नई दिल्‍ली: Justice Delayed is Justice Denied...ये लाइन तो आपने कई बार सुनी होगी लेकिन आज जो खबर हम आपको बताने जा रहे हैं.  उसे पढ़कर आप भी सोच में पड़ जाएंगे कि क्या देरी से मिले न्याय को सच में न्याय माना जा सकता है. वर्षों की देरी के बाद अगर कोर्ट कानूनी तरीके से सही फैसला भी देती है, तो देरी की वजह से कई जीवन प्रभावित हो जाते हैं. 


परिवार के 7 लोगों की हत्या


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आज हम DNA में एक ऐसी खबर लेकर आए हैं, जिसमें एक मां है जिसे फांसी की सजा दी जा चुकी है. स्‍वतंत्र भारत में यानी वर्ष 1947 के बाद पहली बार किसी महिला को फांसी होने वाली है और एक मासूम बेटा है, जो अपने लिए मां का हक मांग रहा है. 


ये मामला उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले का है. जहां शबनम नाम की एक लड़की ने अपने परिवार के सभी 7 लोगों की हत्या कर दी थी क्योंकि, वो अपने प्रेमी से शादी करना चाहती थी और घर वाले शादी के खिलाफ थे. शबनम को लगा कि अगर वो अपने घर वालों को रास्ते से हटा दे तो शादी भी हो जाएगी और घर की संपत्ति पर भी उसका कब्जा हो जाएगा,  जिससे वो अपनी जिंदगी आराम से गुजार लेगी. लेकिन शबनम अपराध के बाद अपने प्रेमी के साथ गिरफ्तार कर ली गई और उन दोनों को 2010 में अमरोहा की अदालत ने फांसी की सजा सुना दी.


बेटे की राष्‍ट्रपति से मार्मिक अपील 


अदालत के इस मामले को अब लगभग 13 वर्ष बीत चुके हैं. शबनम ने दिसंबर 2008 में जेल में एक बेटे को जन्म दिया था. अब ये कहानी उस बच्चे की भी है. वो बच्चा चाहता है कि देश का कानून शबनम को जीवनदान दे  क्योंकि, वो उसकी मां है. बच्चे ने राष्‍ट्रपति से एक मार्मिक अपील भी की है. अब सवाल ये है कि शबनम को फांसी होगी या नहीं.  क्या सात खून माफ किए जा सकते हैं?


यूं तो मां बच्चों को हर मुश्किल से बचाती है लेकिन क्या इस मामले में बेटा अपनी मां को बचा पाएगा?


आपके मन में शायद सवाल हो कि शबनम और उसके प्रेमी ने सात लोगों की हत्या कैसे की होगी और फिर वो कैसे पकड़े गए?


पुलिस ने 5 दिन के अंदर किया मर्डर केस का खुलासा 


वर्ष 2008 को अप्रैल के महीने में अमरोहा के एक ही परिवार के 7 लोग मारे गए थे. एक बेटी ने अपने माता-पिता, भाई भाभी, बहन और एक 11 महीने के मासूम समेत 7 लोगों की हत्या कर दी थी.  लड़की का नाम शबनम था. उसने ये काम अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर किया.  शबनम पोस्ट ग्रेजुएट थी यानी एक पढ़ी-लिखी लड़की थी और सलीम 8वीं पास था. 


परिवार इस रिश्ते के लिए राजी नहीं था. शबनम शादी भी करना चाहती थी और अपने सुरक्षित भविष्य के लिए उसे प्रॉपर्टी भी चाहिए थी.  इसलिए शबनम ने परिवार को चाय में नींद की गोलियां मिला कर पिला दी. जब सब बेहोश हो गए दो दोनों ने मिलकर सबको मार दिया. पहले शबनम ने पुलिस को बताया कि डकैतों ने उसके परिवार को मार दिया है और वो इसलिए बच गई क्योंकि, वो छत पर सो रही थी जबकि बाकी परिवार नीचे कमरे में. लेकिन पुलिस 5 दिन के अंदर ही मामला खुल गया और शबनम और सलीम दोनों गिरफ्तार कर लिए गए. 


