DNA ANALYSIS: बिहार विधान सभा चुनाव में NDA की जीत के मायने क्या हैं?
भारत में आप Exit Polls पर आंख बंद करके विश्वास नहीं कर सकते. ज्यादातर Exit Polls में महागठबंधन को शानदार और एकतरफा जीत मिलने का अनुमान लगाया गया था. लेकिन आखिरकार ऐसा नहीं हुआ.
नई दिल्ली: बिहार विधान सभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) के नतीजे सामने आ गए. एनडीए (NDA) 125 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल करने में कामयाब रही, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिलीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने ट्वीट कर बिहार की जनता का आभार व्यक्त किया है.
पीएम मोदी ने कहा, 'बिहार में जनता-जनार्दन के आशीर्वाद से लोकतंत्र ने एक बार फिर विजय प्राप्त की है. BJP के साथ एनडीए के सभी कार्यकर्ताओं ने जिस संकल्प-समर्पण भाव के साथ कार्य किया, वह अभिभूत करने वाला है. मैं कार्यकर्ताओं को बधाई देता हूं और बिहार की जनता के प्रति हृदय से आभार प्रकट करता हूं.'
प्रधानममंत्री मोदी ने बिहार के जनादेश को आत्मनिर्भर बिहार का नया रोडमैप करार दिया है.
एनडीए को बिहार चुनाव में स्पष्ट बहुमत
सुबह जब वोटों की गिनती शुरु हुई तो RJD आगे निकल गई जबकि दूसरे राउंड में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करके बढ़त बना ली. लेकिन शाम होते होते RJD ने एक बार फिर बढ़त ले ली और RJD बीजेपी के बगल में आकर खड़ी हो गई. लेकिन आज सुबह ये तय हो गया कि राज्य में किसकी सरकार बनेगी. एनडीए को बिहार चुनाव में स्पष्ट बहुमत मिला है.
बिहार के चुनाव की स्थिति अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की तरह हो गई है. जहां मुकाबला डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडेन के बीच था. बिहार और अमेरिका के चुनाव में एक और समानता है और वो ये कि दोनों ही जगह Exit Polls गलत निकले. इसलिए आज हम आपको बताएंगे कि NDA की जीत का मतलब क्या है?
कल 9 सीटें ऐसी थीं जिन पर जीत हार का अंतर 1000 वोटों से कम था. इन सीटों पर कांटे की टक्कर थी. इन 9 सीटों में 4 सीट ऐसी थीं जहां पर वोटों का अंतर 500 से भी कम था.
मुट्ठी भर लोगों की राय से तय नहीं होता कि पूरा देश क्या सोचता है
भारत में आप Exit Polls पर आंख बंद करके विश्वास नहीं कर सकते. ज्यादातर Exit Polls में महागठबंधन को शानदार और एकतरफा जीत मिलने का अनुमान लगाया गया था. लेकिन आखिरकार ऐसा नहीं हुआ. यानी एग्जिट पोल लोगों के मन की बात भांपने में विफल रहे. आपको ये भी सोचना चाहिए अगर Exit Polls के जरिए ही ये तय हो पाता कि किसकी सरकार बन रही है तो फिर सरकारों को चुनावों पर लाखों करोड़ों रुपये खर्च करने ही नहीं चाहिए. उससे बहुत कम पैसों में तो Polling Agency ही Survey करके ये बता देंगी कि जनता किसको पसंद करती है. लेकिन लोकतंत्र में ऐसा होता नहीं है और कुछ हजार लोगों से बात करके ये पता लगा लेना कि करोड़ों लोग किसकी सरकार बनाएंगे ऐसे ही जैसे आप बिना IPL का मैच खेले किसी मोबाइल फोन एप्लीकेशन पर ड्रीम टीम बनाने लगे. आप इसे Indian Pollsters League भी कह सकते है. ये ऐसा भी है जैसे हमारे देश में 44 हजार घरों में TRP मापने वाले मीटर्स लगाकर ये तय कर लिया जाता है कि देश के अस्सी, नब्बे करोड़ लोग क्या देखना चाहते हैं. यानी चुनाव में मुट्ठी भर लोगों की राय लेकर ही ये तय कर लिया जाता है कि पूरा देश क्या सोचता है.
महिलाओं ने NDA को बड़ी संख्या में वोट दिया
बिहार के चुनाव में इस बार महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर वोटिंग की है. इस बार वोट डालने वाली महिलाओं की संख्या करीब 2 करोड़ है. बिहार सरकार और केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के समय में महिलाओं की जो मदद की, जिस तरह से महिलाओं के बैंक अकाउंट में पैसे ट्रांसफर किए गए, मुफ्त सिलेंडर और मिड डे मील की योजना चलाई गई उसने महिला वोटर्स को NDA की तरफ आकर्षित किया है और यही वजह है कि बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ Anti Incumbency के बावजूद महिलाओं ने NDA को बड़ी संख्या में वोट दिया है.
साइलेंट वोटर्स की भूमिका भी महत्वपूर्ण
इन चुनावों में साइलेंट वोटर्स की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है. साइलेंट वोटर्स शब्द की चर्चा आपने बिहार चुनावों में भी सुनी और अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के दौरान भी सुनी होगी.
