. वहीं अगर ये आतंकवादी संगठनों को मिल जाएं तो ये दुनियाभर के देशों की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा हैं.


संयुक्त राष्ट्र में भारत की तरफ से व्यक्त की गई इस चिंता का एक पहलू ये भी है कि सरकार जम्मू के एयरफोर्स स्टेशन पर हुए ड्रोन अटैक को गंभीरता से ले रही है, जिसे दुनिया के बाकी देश अभी नहीं समझ रहे हैं और उनका रुख वैसा ही है, जैसा एक समय आतंकवाद को लेकर था.


अमेरिका आतंकवाद को वैश्विक चुनौती नहीं मानता था...


आपको शायद पता नहीं होगा कि 9/11 हमले से पहले अमेरिका आतंकवाद को वैश्विक चुनौती नहीं मानता था और तब अमेरिका समेत यूरोप की ऐसी सोच थी कि आतंकवाद एक राजनीतिक और कानून व्यवस्था से संबंधित समस्या है. उस समय जब भारत ये कहता था कि आतंकवाद के पीछे एक संगठित जेहादी विचारधारा है तो इन देशों को लगता था कि भारत इस विषय को बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रहा है और कई दशकों तक इन देशों ने आतंकवाद को समस्या नहीं माना.


लेकिन जब वर्ष 2001 में अमेरिका पर आतंकवादी संगठन अल कायदा ने हमला किया तो अमेरिका को समझ आया कि भारत सही था और आतंकवाद एक वैश्विक चुनौती है.


हमें लगता है कि आतंकवाद की तरह भारत ने ड्रोन्स के खतरे को लेकर भी बिल्कुल सटीक खतरे की आशंका जताई है, जिसे दुनिया को आज समझने की जरूरत है. इसलिए आज हम इस विषय पर आपको पूरी जानकारी देंगे.


आर्म्ड ड्रोन कितने खतरनाक


आज कल ड्रोन रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं और आपने सुना होगा कि भविष्य में आपके घर में दवाइयां, पिज्जा और यहां तक कि ब्रेड, मक्खन और अंडे भी ड्रोन से डिलिवर किए जाएंगे.


लेकिन कल्पना कीजिए कि आपके घर के ऊपर एक ड्रोन उड़ता हुआ आए और उसमें पिज्जा की जगह बम रखा हो तो आप क्या करेंगे? आने वाले समय में इन ड्रोन्स से हमले भी होंगे और हत्याएं भी होंगी. इसे आप दक्षिण कोरिया से आई तस्वीरों से समझ सकते हैं, जहां ड्रोन हमले से बचने के लिए मॉक ड्रिल की गई और इस मॉक ड्रिल की तस्वीरें से आप समझ सकते हैं आर्म्ड ड्रोन कितने खतरनाक हो सकते हैं.



दक्षिण कोरिया की इस मॉक ड्रिल के बाद अब आपको जम्मू कश्मीर से आई तस्वीरों के बारे में बताते हैं. 27 जून को जम्मू के एयरफोर्स स्टेशन पर रात करीब डेढ़ बजे RDX से लदे दो ड्रोन्स गिराए गए थे और इसके बाद 5 मिनट के अंतराल पर दो बम धमाके हुए थे. इनमें एक बम धमाका एयरफोर्स स्टेशन के हैंगर एरिया में हुआ, जहां एयरक्राफ्ट खड़े होते हैं और इस बम धमाके से वहां इमारत की छत में बड़ा छेद हो गया. 


वायु सेना के एयरक्राफ्ट निशाने पर 


अब जांच एजेंसियों को इस बात की पूरी आशंका है कि इस ड्रोन अटैक में वायु सेना के एयरक्राफ्ट निशाने पर थे और ये हमला आतंकवादियों ने किया.


यहां आपके लिए एक महत्वपूर्ण जानकारी ये भी है कि इस हमले के बाद एक बार फिर कालूचक मिलिट्री एरिया और सुंजवान मिलिट्री एरिया में तीन और ड्रोन देखे गए हैं और इसके बाद से जम्मू कश्मीर में सैन्य ठिकानों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है.


यानी अब भारतीय सेना का सामना आतंकवादियों से नहीं है, जिन्हें मुठभेड़ में ढेर किया जा सके. भारतीय सेना का सामना आतंकवादियों द्वारा ऑपरेट किए जा रहे इन आर्म्ड ड्रोन्स से है, जो भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं.