शबनम इस वक्त रामपुर जेल में बंद है और रामपुर जेल ने अमरोहा की जिला अदालत से शबनम की फांसी के लिए Death Warrant जारी करने के लिए याचिका लगाई है. इस मामले पर कल अमरोहा की जिला अदालत में सुनवाई होनी है. अब सवाल ये है कि क्या एक बेटे को उसकी मां मिलेगी या शबनम को फांसी होगी?


7 खून माफ किए जा सकते हैं?


सात खून, 13 वर्ष और एक मासूम बेटा . बेटे को मां मिलेगी या शबनम के अपराध की सजा फांसी ही होगी. क्या बेटे की अपील पर सात खून माफ होंगे या कानून का फैसला बरकरार रहेगा. आपने ये तो सुना कि शबनम का गुनाह क्या है लेकिन अब एक बेटा पूछ रहा है कि मेरा गुनाह क्या है. नन्हे हाथों से इस बच्चे ने तख्ती पर राष्‍ट्रपति के नाम जो अपील लिखी है. उसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है. 


दिसंबर 2008 में ये बच्चा जेल में पैदा हुआ.  कानून के मुताबिक,  6 वर्ष तक बच्चे को मां के साथ ही रखा जाना चाहिए. इसलिए 6 वर्ष इसने अपनी मां के साथ जेल में बिताए. उसके सुख दुख देखे. जेल का जीवन देखा और बचपन भी वहीं बिताया. ये बच्चा अब 13 साल का हो चुका है. इसकी एक हंसती-खेलती ज़िंदगी है और मां-बाप से बढ़कर चाहने वाले संरक्षक हैं. लेकिन इस बच्चे की असली मां सलाखों के पीछे है और मां कैसी भी हो, वो मां ही होती है. 



शबनम के बेटे का क्‍या होगा?  


6 साल और 7 महीने का वक्त बिताने के बाद इस बच्चे की जिंदगी का दूसरा अध्याय शुरू हुआ. 6 वर्ष के बाद बच्चा जेल में नहीं रह सकता था.  लेकिन उसे अपनाने के लिए ना शबनम के परिवार में बचे उसके चाचा चाची तैयार थे और न ही सलीम के घरवाले.  बच्चे की कस्टडी के लिए पति-पत्नी उस्मान और वंदना आगे आए.  उस्मान शबनम के कॉलेज में उससे दो साल जूनियर थे. यहां से इस मासूम की नई जिंदगी शुरू हुई. 


आज ये बच्चा एक अच्छे स्कूल में पढ़ रहा है. अच्छी परवरिश में पल रहा है, लेकिन इसकी बड़ी मां यानी वंदना का कहना है कि ये बच्चा आज भी दोहरी ज़िंदगी जी रहा है.  जेल से पहले और जेल के बाद की.


इस बीच अमरोहा के बावनखेड़ी गांव के इस घर में एक बार फिर हलचल है.  अब यहां शबनम के चाचा चाची रह रहे हैं. 13 साल बीतने के बाद इस वारदात की यादें भी थोड़ी धुंधली पड़ चुकी हैं.  शायद इसीलिए अब परिवार और पड़ोसी ये मांग कर रहे हैं कि उसे फांसी न दी जाए. 


मथुरा जेल में बाहर हलचल है. मथुरा में ही उत्तर प्रदेश की एकमात्र जेल है, जहां महिला फांसी घर है. मथुरा जेल में 1870 में इस फांसी घर को बनाया गया था. लेकिन आजाद भारत में यानी 1947 से लेकर अब तक किसी भी महिला को फांसी नहीं दी गई है. सूत्रों के मुताबिक, फांसी घर को दुरुस्त किया जा रहा है. फंदा मंगवाया गया है और दूसरी तरफ शबनम के वकील बचाव के कानूनी विकल्प तलाश रहे हैं. 


