नई दिल्ली: हमारे देश में कहा जाता है कि इंसान मरने के बाद आसमान में एक तारा बन जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि इस समय पूरी दुनिया में इतने वायरस मौजूद हैं, जितने तारे पूरे ब्रह्मांड में भी नहीं हैं. यानी अगर पूरी दुनिया की कुल आबादी, जो लगभग साढ़े 700 करोड़ है. वो आज अगर अपने सारे कामकाज छोड़ कर इन वायरस को गिनने बैठ जाए तो भी ये काम पूरा नहीं होगा. यानी ये असंभव सा दिखने वाला गणित है.


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लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है कि पृथ्वी पर अनगिनत वायरस होने के बावजूद इनमें से कुछ ही वायरस इंसानों के लिए खतरनाक होते हैं और उन्हीं में से एक वायरस से इस समय पूरी दुनिया संघर्ष कर रही है और ये है कोरोना वायरस. आप सब अब इससे परिचित हैं. कोरोना वायरस आज किसी भी परिचय का मोहताज नहीं है.


दुनियाभर में 30 लाख लोगों ने गंवाई जान


दुनियाभर में अब तक इस वायरस से लगभग 14 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं और ये वायरस करीब 30 लाख लोगों की जान ले चुका है और इन 30 लाख मौतों में से 1 लाख 70 हजार मौतें अकेले भारत में हुई हैं. ये सिलसिला अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा. इसलिए आज हम इस संक्रमण का चरित्र तो आपको बताएंगे ही. साथ ही आपको उस वायरस के बारे में भी बताएंगे, जो भारत के लोगों के DNA में बस चुका है.


लेकिन पहले कोरोना वायरस से जुड़े आंकड़ों पर नजर डालते हैं-


- भारत में पहली बार एक दिन में कोरोना के नए मामलों की संख्या दो लाख के पार चली गई है.


- कल 15 अप्रैल को 1 हजार 38 लोगों की मौत हुई है.


- दिल्ली में एक दिन में रिकॉर्ड 17 हजार मामले सामने आने के बाद वीकेंड कर्फ्यू लगा दिया गया है और ये फैसला 30 अप्रैल तक लागू रहेगा. कल दिल्ली में 16 हजार 699 मामले आए और 112 लोगों     की मौत हुई.


- वीकेंड कर्फ्यू के दौरान दिल्ली में शनिवार और रविवार को मॉल, जिम, स्पा और ऑडिटोरियम बंद रहेंगे. साप्ताहिक बाजार हर इलाके में एक ही दिन लगेगा.


- अब आप वीकेंड पर रेस्टोरेंट में बैठकर खाना नहीं खा सकेंगे, सरकार ने केवल होम डिलिवरी की छूट दी है.


- सिनेमा हॉल्स 30 प्रतिशत की क्षमता के साथ ही खुल पाएंगे और आपातकालीन सेवाओं को भी इसमें छूट मिलेगी.


यानी दिल्ली सरकार इसे लॉकडाउन तो नहीं कह रही है लेकिन पाबंदियां लॉकडाउन जैसी ही हैं. दिल्ली के अलावा महाराष्ट्र में भी बुधवार 14 अप्रैल से ब्रेक द चेन नाम से अभियान शुरू हो गया है, जिसके तहत पूरे राज्य में कर्फ्यू लगाया गया है. यहां भी पाबंदियां लॉकडाउन जैसी ही हैं, लेकिन सरकार का कहना है कि ये लॉकडाउन नहीं, बल्कि Break The Chain अभियान है, जिसका मकसद है संक्रमण की चेन तोड़ना.


-कोरोना के ख़तरे को देखते हुए NEET की परीक्षा भी टाल दी गई है.


-Archaeological Survey of India ने ताज महल और लाल किला समेत सभी संरक्षित स्मारकों को 15 मई तक लोगों के लिए बंद कर दिया है.


कई जगहों पर नाइट कर्फ्यू


उत्तर प्रदेश सरकार ने भी  लखनऊ, कानपुर और प्रयागराज समेत कुल 10 जिलों में रात आठ बजे से सुबह 7 बजे तक नाइट कर्फ्यू लगा दिया है. यहां भी कहानी वही है. पाबंदियां तो हैं लेकिन सरकार इसे लॉकडाउन नहीं कह रही. उत्तर प्रदेश के अलावा पूरे पंजाब में नाइट कर्फ्यू लगा हुआ है. कर्नाटक के 6 जिलों में 20 अप्रैल तक कोरोना कर्फ्यू लगा है. उत्तराखंड के देहरादून और छत्तीसगढ़ के रायपुर और दुर्ग में भी नाइट कर्फ्यू जैसी पाबंदियां हैं और ये लिस्ट बहुत लम्बी है.


