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चिट्ठियां और डायरीज सार्वजनिक करने से ब्रिटेन का इनकार


इस पूरे मामले की एक कड़ी है और वो कड़ी हैं ब्रिटेन के मशहूर इतिहासकार एंड्रयू लॉनी (Andrew Lownie), जो लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) और उनकी पत्नी पर एक पुस्तक भी लिख चुके हैं. उन्होंने ब्रिटेन के सूचना के अधिकार के तहत ब्रिटिश सरकार से 99.8 प्रतिशत दस्तावेज तो हासिल कर लिए हैं, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने कुछ पेपर्स ये कहते हुए देने से इनकार कर दिया है कि अगर ये चिट्ठियां और डायरीज सार्वजनिक हुईं तो ब्रिटेन के भारत और पाकिस्तान के साथ रिश्ते खराब हो जाएंगे.


ब्रिटेन की रॉयल फैमिली नहीं चाहती दस्तावेज सार्वजनिक हों?


लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) भारत के आखिरी वायसराय होने के साथ ब्रिटिश रॉयल फैमिली के एक महत्वपूर्ण सदस्य थे. वो बैटनबर्ग के राजकुमार लुइस (Prince Louis of Battenberg) और हेस्सी की रानी विक्टोरिया (Queen Victoria of Hesse) की संतान थे. यानी उनका ताल्लुक ब्रिटेन की उस रॉयल फैमिली से भी था, जिसने भारत पर 190 वर्षों तक राज किया. आज भी ब्रिटेन में राज्य के प्रमुख महारानी एलिजाबेथ दो (Head of State Queen Elizabeth Two) हैं. इसलिए ये भी सवाल उठता है कि क्या ब्रिटेन की रॉयल फैमिली नहीं चाहती कि माउंटबेटन और लेडी माउंटबेटन से जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक हों?


भारत-पाकिस्तान बंटवारे का फैसला कैसे लिया गया?


लॉर्ड माउंटबेटन और उनकी पत्नी एडविना माउंटबेटन (Edwina Mountbatten) दोनों को ही चिट्ठियां और डायरी लिखने का शौक था. और वो सामान्य दिनों के घटनाक्रम को भी अपनी डायरी में लिखा करते थे. यानी दिनभर में जो होता था, वो उसे अपनी डायरी में नोट कर लेते थे. इसलिए हो सकता है कि जिन दस्तावेजों को ब्रिटिश सरकार सार्वजनिक नहीं करना चाहती, उनमें ऐसी कोई जानकारी हो, जिससे ये पता चल सके कि भारत को आजादी देने का आधार क्या था? और भारत पाकिस्तान बंटवारे का फैसला कैसे लिया गया?


मोहम्मद अली जिन्ना को वर्ष 1940 तक खुद यकीन नहीं था कि भारत के विभाजन से पाकिस्तान जैसा देश भी बन सकता है, लेकिन 1947 आते आते ये कल्पना सच हो गई. आखिर ये हुआ कैसे? क्या वायसराय, जिन्ना, महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरु के बीच इस पर कोई गुप्त चर्चा हुई थी, जिसका जिक्र माउंटबेटन ने अपनी डायरी में किया था? 1947 में बंटवारे से पहले सबसे बड़ी चुनौती थी भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का निर्धारण करना और ये तय करना कि पाकिस्तान को कौन कौन से राज्य दिये जाएंगे? ये काम सिरिल रेडक्लिफ (Cyril Radcliffe) को सौंपा गया था. उनकी नेहरु, जिन्ना और माउंटबेटन के साथ कई मुलाकातें हुई थीं, जिनका जिक्र इन चिट्ठियों और Diary में जरूर किया गया, लेकिन इन मुलाकातों का एजेंडा क्या था, ये कभी पता नहीं चल पाया.


क्या माउंटबेटन के दबाव में संयुक्त राष्ट्र गए थे जवाहर लाल नेहरु?


15 अगस्त 1947 को जब भारत को आजादी मिली थी, उस समय भी लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) भारत को छोड़ कर जाना नहीं चाहते थे. वो भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के पहले गवर्नर जनरल बनना चाहते थे. भारत में महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरु जैसे नेता तो इसके लिए मान गए, लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना ने इससे इनकार कर दिया और तय किया कि वो खुद पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल बनेंगे. ये वही समय था, जब कश्मीर के भारत में विलय के बाद जवाहर लाल नेहरु 1 जनवरी 1948 को इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले गए, जो उनकी सबसे बड़ी भूल थी. इसलिए ये भी सवाल उठता है कि क्या इस फैसले में माउंटबेटन की कोई भूमिका थी? क्या उन्होंने ही इसके लिए नेहरु पर कोई दबाव बनाया था.


जवाहर लाल नेहरु ने लॉर्ड माउंटबेटन को दिया था फेवर?


एक और बात ये है कि जून 1948 तक लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mounbatten) भारत के गवर्नर जनरल बने रहे. उस समय भारतीय सेना के कमांडिंग जनरल भी अंग्रेजी मूल के रॉय बुशर (Roy Bucher) थे. उस समय देश की अंतरिम सरकार और देश की सेना लॉर्ड माउंटबेटन को ही रिपोर्ट करती थी. जबकि पाकिस्तान में ऐसा नहीं था. पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल खुद मोहम्मद अली जिन्ना बने थे और सेना की कमान भी उन्होंने अपने पास रखी थी. इससे पता चलता है कि आजादी के दौरान जवाहर लाल नेहरु ने लॉर्ड माउंटबेटन को फेवर दिया था. और शायद इसके पीछे भी कोई डील रही होगी, लेकिन पाकिस्तान ने शुरुआत से ही आत्मनिर्भर बनने का फैसला किया और लॉर्ड माउंटबेटन को उसके मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई मौका नहीं दिया.


