नई दिल्‍ली:  देश के किसी नेशनल हाइवे पर गाड़ी से 12 किलोमीटर का रास्ता तय करना हो तो आपको कितना वक्त लगेगा. आम तौर पर 12 से 15 मिनट. अगर ट्रैफिक जाम हो तो आपको आधे घंटे से लेकर एक घंटे तक का समय लग सकता है. लेकिन अगर ट्रैफिक जाम न हो, सड़क पर गाड़ी भी न हो और फिर भी 10 से 12 किलोमीटर की यात्रा तय करने में कई घंटों का समय लग जाए तो इसे आप क्या कहेंगे.


देश की राजधानी के बॉर्डर्स का हाल 


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देश की राजधानी के कई बॉर्डर्स पर आजकल यही हालात हैं. किसान आंदोलन का अधिकार लोगों के सड़क पर चलने के अधिकार के आड़े आ चुका है. दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर 26 नवंबर 2020 से किसान आंदोलन चल रहा है.  देश का सबसे लंबा नेशनल हाइवे नम्बर 44 इसकी वजह से बंधक बना हुआ है. श्रीनगर से कन्याकुमारी यानी देश के उत्तर को दक्षिण से जोड़ने वाला ये हाइवे देश की राजधानी में आते ही बेकार हो जाता है. वैसे तो ये हाइवे 3 हज़ार 745 किलोमीटर लम्बा है, लेकिन दिल्ली में इस हाइवे का 12 किलोमीटर का हिस्सा अब किसी काम का नहीं है. सिवाय किसान आंदोलन के.


सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन के नाम पर सड़क बंद है और इसकी वजह से आसपास के गांवों की गलियों में ट्रैफिक जाम लग रहे हैं. गांवों में रहने वाले कई लोग किसान हैं. इन गावों में सुबह-शाम के ट्रैफिक जाम ने इन किसानों का जीना दूभर कर दिया है. बॉर्डर पर बैठे किसानों के आंदोलनजीवी रूप से परेशान, सिंघु गांव में बने मजबूरी वाले हाइवे के बारे आप हमारी ये ग्राउंड रिपोर्ट पढ़िए-


छोटी सी सड़क बनी हाइवे का विकल्प 


नेशनल हाइवे 44 को आप जी टी करनाल रोड के नाम से भी जानते हैं, वहां पहुंचने के लिए आजकल एक छोटी सी सड़क से होकर जाना पड़ रहा है. दिल्ली हरियाणा बॉर्डर पर बने सिंघु गांव की एक छोटी सी सड़क है और ये हाइवे का विकल्प है. फिलहाल दिल्ली से जीटी करनाल रोड यानी नेशनल हाइवे 44 पर पहुंचने के लिए यही रास्ता है. 


किसान आंदोलन के नाम पर बंधक है 6 लेन की सड़क


पिछले 84 दिनों से सिंघु बॉर्डर बंद है. किसान आंदोलन के नाम पर 6 लेन की ये सड़क बंधक है. उसका नतीजा आपके सामने है.  ट्रैफिक जाम में फंसकर 15 मिनट के सफर को 3 घंटे लगाकर इस सड़क से वो लोग गुजरते हैं जिनके पास इस तकलीफ को झेलने के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं है.  कच्ची सड़कों पर वाहनों का भी बुरा हाल हो रहा है और लोगों का भी. 


वाहनों की धूल से बर्बाद हो रही खेती 


सिंघु गांव की सड़कें अचानक हज़ारों गाड़ियों का बोझ ढो रही हैं.  यहां भी कई किसान रहते हैं, जो सिंघु बॉर्डर के किसान आंदोलन की वजह से अपनी फसलें खराब होते देखने को मजबूर हैं. रोजाना हजारों वाहनों से उड़ने वाली धूल की वजह से खेती बर्बाद हो रही है.  शोर और धूल से जीवन और फसलें दोनों का हाल खराब है. इस गांव के किसानों को इस बात का ज्यादा दुख है कि उनके दर्द की वजह किसान ही बने हैं. 


यहां के किसानों ने बताया कि सारी फसल खराब हो गई. इस बात का दुख है कि इस बार कुछ नहीं मिलेगा. आंदोलन करने वाले किसान को यहां आकर देखना चाहिए. 



आम नागरिकों के सड़क पर चलने का अधिकार धूल खा रहा


यहां से गुजरने वाले लोग भी कम परेशान नहीं हैं. कोई कच्चे रास्ते पर लड़खड़ा रहा है, तो  किसी को गलियों की सड़कों पर कतार में अपनी बारी का इंतजार है. दिल्ली बॉर्डर से 14 किलोमीटर तक इसी तरह की यात्रा को झेलते हुए हरियाणा के राई में लोगों को नेशनल हाइवे के दर्शन होते हैं. दिल्ली के तीन बॉर्डरों पर कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन के नाम पर आंदोलन के अधिकार का प्रयोग जारी है. लेकिन आम नागरिकों के सड़क पर चलने का अधिकार धूल खा रहा है.