नई दिल्ली: दिल्ली से चंडीगढ़ पहुंचे पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) ने ये साफ कर दिया कि वो बीजेपी जॉइन नहीं करेंगे. अमित शाह (Amit Shah) से बुधवार को उनकी मुलाकात के बाद इस तरह की राजनीतिक अटकलें थीं कि वो बीजेपी में जा सकते हैं, लेकिन हमने आपको बताया था कि ऐसा नहीं होगा, क्योंकि असली रणनीति इससे कहीं आगे की है. बीजेपी चाहती है कि पहले अमरिंदर सिंह की छवि पंजाब के किसानों के सबसे मजबूत प्रतिनिधि के तौर पर चमकाई जाए और फिर उनसे किसानों के साथ बातचीत में मध्यस्था कराई जाए. शायद यही वजह है कि आज चंडीगढ़ पहुंचते ही उन्होंने साफ कह दिया कि वो कांग्रेस में तो नहीं हैं, लेकिन उन्होंने बीजेपी भी जॉइन नहीं की है. यानी हमारा जो आंकलन था, वो सही साबित हुआ.


कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास थे तीन विकल्प


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हमने पहले ही बता दिया था कि अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) के पास तीन विकल्प हैं. पहला वो बीजेपी में शामिल हो जाए और बीजेपी उनके नेतृत्व में ही पंजाब का चुनाव लड़े. दूसरा वो पंजाब में अपनी क्षेत्रीय पार्टी बना लें और चुनाव के बाद बीजेपी इस पार्टी को समर्थन दे दे या चुनाव से पहले गठबंधन कर ले. और तीसरा कैप्टन बीजेपी ज्वाइन कर लें और बीजेपी उन्हें केंद्र में मंत्री बना दें. उदाहरण के लिए कृषि मंत्री उन्हें बना दिया जाए.


अमरिंदर सिंह के पास अब बचा है एक विकल्प


अब पहला और तीसरा विकल्प खारिज हो गया है और इसकी पूरी संभावना है कि वो दूसरे विकल्प के तहत पंजाब में चुनाव से पहले अपनी क्षेत्रीय पार्टी बना सकते हैं और चुनाव के दौरान या बाद में बीजेपी इस पार्टी को समर्थन दे सकती है या गठबंधन कर सकती है. अगर ऐसा होता है तो पंजाब में विधान सभा चुनाव की पूरी पिक्चर बदल जाएगी और ये नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के लिए भी सबसे बड़ा झटका होगा. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने बयान में इस तरफ इशारा भी किया. उन्होंने कहा कि वो सिद्धू को जीतने नहीं देंगे.


शर्तें मनवाकर सुलह को तैयार हुए सिद्धू


कैप्टन अमरिंदर सिंह के बयान से साफ है कि सिद्धू के साथ उनका टकराव सिर्फ कांग्रेस छोड़ने तक नहीं है. दोनों नेताओं के बीच ये मैच आगे भी चलता रहेगा. इस खबर से जुड़ा एक और लेटेस्ट न्यूज ये है कि गुरुवा शाम नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह और सिद्धू के बीच हुई मुलाकात के बाद दोनों नेताओं ने सुलह कर ली है. यानी पहले सिद्धू नाराज हुए, उन्होंने उसूलों की बड़ी-बड़ी बातें की, ये कहा कि वो पंजाब के लोगों के हितों पर कभी कोई समझौता नहीं करेंगे, लेकिन फिर चन्नी से मुलाकात के बाद उनकी ये सारी बातें हवा हो गईं. हालांकि सिद्धू कई शर्तें मनवाकर सुलह करने के लिए तैयार हुए हैं.