पामेला माउंटबेटन की किताब में कई खुलासे


लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) और उनकी पत्नी एडविना माउंटबेटन (Edwina Mountbatten) के साथ जवाहर लाल नेहरु की बहुत गहरी मित्रता थी. और इस पर उनकी बेटी पामेला माउंटबेटन (Pamela Mountbatten) ने एक पुस्तक भी लिखी थी. इसका शीर्षक था- India Remembered A Personal Account of the Mountbattens, During the Transfer of Power. इसमें वो लिखती हैं कि नेहरु और लेडी माउंटबेटन के बीच गहरे प्रेम का रिश्ता था और उनके पिता लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) अपनी पत्नी और नेहरु के रिश्तों को अपने लिए बहुत उपयोगी मानते थे. ये बात बहुत महत्वपूर्ण है, मैं आपको फिर से बताता हूं. लॉर्ड माउंटबेटन को ऐसा लगता था कि उनकी पत्नी और नेहरु का रिश्ता उनके लिए फायदेमंद है.


एडविना माउंटबेटन ने अपने पति का करियर बचा लिया


इसका जिक्र ब्रिटेन के उस लेखक ने अपनी पुस्तक में भी किया है, जो वहां की अदालत से इन दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं. इस पुस्तक का नाम है, The Mountbattens. इसके Page Number 207 पर लिखा है कि जब आजादी से 3 महीने पहले मई 1947 में नेहरु, शिमला में माउंटबेटन के साथ छुट्टियां मना रहे थे, तब उन्होंने नेहरु से कहा कि वो आजादी के बाद भारत को कॉमनवेल्थ देशों का सदस्य बनाने पर विचार करें, लेकिन नेहरु ने इससे मना कर दिया. इसके बाद लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) ने अपनी पत्नी एडविना माउंटबेटन (Edwina Mountbatten) से उन्हें इस मुद्दे पर राजी करने के लिए कहा. और बाद में नेहरु इसके लिए राजी भी हो गए. इस पुस्तक के लेखक लिखते हैं कि एडविना माउंटबेटन ने उस दिन अपने पति लॉर्ड माउंटबेटन का करियर बचा लिया था.


लेडी माउंटबेटन को थी भारतीय राजनीति की अंदरुनी लड़ाइयों की जानकारी?


ऐसा कहा जाता है कि नेहरु, लेडी माउंटबेटन की कोई बात नहीं टालते थे और दोनों के बीच काफी अच्छे रिश्ते थे. मार्च 1957 को नेहरु ने लेडी माउंटबेटन को एक खत में ये लिखा था कि मुझे ये अनुभूति हुई है कि हमारे बीच गहरा जुड़ाव है. कोई अदृश्य शक्ति है, जो हमें एक दूसरे की तरफ खींचती है. नेहरु अपनी इन चिट्ठियों में अक्सर लेडी माउंटबेटन को भारतीय राजनीति की अंदरुनी लड़ाइयों के बारे में बताते थे, ये बताते थे कि अंबेडकर से उनके क्या मतभेद हैं, भारत के संविधान को लेकर क्या बहस चल रही है और देश के पहले लोक सभा चुनाव के दौरान क्या-क्या हो रहा है.


दो व्यक्ति एक दूसरे को पत्र में क्या लिखते हैं, इससे हमें कोई मतलब नहीं है. हमारा मकसद किसी के निजी जीवन को हेडलाइन नहीं बनाना है. बल्कि हमारा सवाल ये है कि नेहरु देश के पहले प्रधानमंत्री थे और वो भारत की अंदरुनी राजनीति और मुद्दों के बारे में लेडी माउंटबेटन को बता रहे थे. यानी ब्रिटेन की उस रॉयल फैमिली के साथ सारी जानकारियां शेयर कर रहे थे, जिसने भारत पर 190 वर्षों तक शासन किया. मैं आज अपने साथ 1952 की एक ऐसी ही चिट्ठी लाया हूं.


दस्तावेज सार्वजनिक होने पर हो सकते हैं कई खुलासे


वर्ष 1960 में जब लेडी माउंटबेटन की मृत्यु हुई तो उन्हें उनकी इच्छा के अनुरूप समुद्र में दफनाया गया और नेहरु ने इस मौके पर गेंदे के फूलों के साथ भारतीय नौसेना का समुद्री लड़ाकू जहाज आईएनएस त्रिशूल इंग्लैंड भेजा था. सोचिए उस समय भारतीय नौसेना का इस्तेमाल निजी कार्यों के लिए होता था. आजादी से तीन महीने पहले जब देश में तनाव का माहौल था, उस समय जवाहर लाल नेहरु माउंटबेटन फैमिली के साथ शिमला में छुट्टियां मना रहे थे.


आज हम एक सवाल आपके लिए छोड़ना चाहते हैं और वो ये कि जब देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ तो लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) और उनकी पत्नी सारे फैसले नेहरु के हिसाब से क्यों तय कर रही थीं. क्या ये पहले से तय था कि नेहरु प्रधानमंत्री बनेंगे और लॉर्ड माउंटबेटन भारत के पहले गवर्नर जनरल? हमें लगता है कि अगर ये दस्तावेज सार्वजनिक होते हैं तो इन पहलुओं पर काफी जानकारी मिल सकती है.


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