जिस प्रॉपर्टी को पाने के लिए ये कत्ल किए गए. उसे अब शबनम दान करने का मन बना चुकी है. शबनम और सलीम का जूनूनी प्यार कब का हवा हो चुका है. मामले को अब 13 साल बीच चुके हैं. क्या शबनम के सात खून माफ होंगे या शबनम को फांसी होगी और ये फैसला एक नई मिसाल बनेगा. ये आज साफ हो सकता है. अमरोहा की अदालत में इस मामले की निर्णायक सुनवाई है. जहां रामपुर जेल की डेथ वारेंट जारी करने की अर्जी पर फैसला होना है. 


शबनम के पास ये विकल्‍प 


ये खबर इस बात का बहुत बड़ा उदाहरण है कि न्याय मिलने में देरी हो जाए तो उसके परिणाम कितने गंभीर होते हैं. 2008 में हुए इस हत्याकांड में दो साल बाद यानी 2010 में अमरोहा की जिला अदालत ने शबनम और सलीम को फांसी की सजा सुना दी थी. उसके बाद ये केस इलाहाबाद हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक गया. लेकिन फांसी की सजा बरकरार रही. इस मामले में 2016 में राष्ट्रपति के पास शबनम की दया याचिका खारिज हो चुकी है. लेकिन अभी भी कई कानूनी विकल्प बाकी बचे हैं.



एक एनजीओ ने शबनम के लिए एक बार फिर रामपुर जेल के माध्यम से उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पास दया याचिका भेजी है. 


इस मामले में एक और विकल्प शबनम के पास होगा. सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले में पुनर्विचार याचिका यानी रिव्‍यू पिटीशन भी दाखिल की जा सकती है.



भारत में कन्विक्‍शन रेट सबसे कम


भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहां कन्विक्‍शन रेट यानी सजा मिलने की दर सबसे कम है. IPC के तहत आने वाले अपराधों में सजा मिलने की दर सिर्फ 40 प्रतिशत है और हैरानी की बात ये है कि भारत में कन्विक्‍शन रेट लगातार घट रहा है. वर्ष 2016 में गंभीर अपराध के मामलों में सजा मिलने की दर 46 प्रतिशत थी, जिसमें अब करीब 5 से 6 प्रतिशत की कमी आ चुकी है.  National Crime Records Bureau यानी NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2016 में गंभीर अपराधों के मामले में 5 लाख 96 हजार लोगों को सजा मिली थी, जबकि 6 लाख 78 हजार से ज्‍यादा लोग बरी हो गए थे. 


अदालतों में  साढ़े तीन करोड़ से ज़्यादा मुकदमे लंबित


इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि हमारी न्याय प्रणाली पूरी दुनिया के मुकाबले बहुत सुस्त रफ़्तार से काम करती है. भारत की अदालतों में इस समय साढ़े तीन करोड़ से ज़्यादा मुकदमे लंबित हैं.



नवंबर 2019 तक के आंकड़ों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग केस की संख्या करीब 54 हजार, अलग-अलग हाई कोर्ट में करीब 44 लाख 75 हजार और निचली अदालतों में 3 करोड़ 14 लाख मामलों में कोई फैसला नहीं आया है. 




हम यहां किसी की तरफदारी नहीं कर रहे हैं. हम ये नहीं कह रहे हैं कि किसे फांसी मिलनी चाहिए किसे नहीं. पर आज आपके घर में ये बहस भी जरूर होगी कि शबनम को फांसी होगी या नहीं. जुर्म के वक्त शबनम की उम्र 25 साल थी. शबनम एक बेटी थी पर उसने बेटी होने का फर्ज नहीं निभाया. अपनी मां की हत्या करने में उसके हाथ नहीं कांपे.  पर उसका बेटा अपनी मां के लिए राष्ट्रपति से प्रार्थना कर रहा है.