दिल्ली से लिए जाएंगे पंजाब सरकार के फैसले


जैसे पंजाब में नए डीजीपी और एडवोकेट जनरल को अब बदला जा सकता हैं. नई नियुक्ति में कांग्रेस आलाकमान की भी सहमति ली जाएगी. यानी अब पंजाब सरकार के फैसले दिल्ली से लिए जाएंगे. इसके अलावा हमें पता चला है कि विवाद खत्म करने के लिए कांग्रेस की एक तीन सदस्यीय कमेटी बनेगी, जिसमें चन्नी, सिद्धू और हरीश चौधरी होंगे. इस कमेटी की हर हफ्ते बैठक होगी, जिसमें सभी बड़े मुद्दे पर आपसी सहमति से निर्णय लिए जाएंगे. यहां जो बात समझने की है वो ये कि सिद्धू ना तो मुख्यमंत्री हैं और ना ही सरकार का हिस्सा हैं, लेकिन इसके बावजूद सरकार के हर फैसले उनसे पूछ कर लिए जाएंगे. यानी पर्दे के पीछे की असली सरकार वो होंगे.


पूरे सियासी घटनाक्रम पर गांधी परिवार चुप


इस पूरे सियासी घटनाक्रम पर गांधी परिवार चुप है और कांग्रेस के जो नेता उसकी आलोचना भी कर रहे हैं, उनका विरोध किया जा रहा है. कपिल सिब्बल ने गांधी परिवार के खिलाफ बोलने की जो हिम्मत दिखाई थी, उसके लिए उन्हें अपनी ही पार्टी कार्यकर्ताओं का ही विरोध झेलना पड़ा. इन लोगों ने कपिल सिब्बल के घर के बाहर प्रदर्शन किया और ये बता दिया कि कांग्रेस में गांधी परिवार के खिलाफ बोलना कितना बड़ा गुनाह है. पंजाब कांग्रेस से कैप्टन को जिस तरीके से बेइज्जत करके दरकिनार किया गया उसे लेकर कांग्रेस के ग्रुप-23 में गुस्से की चिनगारी भड़क उठी. कपिल सिब्बल से लेकर मनीष तिवारी तक और आनंद शर्मा से लेकर गुलाम नबी आजाद तक ने नेतृत्व पर सवाल उठाए.


कौन ले रहा हैं कांग्रेस के फैसले?


कांग्रेस के अंदर नेतृत्व को लेकर किस तरह का संकट खड़ा हुआ है ये तो कपिल सिब्बल ने पहले ही जता दिया है, लेकिन अब राहुल-प्रियंका के नेतृत्व को लेकर तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं. कांग्रेस में कहने को तो सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष बनी हुई हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि सारे फैसले राहुल और प्रियंका गांधी ही ले रहे हैं. इन फैसलों की हालत ये है कि अब पंजाब के अलावा छत्तीसगढ़ में भी कुर्सी की कलह बढ़ती जा रही है.


छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल Vs टीएस सिंह देव


छत्तीसगढ़ में सीएम बनने के लिए टीएस सिंह देव ने मोर्चा खोल रखा है. उधर सीएम भूपेश बघेल समर्थक 15 विधायक दिल्ली में डेरा डालकर बैठ गए कि भूपेश बघेल को सीएम पद की कुर्सी से हटाया नहीं जाए. छत्तीसगढ़ में कामकाज छोड़ दिल्ली में डेरा डाले ये कांग्रेसी विधायक भले कुर्सी की लड़ाई से इनकार कर रहे हों, लेकिन खबर तो ऐसी ही है कि ढाई साल तक भूपेश बघेल को बर्दाश्त करके बैठे टीएस सिंह देव अब सीएम पद पर अपना दावा ठोक रहे हैं और अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के 36 वाले आंकड़े दिख सकते हैं.


कांग्रेस को करना होगा ग्रुप-23 से संघर्ष


कुल मिला कर कहें तो पंजाब की पिच पर गांधी परिवार के लिए बैटिंग करना गलत साबित हुआ. गांधी परिवार समझ ही नहीं पाया कि इस पिच पर उछाल है और उनकी ही टीम के कुछ सदस्य उसे आउट करा सकते हैं. अब गांधी परिवार अगर ये साबित भी कर देता है कि उसने कैप्टन अमरिंदर सिंह के मामले में गलत फैसला नहीं लिया था, तब भी उसे पार्टी के ग्रुप-23 से संघर्ष करना होगा, जो पार्टी में लिए जा रहे फैसलों पर खुलकर सवाल उठा रहा है.


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