अमेरिका के पास खतरनाक ड्रोन्स की पूरी सीरीज


आज से एक दशक पहले तक दुनिया के किसी भी देश और आतंकवादी संगठन ने आर्म्ड ड्रोन्स का इस्तेमाल नहीं किया था. उस समय तक ड्रोन्स जासूसी या फिर सूचनाओं को एक से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए ही इस्तेमाल होते थे, लेकिन वर्ष 2000 में पहली बार अमेरिका की सेना ने Spy Drones को हथियारों से लैस कर दिया और 7 सितम्बर वर्ष 2001 को तालिबान के सुप्रीम कमांडर मुल्ला उमर को मारने के लिए इन ड्रोन्स का इस्तेमाल किया गया. यानी यही वो समय था, जब से दुनिया को पता चला कि ड्र्रोन्स को हथियारों से भी लैस किया जा सकता है.


आज अमेरिका के पास प्रीडेटर के नाम से इन खतरनाक ड्रोन्स की पूरी सीरीज है और भारत ने इसी साल मार्च के महीने में अमेरिका से इस सीरीज के 30 MQ-9B Armed Predator Drones की खरीद का सौदा किया है और इस सौदे की कुल कीमत 3 बिलियन डॉलर यानी साढ़े 23 हजार करोड़ रुपये है. इन 30 ड्रोन्स में से, 10-10 ड्रोन्स तीनों सेनाओं को दिए जाएंगे.


इस समय पूरी दुनिया में अमेरिका के आर्म्ड ड्रोन्स सबसे ज्यादा ख़तरनाक माने जाते हैं और आपको शायद पता नहीं होगा कि अमेरिका ही वो देश है, जिसने आर्म्ड ड्रोन्स को दुनिया के दूसरे देशों और आतंकवादी संगठनों के बीच लोकप्रिय बनाया. उदाहरण के लिए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के आठ साल के कार्यकाल में 57 बार आर्म्ड ड्रोन्स का इस्तेमाल किया गया.


जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने हथियारों से लैस ड्रोन्स का इस्तेमाल और बढ़ा दिया और उनके आठ साल के कार्यकाल में 563 ड्रोन हमले किए गए. ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2009 से 2016 के बीच हुए इन ड्रोन हमलों में आतंकवादियों के अलावा 400 से 800 लोग भी मारे गए.


आर्म्ड ड्रोन्स का इस्तेमाल कैसे बढ़ा?


अमेरिका ने जब आर्म्ड ड्रोन्स का इस्तेमाल काफी बढ़ा दिया है. वहीं ये तकनीक दूसरे देशों और आतंकवादी संगठनों ने भी अपनाई है. यानी इस तरह से आतंकवादी संगठनों ने ड्रोन्स का इस्तेमाल शुरू किया. हालांकि आज से पांच साल पहले तक आतंकवादी संगठनों के पास घातक ड्रोन नहीं थे, लेकिन धीरे-धीरे आर्म्ड ड्रोन्स पर आतंकवादी संगठनों का खर्च काफी बढ़ गया और आज ये ड्रोन आतंकवादी आसानी से इस्तेमाल कर पा रहे हैं, जो बहुत बड़ा खतरा है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसे आप कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं.


आप सबने AK-47 ऑटोमैटिक राइफल के बारे में जरूर सुना होगा. इस राइफल को AK-47 इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इसका निर्माण वर्ष 1947 में सोवियत संघ के पूर्व कर्नल मिखाइल कलाशनिकोव ने किया था. 1950 और 1960 के दशक में ये राइफल पूर्वी यूरोप के कम्युनिस्ट देशों के पास पहुंच चुकी थी.


हालांकि इस राइफल के इस्तेमाल का उद्देश्य अगले कुछ वर्षों में बदल गया और इसका एक बड़ा कारण था इस राइफल पर उस समय लिखी गई किताबें और विदेशों में बनी फिल्में. 1972 के Munich Olympics में फिलिस्तीन के आतंकवादियों ने इजरायल के 11 एथलीट को AK-47 से भून दिया था और कहा जाता है कि यहीं से दूसरे आतंकवादी संगठनों ने भी AK-47 राइफल अपने हाथों में ले ली. वर्ष 2008 में जब मुंबई पर आतंकवादी हमला तब भी आतंकवादियों ने AK-47 राइफल इस्तेमाल की थी और आतंकवादी अजमल कसाब की इस राइफल के साथ एक तस्वीर भी आज हमारे पास है. पेरिस के 2015 के आतंकवादी हमले में भी यही राइफल्स इस्तेमाल की गईं. 