साइलेंट वोटर वो वोटर होता है जो अपने मन में ये तय तो कर लेता है कि उसे किसे वोट देना है लेकिन ये बात वो किसी को बताता नहीं. फिर भी ये वोटर्स हार और जीत का अंतर तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. आम तौर पर महिलाओं और बुजुर्गों को साइलेंट वोटर्स माना जाता है. जो पहले से तय कर चुके होते हैं कि उन्हें किसको वोट डालना है. लेकिन वो ये बात किसी को बताते नहीं.
साइलेंट वोटर्स Opinion Poll और Exit Polls करने वालों को भी अपने मत के बारे में नहीं बताते और इन वोटर्स की चुप्पी की वजह से ही कई बार सारे अनुमान गलत साबित होते हैं.
जीत के असली नायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
इस बात से आप सभी सहमत होंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं. बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्ष 2014 और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव पूर्ण बहुमत से जीते हैं. बीजेपी और एनडीए प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता पर किस तरह टिका हुआ है. उसकी झलक आप बिहार चुनाव के नतीजों में देख सकते हैं.
एनडीए की जीत के साथ नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन इस जीत के असली नायक तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं. बिहार चुनाव में एनडीए के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी 15 वर्ष की Anti incumbency. ऐसे में 7 करोड़ वोटरों के विश्वास को बनाए रखना सबसे मुश्किल काम था.
नीतीश कुमार की पार्टी का वोट शेयर घटा
नीतीश कुमार की पार्टी का वोट शेयर भी घटा है और सीटें भी कम हुई हैं. वहीं बीजेपी का स्ट्राइक रेट प्रमुख राजनीतिक दलों में सबसे अच्छा है, सीटें भी 2015 के मुकाबले उन्होंने अधिक जीती हैं और इस जीत में सबसे बड़ी भूमिका है Brand मोदी की है.
वैसे तो विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दे हावी रहते हैं और राष्ट्रीय मुद्दों का बहुत अधिक असर नहीं पड़ता है, लेकिन बिहार विधानसभा का ये चुनाव कोरोना महामारी और चीन के साथ सीमा विवाद के बीच हुआ है.
केंद्र सरकार कोरोना और चीन से निपटने में सफल रही
ऐसे में पूरे देश की नज़रें इस बात पर थीं कि क्या केंद्र सरकार कोरोना और चीन से निपटने में सफल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में चुनाव प्रचार की शुरुआत 23 अक्टूबर को सासाराम से की थी. उन्होंने अपनी पहली रैली में सबसे पहले गलवान के शहीदों को श्रद्धांजलि दी थी. साथ ही कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बिहार के लोगों की सराहना भी की थी. चीन सीमा विवाद पर केंद्र सरकार ने सख्त रुख अपनाया था और चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि बिहार की जनता चीन को सख्त भाषा में जवाब दिए जाने से खुश है. कोरोना से निपटने में केंद्र सरकार ने देश में कैसा काम किया है, इसे भी बिहार के नतीजों से समझा जा सकता है.
कोरोना से लड़ाई के दौरान केंद्र सरकार के निर्णय और नीतियां ठीक थीं
मार्च में लॉकडाउन के बाद देश भर से लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर बिहार पहुंचे थे. कई सर्वे एजेंसियों ने एग्जिट पोल में ऐसे दावे किए कि प्रवासी मजदूरों की नाराजगी का नुकसान एनडीए को उठाना पड़ेगा. लेकिन बिहार के निर्णय ने बता दिया है कि कोरोना से लड़ाई के दौरान केंद्र सरकार के निर्णय और नीतियां ठीक थीं.
नतीजों से एक बात और साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्लॉग ओवरों में जिस तरह की बल्लेबाजी की, उससे नीतीश की जीत की राह आसान हुई.
हालांकि नीतीश कुमार लंबे समय तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं. अब वह फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे. ऐसा करके वो चार या इससे ज्यादा बार मुख्यमंत्री बनने वाले नेताओं के क्लब में शामिल हो जाएंगे.
भारत में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड
भारत में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड सिक्किम के पवन कुमार चामलिंग के नाम है. वो 24 वर्षों से ज्यादा समय तक सीएम थे.
- इस समय नवीन पटनायक लगातार 20 वर्षों से ज्यादा वक्त से ओडिशा के मुख्यमंत्री हैं. ओडिशा में अगले विधानसभा चुनाव वर्ष 2024 में होंगे और अगर नवीन पटनायक तब तक मुख्यमंत्री रहे तो वो अपने इसी कार्यकाल में पवन चामलिंग का भी रिकॉर्ड तोड़ देंगे.
- बिहार में सबसे ज्यादा वक्त तक सीएम रहने का रिकॉर्ड श्री कृष्ण सिन्हा के नाम है.
-अगले 5 वर्षों का कार्यकाल पूरा करने के बाद नीतीश कुमार 18 वर्ष से अधिक समय तक मुख्यमंत्री रह चुके होंगे और वर्ष 2025 में वो बिहार में सबसे लंबे समय तक सीएम पद संभालने वाले नेता बन जाएंगे.