नई दिल्ली: कोरोना महामारी के इस दौर में जब लोगों को ऐसा लगता है कि डॉक्टरों की कमाई लाखों करोड़ों में होती है, तब हम आपको ये बताएंगे कि एक डॉक्टर असल में एक महीने में कितने रुपये कमाता है?


पढ़ाई के साथ-साथ मरीजों का इलाज


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दुनियाभर में कोरोना महामारी से निपटने के लिए डॉक्टर्स फ्रंटलाइन में खड़े हैं. कोरोना संक्रमण काल में लोगों के जहन में ये बात बैठ गई है कि डॉक्टर मोटी तनख्वाह पाते हैं, वो मरीजों को लूटते हैं और जानबूझकर इस मुश्किल समय में लोगों का गलत फायदा उठा रहे हैं, लेकिन आज हम आपको सरकारी अस्पतालों के उन डॉक्टर्स से मिलवाएंगे, जो पढ़ाई के साथ-साथ मरीजों का इलाज भी कर रहे हैं. इनमें से कुछ डॉक्टर्स को जूनियर रेजिडेंट और कुछ को सीनियर रेजिडेंट कहा जाता है. यानी ये वो लोग हैं जिन्हें कुछ साल की प्रैक्टिस के बाद अपने लिए एक स्थायी नौकरी की तलाश भी करनी पड़ती है.


24 से लेकर 36 घंटे की नॉन स्टॉप ड्यूटी 


आज हमने देश के सरकारी अस्पतालों में 24 से लेकर 36 घंटे की नॉन स्टॉप ड्यूटी करने वाले डॉक्टर्स पर एक विश्लेषण तैयार किया है, लेकिन उससे पहले आपको एक डॉक्टर बनने की प्रक्रिया के बारे में समझाते हैं, जो छात्र डॉक्टर बनना चाहते हैं, वो 12वीं के बाद NEET परीक्षा की तैयारी करते हैं. हर साल लाखों छात्र NEET की परीक्षा देते हैं और उनमें से कुछ ही क्वालिफाई कर पाते हैं.


वर्ष 2019 में कुल 15 लाख 19 हजार 375 छात्र और वर्ष 2020 में 15 लाख 97 हजार 435 छात्रों ने NEET की परीक्षा दी थी, जिसमें से वर्ष 2019 में करीब 7 लाख 97 हजार छात्र और वर्ष 2020 में 7 लाख 71 हजार 499 छात्र ही परीक्षा पास कर पाए थे.


देश में MBBS की कुल 83 हजार 75 सीट ही हैं, मतलब हर साल इतने ही छात्र MBBS करने के लिए मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले पाते हैं. मतलब ये है कि डॉक्टर बनने की पढ़ाई के लिए चुना जाना भी आसान नहीं है.


एक छात्र को MBBS की पढ़ाई करने में साढ़े 4 साल लगते हैं, इसके बाद उसे 1 साल के लिए Rural Practice या Intership करनी होती है.


इंटर्नशिप करने के बाद किसी खास क्षेत्र में विशेषज्ञ बनने के लिए पोस्ट ग्रेजुएट होना पड़ता है जिसके लिए इसे नीट पीजी की परीक्षा देनी होती है.


इसके बाद MBBS छात्र 3 साल के लिए जूनियर रेजिडेंट के तौर पर काम करता है. फिर अगले तीन साल के लिए उसे सीनियर रेजिडेंट बनकर प्रैक्टिस करनी होती है, जिसके लिए भी एक परीक्षा देनी पड़ती है.


ये परीक्षा पास करने के बाद ही एक छात्र सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर बनता है.


13 साल के सफर में कितना कमाते हैं डॉक्टर?


यानी एक छात्र को 12वीं के बाद 13 साल की कड़ी मेहनत करनी होती है, तब कहीं जाकर वो डॉक्टर बन पाता है. लेकिन यहां भी उसकी यात्रा का अंत नहीं होता है, बल्कि यहां से उसकी यात्रा काम की तलाश के साथ शुरू होती है. भारत में डॉक्टर्स की कमी है इसलिए नए डॉक्टर्स को काम तो मिल जाता है, लेकिन 13 साल के इस सफर में वो कितना कमाते हैं ये आप जान लीजिए.


MBBS की इंटर्नशिप के दौरान यानी 1 साल के वक्त में ट्रेनी डॉक्टर 15 से 20 हजार रुपये कमा पाते हैं.


अगर अच्छे सरकारी अस्पताल में जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर हैं तो कमाई 60 से 90 हजार रुपये तक होती है.


अगर किसी छोटे शहर के सरकारी या किसी प्राइवेट अस्पताल में हैं तो कमाई काफी कम होती है


सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर को भी 3 साल के दौरान 60,000 से लेकर सवा लाख रुपए तक मिल पाते हैं.


राज्यों के मेडिकल कॉलेज में सैलरी काफी कम होती है और प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में और भी कम होती है.



अगर MBA करने वाले लोगों से तुलना करें तो MBA करने के बाद पहली नौकरी में 12 लाख रुपये सालाना वेतन मिलता है. अगर IIM से MBA किया हो तो शुरुआती पैकेज साल का 22 लाख रुपये होता, जबकि MBBS करने के बाद डॉक्टरों का शुरुआती पैकेज सालाना 6 लाख रुपये के आसपास होता है. सोचिए कितना बड़ा अंतर है.


डॉक्टरों के साथ मारपीट की घटनाएं


 


हाल ही में असम के जोहाई जिले में एक कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति की मौत के बाद उसके परिजनों ने डॉक्टर से मारपीट की थी. ऐसी घटनाएं देश के कई अस्पतालों हुई हैं, जहां डॉक्टर या हेल्थकेयर वर्कर से मारपीट की गई. इन घटनाओं के बाद भी डॉक्टर्स अपना फर्ज नहीं भूलते हैं. जब उन्हें मरीजों को लूटने वाला या फिर मरीजों की जान लेने वाला कहा जाता है तो वो निराश होते हैं.


हमने देश के सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले कई जूनियर रेजिडेंट और सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों से बात की और उनका दर्द समझने की कोशिश की.


1000 लोगों पर 0.8 प्रतिशत डॉक्टर​


हमारे देश में केवल 12 लाख 30  हजार एलोपैथी के डॉक्टर हैं और इनमें से केवल 3 लाख 30 हजार सुपर स्पेशलिस्ट हैं. अमेरिका की सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक एंड पॉलिसी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को 6 लाख और डॉक्टरों की जरूरत है. भारत में 1000 लोगों पर 0.8 प्रतिशत डॉक्टर है, जबकि WHO के मुताबिक, 1000 लोगों पर कम से कम एक डॉक्टर जरूर होना चाहिए.


भारत में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या बेहद कम है. सरकार हेल्थ केयर पर कुल जीडीपी का केवल 2% खर्च करती है. कम तनख्वाह, सरकारी अस्पतालों में असुरक्षा की भावना और बिना सुविधाओं के गांव देहात में तैनात किए जाने की स्थिति के बावजूद अगर कोई व्यक्ति डॉक्टर बनता है तो वो बेशक विशेष सम्मान का अधिकारी है.