आज दुनिया में 20 करोड़ से ज़्यादा AK-47 राइफल मौजूद हैं यानी हर 35 लोगों पर एक AK-47 राइफल इस समय है. यानी AK-47 राइफल आतंकवादियों का पसंदीदा हथियार बन गई.


इसी तरह जब आतंकवादी संगठनों और इंटरनेशनल ड्रग माफिया ने ये देखा कि विमानों से हमला हो सकता है तो उन्होंने इस तरकीब को भी अपनाया.


उदाहरण के लिए वर्ष 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुआ आतंकवादी हमला, चार हाईजैक पैसेंजर प्लेन्स की मदद से किया गया था. इसके अलावा वर्ष 2007 से 2009 के बीच श्रीलंका के आतंकवादी संगठन Liberation Tigers of Tamil Eelam ने भी अफ्रीका से लाए गए सिंगल इंजन विमानों से श्रीलंका के कई शहरों पर आतंकवादी हमले किए.


आर्म्ड ड्रोन्स पर किताबें और फिल्में 


और अब ये आतंकवादी संगठन ड्रोन तकनीक पर शिफ्ट हो गए हैं और इसका भी एक कारण आर्म्ड ड्रोन्स पर लिखी गई किताबें और इन पर बनी फिल्में हैं. आपको याद होगा कि वर्ष 2019 में फिल्म उरी रिलीज हुई थी, जिसमें ड्रोन तकनीक को दर्शाया गया था. इसके अलावा आर्म्ड ड्रोन्स के इस्तेमाल पर एक हॉलीवुड फिल्म भी आई थी, जिसका नाम था London Has Fallen था.


इस फिल्म ने आर्म्ड ड्रोन्स को लोकप्रिय बना दिया और आज दुनिया में इंटरनेट पर ऐसे कई रिसर्च पेपर्स और डॉक्यूमेंट्स मौजूद हैं, जिनकी मदद से कोई भी ड्रोन बनाना सीख सकता है. इसके अलावा इंटरनेट पर ऐसी कई वेबसाइट हैं, जिनके जरिए ड्रोन के अलग अलग पुर्जे घर बैठे मंगवाए जा सकते हैं और फिर इसी इंटरनेट पर कई ऐसे प्लेटफॉर्म पर भी हैं, जिन पर ऐसे वीडियोज उपलब्ध हैं, जिनकी मदद से कोई भी ड्रोन के इस्तेमाल के अलग अलग तरीके जान सकता है. यानी इंटरनेट पर सबकुछ मौजूद है और यही वजह है कि भारत ने आज संयुक्त राष्ट्र में इस पर ये कहा कि ये ड्रोन आसनी से मिल सकते हैं.


वर्ष 2018 में पूरी दुनिया में ड्रोन टेक्नोलॉजी का कारोबार 14 बिलियन डॉलर यानी 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपये का हो चुका था और अनुमान है कि वर्ष 2024 तक ये कारोबार 43 बिलियन डॉलर यानी 3 लाख 35 हजार करोड़ रुपये का हो जाएगा. हालांकि ऐसा नहीं है कि आतंकवादी संगठनों ने पहली बार भारत के खिलाफ ड्रोन्स को हथियार बनाया है.


वर्ष 2019 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सीमा पर 167 ड्रोन्स की गतिविधियों को रिकॉर्ड किया गया था. इसके अलावा वर्ष 2020 में कोरोना काल में सीमा पर 77 ड्रोन्स देखे गए थे. सितंबर 2019 में पंजाब पुलिस ने ड्रोन से नीचे गिराए गए हथियारों को बरामद किया था, जिसमें AK-47 राइफल भी थीं. 


जून 2020 में भी आतंवादियों ने पंजाब के गुरदासपुर में ड्रोन से हथियार गिराए थे और इसके कुछ दिनों बाद बीएसएफ ने जम्मू के हीरानगर सेक्टर में एक ड्रोन को मार गिराया था.


हथियारों से ड्रोन्स को इसलिए भी खतरनाक माना जाता है क्योंकि, इन्हें किसी भी आकार में ढाला जा सकता. ये एक उंगली से लेकर एक जहाज जितने बड़े हो सकते हैं. यानी हो सकता है कि आपके ऊपर कोई ड्रोन उड़ रहा हो और आपको लगे कि वो कोई कीड़ा या दूसरा जानवर है. इस समय पूरी दुनिया में पक्षियों के आकार के ड्रोन्स हमलों और जासूसी में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होते हैं. इस तरह के ड्रोन्स को Bio Mimicking Drones कहा जाता है.


