Uddhav Thackeray Sene (UBT): महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों ने महाविकास अघाड़ी को लगभग खत्म कर दिया. कांग्रेस और शरद पवार की राकांपा बड़ी मुश्किल से दहाई का आंकड़ा छू सकी. सबसे गहरा सदम उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली SUBT को लगा. जिन पर उनके पुराने साथी ये कहते हुए तंज कस रहे हैं कि 'माया मिली न राम'
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Will Uddhav Thackeray Quit MVA: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अपमानजनक हार के बाद महा विकास अघाड़ी (MVA) के भीतर कलह का दौर तेज हो गई है. कहा जा रहा है कि ये वो लोग हैं, जिन्होंने पहले भी अपनी आवाज उठाई थी, लेकिन तब उनकी आवाज दबा दी गई. इन लोगों को कांग्रेस का साथ पहले भी पसंद नहीं था लेकिन उद्धव के आगे तब किसी की नहीं चली और सब मुंह बंद करके बैठे रहे. महाराष्ट्र में महायुति ने महा विकास अघाड़ी का सूपड़ा साफ कर दिया तो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के नेताओं को मुंह खोलने का मौका मिल गया. अब यही नेतागड़ उद्धव पर अघाड़ी छोड़ने का दबाव बना ही नहीं रहे बल्कि उसे बढ़ा भी रहे है.
मुंबई से आ रही ज्वलंत खबरों के मुताबिक उद्धव ठाकरे द्वारा आयोजित एक बैठक में सेना (UBT) के 20 विधायकों में से अधिकांश ने कथित तौर पर उद्धव ठाकरे से जल्द से जल्द महाविकास अघाड़ी का साथ छोड़ने की अपील की.
सेना (UBT) का जमीनी स्तर का कैडर, इस बार महाराष्ट्र की एक इंच जमीन में कहीं भी नजर नहीं आया. दूसरी ओर शिवसेना और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की एक एक बात का असर मतदाताओं पर पड़ा और उनके कैडर ने पूरे उत्साह से काम किया और एमवीए को उखाड़ फेंकते हुए खुद को शिवसेना का असली वारिस साबित कर दिया.
आदित्य ठाकरे और संजय राउत अलाप रहे अलग सुर
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सूत्रों ने हवाले से लिखा है कि उद्धव ठाकरे इसके लिए अभी तैयार नहीं है. उद्धव के अलावा उनका बेटा आदित्य और उनके प्रवक्ता संजय राउत विधायकों की बात सुनने के लिए तैयार नहीं है. राउत, बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता दिखाने के नाम पर अभी महाविकास अघाड़ी गठबंधन बनाए रखने के इच्छुक हैं.
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अपने विधायकों की आवाज को फिर अनसुना करेंगे उद्धव?
ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या उद्धव ठाकरे अपने अहं के चलते एक बार फिर अपने जूनियर नेताओं और चुने हुए विधायकों की अनसुनी कर देंगे? MVA छोड़ने के पैरोकारों का मानना है कि अब समय आ गया है कि सेना (UBT) अलग रास्ता बनाए. अपने दम पर बढ़े और किसी के रहमोकरम पर न चले. इस एपिसोड को लेकर महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने पार्टी के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे की याद दिलाते हुए कहा, 'शिवसेना कभी सत्ता का पीछा करने के लिए नहीं बनी है. सत्ता तो स्वाभाविक रूप से तब अपने आप आएगी जब हम अपनी विचारधारा पर दृढ़ रहेंगे.'
अघाड़ी छोड़ने का दबाव बनाने वालों का कहना है कि विधानसभा चुनावों में उन्हें यानी 'उद्धव सेना' (UBT) को 9.95%वोट मिले, जो एकनाथ शिंदे की शिव सेना से करीब 3 प्रतिशत कम रहे. जबकि लोकसभा चुनावों में 6 महीने पहले सेना (UBT) को 16.72 % वोट मिले थे. इन नतीजों से साफ है कि जनता उन्हें ही शिवसेना का असली वारिस मान चुकी है. नतीजों की बात करें तो सेना यूबीटी को 20, कांग्रेस को 16 और राकांपा (शप) को 10 सीटें मिली थीं.
गौरतलब है कि खुद बाला साहेब कभी मुख्यमंत्री नहीं बने. वो किंग बनने के बजाए हमेशा किंग मेकर रहे. उनकी मर्जी के बगैर मुंबई में कभी पत्ता भी नहीं हिलता था. अंबादास दानवे ने अपनी बात बढ़ाते हुए कहा, कांग्रेस से आजाद होने के फैसले से शिवसेना (UBT) की नींव मजबूत होगी. चूंकि एकनाथ शिंदे ने बंटवारे के बाद अधिकांश विधायकों और सांसदों को अपने साथ रखा था, इससे उन्हें हम पर सवाल उठाने में आसानी हुई.'
ऐसे कुछ नेता और हैं जो सेना यूबीटी पर कांग्रेस का हाथ छोड़ने का दबाव बना रहे हैं. उनका मानना है कि एकनाथ शिंदे ने बाला साहेब का नाम पूरे हमेशा बड़े आदर और पूरे सम्मान से लिया. इसके साथ ही शिंदे ने उद्धव सेना (यूबीटी) पर कांग्रेस से हाथ मिलाकर बाल ठाकरे की विचारधारा और हिंदुत्व के साथ विश्वासघात करने का आरोप उद्धव पर लगाया उस पर पार्टी के मूल काडर ने भरोसा कर लिया. इसका नतीजा ये निकला कि तब से अबतक सेना (यूबीटी) को कई झटके लगे, जिसमें उनका चुनाव चिन्ह तक बदल गया.