गुजरात, हरियाणा, बिहार, जम्मू कश्मीर, ओडिशा, चंडीगढ़ और केरल में भी सीमित रूप से कई पाबंदियां लगाई गई हैं और यहां कुछ जिलों में मिनी लॉकडाउन भी लगाया गया है. यानी देश के अलग अलग हिस्सों में नाइट कर्फ्यू, मिनी लॉकडाउन और कोरोना कर्फ्यू जैसी कई पाबंदियां लगी हुई हैं, जो हैं तो लॉकडाउन जैसी ही लेकिन कोई भी सरकार इसे लॉकडाउन नहीं कहना चाहती, क्योंकि लॉकडाउन शब्द हमारे देश में बहत ज्यादा बदनाम हो गया है.


आप कह सकते हैं कि अब हमारे देश की सरकारों को कोरोना वायरस से नहीं, लॉकडाउन से ज्यादा डर लगता है, लेकिन ये डर क्यों लगता है. अब आप इसे समझिए.


पिछले वर्ष जब देश में लॉकडाउन लगा था, तब देश की GDP ग्रोथ रेट माइनस 24 तक पहुंच गई थी और इससे देश में उद्योगों की रीढ़ टूट गई थी.


लॉकडाउन के दौरान अप्रैल महीने में 12 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरियां गंवाई.


इसके अलावा लॉकडाउन के पूरी दुनिया को 16 ट्रिलियन यूएस डॉलर यानी 1197 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. अब समझ गए होंगे कि लॉकडाउन इतना बदनाम क्यों हुआ.


लॉकडाउन की जरूरत क्यों महसूस हो रही


कई ऐसे लोग भी हैं, जो पिछले साल लगाए गए लॉकडाउन से नाखुश थे, लेकिन अब जब देश में कोरोना वायरस की रफ्तार बेकाबू हो गई है तो ये लोग चाहते हैं कि सरकार लॉकडाउन लगा दे. यानी ये लोग अब मान रहे हैं कि लॉकडाउन की वजह से अगर नौकरी चली गई तो वो फिर मिल जाएगी, अर्थव्यवस्था गिरी तो वो फिर से उठ जाएगी, कुछ कंपनियां बंद हुईं तो वो फिर से चालू हो जाएंगी. नुकसान हुआ तो उसकी भी भरपाई हो जाएगी, लेकिन जान गई तो वो वापस नहीं आएगी और यही कारण है कि अब देश को लॉकडाउन की जरूरत महसूस हो रही है.


इसे अब कुछ आंकड़ों से समझिए. हमारे देश में सरकारी अस्पतालों की कुल संख्या 25 हजार 778 है और प्राइवेट अस्पतालों की संख्या 43 हजार, 487 है. यानी भारत में 135 करोड़ लोगों पर कुल अस्पतालों की संख्या हुई 69 हजार 265 और इस हिसाब से देश में लगभग 20 हजार लोगों पर एक अस्पताल हुआ.


सरल शब्दों में कहें तो भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र की हालत ज्यादा अच्छी नहीं हैं और यही वजह है कि इस संकट ने तमाम व्यवस्थाओं को दबाव में डाल दिया है. आप कह सकते हैं कि इस संकट की वजह से हमारे देश का हेल्थ सिस्टम खुद डिप्रेशन में आ गया है और जब किसी देश में ऐसा होता है, तो फिर वही तस्वीरें देखने को मिलती हैं, जो आज छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव से आई हैं.


आरोप है वहां ऑक्सीजन की कमी की वजह से चार लोगों ने दम तोड़ दिया और जब इन लोगों के शवों को ले जाने के लिए कोई एंबुलेंस नहीं मिली, तो कचरा फेंकने वाली गाड़ी को इस काम में लगा दिया गया. इससे तकलीफ भरा कुछ नहीं हो सकता. कहते हैं कि अगर किसी गाड़ी का एक टायर पंचर हो तो वो बाकी के तीन टायरों को रोकने की क्षमता रखता है और ये बात व्यवस्थाओं और सिस्टम पर भी लागू होती है.