इसके अलावा ऐसे ड्रोन्स भी आ गए हैं, जो पानी में एक मछली की तरह तैरते हुए हवा में एक विमान की तरह उड़ने लगते हैं और बड़े हमलों को अंजाम देने में सक्षम होते हैं.


ऐसे भी ड्रोन्स हैं, जो 20 किलोमीटर प्रति घंटा से लेकर 950 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ सकते हैं और कई ड्रोन्स 2 हजार किलोग्राम तक के हथियार उड़ा सकते हैं. अमेरिका तो पहला ऐसा देश है, जिसने ऐसा ड्रोन बना लिया है तो अंतरिक्ष में जा सकता है.


आतंकवादी संगठन क्यों आर्म्ड ड्रोन्स का सहारा ले रहे?


एक रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि क्यों आतंकवादी संगठन आर्म्ड ड्रोन्स का सहारा ले रहे हैं. हम इसको दो पॉइंट्स में बताते हैं.


पहला पॉइंट है कि ये काफी सस्ते होते हैं. इसी साल फरवरी महीने में एसोसिएशन ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि 9/11 हमला करने में अल कायदा ने पांच लाख यूएस डॉलर यानी 4 करोड़ रुपये खर्च किए थे. इसी तरह 2008 के मुंबई हमले पर आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने डेढ़ लाख यूएस डॉलर यानी 1 करोड़ 20 लाख रुपये खर्च किए थे. लेकिन ये रिपोर्ट कहती है कि अगर इस तरह के हमले किसी आर्म्ड ड्रोन के जरिए किए जाएं तो इसका खर्च सिर्फ 2 हजार डॉलर यानी मात्र डेढ़ लाख रुपये होगा.


दूसरा पॉइंट ये है कि इसमें आतंकवादियों को भेजना नहीं पड़ता.


दिसम्बर वर्ष 2018 में डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन यानी DGCA ने नई ड्रोन पॉलिसी को लागू किया था, जिसके तहत भारत में सभी कंपनियों और नागरिकों के लिए अपने ड्रोन्स के डिजाइन के बारे में सरकार को बताना जरूरी है.


इसके अलावा हर वो ड्रोन, जो 250 ग्राम से भारी है और 50 फीट से ऊपर उड़ सकता है, ऐसे ड्रोन्स को Digital Sky Portal पर रजिस्टर करना जरूरी है. इसके अलावा हर ड्रोन की फ्लाइट से पहले उसकी अनुमति लेना जरूरी है, लेकिन पॉलिसी देश में अंदर बने ड्रोन्स के लिए हैं.


हालांकि भारत इस पर खुद से भी कदम उठा रहा है. इसी साल मार्च के महीने में सरकार ने ड्रोन पॉलिसी में कुछ नरमी दिखाई है और भारत के एयर स्पेस को तीन जोन में बांट दिया है. ग्रीन जोन, जहां आप DGCA को जानकारी देकर ड्रोन उड़ा सकते हैं, यलो जोन, जहां ड्रोन उड़ाने के लिए आपको सुरक्षा एजेंसियों से मंजूरी लेनी होगी और रेड जोन, जहां ड्रोन उड़ाने की आजादी नहीं है.


कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस समय देश में 34 ग्रीन जोन हैं, यानी यहां DDCA को जानकारी देकर ड्रोन्स उड़ाए जा सकते हैं. हालांकि पिछले हफ्ते एक बैठक हुई थी, जिसमें सुरक्षा एजेंसियों और गृह मंत्रालय ने इन नियमों में कुछ राहत देने पर नाराजगी जताई थी और कहा था कि सरकार को सैन्य ठिकानों और सीमा के 80 किलोमीटर के दायरे तक बफर जोन बना देना चाहिए ताकि इस तरह के खतरों को कम किया जा सके.


भारत ने ऐसे ड्रोन हमलों को रोकने के लिए एंटी ड्रोन सिस्टम बना लिया है, जो 10 किलो वॉट लेजर की मदद से 2 किलोमीटर के दायरे में आने वाले किसी भी ड्रोन को तबाह कर सकता है. भारत में जल्द इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू करने की योजना है.