नई दिल्लीः आज हम दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर की बात करेंगे. चीन और नेपाल ने मिलकर माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) की ऊंचाई मापी है और दावा किया है कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई अब 86 सेंटीमीटर यानी करीब 3 फीट तक बढ़ गई है. यानी माउंट एवरेस्ट की नई ऊंचाई 8 हज़ार 848 दशमलव 86 मीटर है. हालांकि माउंट एवरेस्ट की आधिकारिक ऊंचाई 8848 मीटर मानी जाती है. आपने किताबों में इसी ऊंचाई के बारे में कई बार पढ़ा होगा. कुल मिलाकर पिछले 66 वर्षों में माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई हर साल आधा इंच बढ़ चुकी है.


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दोनों देशों के बीच ऊंचाई मापने का समझौता
वर्ष 2015 में नेपाल में आए भीषण भूकंप के बाद माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में बदलाव होने की आशंका जताई गई थी और उसके बाद ही चीन और नेपाल ने इसकी ऊंचाई को एक बार फिर से मापने का काम शुरू किया था. पिछले वर्ष चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग नेपाल दौरे पर गए थे. उस समय दोनों देशों के बीच ऊंचाई मापने का समझौता हुआ था.


चीन और नेपाल की इस कोशिश को भारत के खिलाफ देखा जा सकता है क्योंकि, इससे पहले दुनिया एवरेस्ट की वही ऊंचाई जानती थी जो भारत ने बताई थी.


1954 में Survey of India ने माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8 हज़ार 848 मीटर मापी थी और पूरी दुनिया में अब तक इसे ही माउंट एवरेस्ट की आधिकारिक ऊंचाई माना जाता रहा है. वर्ष 1975 और 2005 में भी चीन एवरेस्ट की ऊंचाई मापने का दावा कर चुका है. लेकिन दुनिया Survey of India  द्वारा मापी गई ऊंचाई को ही मानती रही है. इसलिए चीन ने इस बार नेपाल को अपने साथ लिया है ताकि दुनिया उसके दावे पर यकीन कर पाए. माउंट एवरेस्ट को नेपाल में सागरमाथा और चीन में चोमो लंगमा कहा जाता है.


माउंट एवरेस्ट का नाम सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया रह चुके सर जाॅर्ज एवरेस्ट  के नाम पर वर्ष 1865 में रखा गया था.  हालांकि जाॅर्ज एवरेस्ट ने खुद कभी हकीकत में माउंट एवरेस्ट को देखा तक नहीं था.


माउंट एवरेस्ट को नेपाल में सागरमाथा और चीन में चोमो लंगमा कहा जाता है. माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई का आधिकारिक आकलन पहली बार ब्रिटिश राज में Survey of India  द्वारा किया गया था. इस एजेंसी की स्थापना भारत का आधिकारिक मानचित्र बनाने के लिए की गई थी.


वर्ष 1830 में सर जाॅर्ज एवरेस्ट, Survey of India  के डायरेक्टर बने थे और वर्ष 1831 में उन्होंने पश्चिम बंगाल के एक गणितज्ञ राधानाथ सिकदर को Survey of India में कम्प्यूटर के पद पर नियुक्त किया था. उस समय कम्प्यूटर का अविष्कार नहीं हुआ था. सारी गणनाएं इंसान ही किया करते थे और ऐसे लोगों को Survey of India में कम्प्यूटर कहा जाता था. क्योंकि कम्प्यूटर का मूल काम गणना करना ही होता है.


वर्ष 1830 के दशक में Survey of India  की टीम हिमालय पर्वत श्रृंखला के करीब पहुंच गई थी पर एवरेस्ट को नापने का काम नहीं हो सका. उस समय तक कंचनजंगा पर्वत के शिखर को ही दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माना जाता था.


वर्ष 1852 में राधानाथ सिकदर ने पीक 15 नाम के पर्वत शिखर को मापने का काम शुरू किया. उस समय माउंट एवरेस्ट को इसी नाम से जाना जाता था. तब विदेशियों को नेपाल की सीमा में दाखिल होने की इजाजत नहीं थी. एक विशेष उपकरण और गणित के फॉर्मूले की मदद से राधानाथ सिकदर ने पीक 15 की ऊंचाई 8 हज़ार 839 मीटर रिकॉर्ड की थी.



आधिकारिक ऊंचाई मापने का श्रेय छीन लिया गया
Survey of India  के तत्कालीन डायरेक्टर एंड्रयू स्काॅट वाॅ ने 4 वर्ष तक राधानाथ सिकदर के आकलन की जांच की और फिर अपने विभाग के ही पूर्व डायरेक्टर और अपने गुरू सर जाॅर्ज एवरेस्ट के नाम पर पीक 15 शिखर का नाम माउंट एवरेस्ट रखने का प्रस्ताव ब्रिटेन की राॅयल ज्योग्राफिकल सोसायटी को भेजा था.


यानी राधानाथ सिकदर से माउंट एवरेस्ट की आधिकारिक ऊंचाई मापने का श्रेय छीन लिया गया और दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर का नामकरण एक अंग्रेज के नाम पर कर दिया गया.


आज चीन और नेपाल एक बार फिर माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई मापकर भारत का श्रेय छीनना चाहते हैं.