इस तरह की तस्वीरें आज चारों तरफ से आ रही हैं. आप लखनऊ, राजकोट और जयपुर की ये तस्वीरें देख सकते हैं. जहां अस्पतालों में लोगों को बेड्स नहीं मिल रहे, जरूरी दवाईयां नहीं मिल रहीं और कई अस्पतालों पर लापरवाही के भी आरोप लग रहे हैं. यानी ये लापरवाही वाला संक्रमण है, जो सिस्टम की इम्युनिटी को कमजोर कर रहा है.


हालांकि ऐसा नहीं है कि पूरा सरकारी तंत्र स्विच ऑफ मोड पर चला गया है. 9 अप्रैल तक के एक आंकड़े के मुताबिक, इस समय देश में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए 2 हजार से ज्यादा अस्पताल काम कर रहे हैं, जिनमें केन्द्र सरकार के 89 अस्पताल हैं और राज्य सरकारों के 1995 अस्पताल हैं.


यानी इंतजाम में कोई कमी नहीं है. बस फर्क इतना है कि कोरोना वायरस दूसरी लहर में इन इंतजामों का इम्तिहान सख्ती के साथ ले रहा है और इसे भी आप कुछ आंकड़ों से समझ सकते हैं.


-अमेरिका के बाद भारत दुनिया का दूसरा ऐसा देश बन गया है, जहां एक दिन में कोरोना के 2 लाख से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं.


-अमेरिका को जहां 1 लाख मामलों से 2 लाख मामलों तक पहुंचने में 21 दिन लगे थे तो भारत ने ये आंकड़ा 10 दिन में ही छू लिया है.


-भारत ने पहली बार 1 लाख का आंकड़ा 5 अप्रैल को छुआ और उसके 10 दिन बाद ही 15 अप्रैल को एक दिन में 2 लाख नए मरीज इस वायरस से संक्रमित हुए. सरल शब्दों में कहें तो कोरोना वायरस इतनी खतरनाक गति से फैल रहा है कि इसने पूरे सिस्टम पर दबाव डाल दिया है.


हमने आपको बताया था कि कैसे अब मृत्यु की भी वेटिंग लिस्ट बन गई है और इसे आप दिल्ली के सबसे बड़े कब्रिस्तान से आई तस्वीरों से बेहतर समझ पाएंगे. दिल्ली के सबसे बड़े कब्रिस्तान में अब सिर्फ इतनी ही जगह बची है कि सिर्फ 200 लाशों को और दफनाया जा सकता है.


दिल्ली के ही एक श्मशान घाट में अब अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं बची है और आलम ये है कि जिस जगह कल तक गाड़ियां खड़ी होती है, जो पार्किंग एरिया था, वहां अब मरने वाले लोगों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है.


कोरोना वायरस की दूसरी लहर पहले से कितनी अलग 


कोरोना वायरस की दूसरी लहर पहले से कितनी अलग है, अब आप इसे कुछ सवालों से समझिए-


पहला सवाल ये है कि क्या दूसरी लहर में लोग ज्यादा मर रहे हैं? तो आंकड़ों के मुताबिक, इस बार लोग दोगुनी रफ्तार से संक्रमित हो रहे हैं, लेकिन मौतें कम हो रही हैं.


-1 अक्टूबर 2020 को पहली लहर के दौरान जहां हर हफ़्ते औसतन 82 हजार 241 मामले दर्ज हो रहे थे, तो दूसरी लहर में ये आंकड़ा बढ़ कर 1 लाख 43 हजार पहुंच गया है. इसी तरह 1 अक्टूबर 2020 को हर हफ्ते औसतन 813 मौतें हो रही थीं, लेकिन अब 787 मौतें हो रही हैं. यानी लोग संक्रमित ज्यादा हो रहे हैं लेकिन मौतें कम हो रही हैं.


-दूसरा सवाल है कि अगर मौतें कम हो रही हैं तो मृत्यु दर क्यों बढ़ रही है, तो इसका जवाब ये है कि इस समय कोरोना से होने वाली मौतों की दर 1.3 प्रतिशत है जो पिछले साल 16 जून को 3.4 प्रतिशत थी. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि दूसरी लहर खतरनाक नहीं है. दूसरी लहर में हर हफ्ते मृत्यु दर बढ़ रही है.


-5 अक्टूबर 2020 को हर हफ्ते मौतों की दर 1.1 प्रतिशत थी जो इस साल एक फरवरी को 0.8 प्रतिशत दर्ज की गई, लेकिन बाद में इसमें अचानक उछाल आया और अब ये 1.3 प्रतिशत हो गई है. यानी हर हफ़्ते 100 में से 1.3 प्रतिशत लोग इस वायरस से मर रहे हैं.