DNA ANALYSIS: आखिर 26 जनवरी के बाद भी क्यों नहीं बदला देश का दुर्भाग्य?
26 जनवरी के बाद हर किसी के मन में एक ही सवाल था कि किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे नेता किस मुंह से हिंसा करने वालों का पक्ष लेंगे? किसान नेता किस आधार पर अपने आंदोलन को सही ठहराएंगे? और लाल किले पर एक खास धर्म का झंडा फहराने वाले लोग इस देश को क्या जवाब देंगे?
नई दिल्ली: अंग्रेजी की एक मशहूर कहावत है 'Love is Blind' यानी प्यार अंधा होता है. लेकिन आज हम कहना चाहते हैं Politics is Also Blind यानी राजनीति भी अंधी होती है. क्योंकि 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद किसानों का जो आंदोलन एक्सपोज हो गया था ऐसा लग रहा था कि अब इन किसानों को समर्थन मिलना मुश्किल हो जाएगा और ये अपना आंदोलन खत्म कर देंगे. उस आंदोलन को समर्थन देने के लिए हमारे देश के बड़े-बड़े नेताओं ने अच्छे- अच्छे बहाने ढूंढ लिए हैं और इस बात को भी साबित कर दिया है कि भारत में नेता सत्ता के लालच में अक्सर अंधे हो जाते हैं. उन्हें हर किसी चीज में अपना हित नजर आता है लेकिन देश का गौरव दिखाई नहीं देता.
कुछ सवाल, जिनके जवाब कभी नहीं मिलेंगे!
26 जनवरी के बाद हर किसी के मन में एक ही सवाल था कि किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे नेता किस मुंह से हिंसा करने वालों का पक्ष लेंगे? किसान नेता किस आधार पर अपने आंदोलन को सही ठहराएंगे? और लाल किले पर एक खास धर्म का झंडा फहराने वाले लोग इस देश को क्या जवाब देंगे?
हिंसा के बाद हमारे मन में भी यही सवाल थे लेकिन अब हमें लगता है कि इन सवालों के जवाब हमें कभी नहीं मिलेंगे. क्योंकि एक बार फिर से देश में राजनीति शुरू हो गई है और इस राजनीति में अंधे हो चुके नेता उन किसानों का बेशर्मी से समर्थन कर रहे हैं जिन्होंने 26 जनवरी को देश से उसका गौरव लूटने की कोशिश की थी और इसीलिए सबसे पहले आपको ये समझना चाहिए कि हमारे देश की राजनीतिक और उसका दुर्भाग्य 26 जनवरी के बाद भी क्यों नहीं बदला.
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कांग्रेस के लिए देश से ऊपर राजनीति
शुक्रवार से संसद का बजट सत्र शुरू हो गया और इसकी शुरुआत राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण से हुई. अपने अभिभाषण में राष्ट्रपति ने 26 जनवरी को हुई हिंसा को दुर्भाग्यपूर्ण बताया लेकिन राष्ट्रपति जब ये बातें बोल रहे थे तब कांग्रेस समेत 18 विपक्षी पार्टियों के सांसद उन्हें सुनने के लिए सदन में मौजूद नहीं थे. आप सोचिए इन पार्टियों के लिए देश और उसका स्वाभिमान कितना मायने रखता है? शुक्रवार को राहुल गांधी समेत कांग्रेस के सांसदों ने संसद परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने धरना दिया और किसान आंदोलन का फिर से समर्थन किया. इससे ये बात भी साबित होती है कि राहुल गांधी को भारत के 134 करोड़ 95 लाख लोगों से कोई लेना देना नहीं है. उन्हें सिर्फ उन 5 लाख लोगों की चिंता है जो आंदोलन के नाम पर हिंसा करते हैं.
और सबसे अहम सरकार की सख्ती के बावजूद किसानों ने ऐलान किया है कि वो अपना आंदोलन खत्म नहीं करेंगे और ना ही हिंसा की जिम्मेदारी लेंगे? मतलब हिंसा करेंगे और जब जिम्मेदारी लेने की बात आएगी तो भाग जाएंगे.
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राजनीति का पर्यटन स्थल बना गाजीपुर बॉर्डर
26 जनवरी के बाद भी हमारे देश का दुर्भाग्य क्यों नहीं बदला है इसे आप इस बात से समझ सकते हैं कि अब गाजीपुर बॉर्डर राजनीति का नया पर्यटन स्थल बन गया है. जहां शुक्रवार को राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी भी पहुंचे और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी अपनी हाजिरी लगाई और राकेश टिकैत का समर्थन किया. जिनपर हिंसा के लिए किसानों को भड़काने के आरोप हैं. यानी हमारे देश के नेता सत्ता के लालच में इस कदर अंधे हो चुके हैं कि उन्होंने किसान आंदोलन को अपना समर्थन देने के लिए नए-नए बहाने ढूंढ लिए हैं और उनकी राजनीतिक गाड़ी फिर से पटरी पर लौट आई है.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गणतंत्र दिवस के मौके पर हुई हिंसा को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और हिंसा का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान सभी को अभिव्यक्ति की आजादी देता है, उसका सम्मान करता है. लेकिन गणतंत्र दिवस के मौके पर जिस तरह हिंसा हुई वो सही नहीं थी. राष्ट्रपति जब ये बातें बोल रहे थे तब कांग्रेस सहित 18 विपक्षी पार्टियों के सांसद उन्हें सुनने के लिए संसद में मौजूद नहीं थे. उन्होंने किसानों के समर्थन में बजट सत्र का बहिष्कार किया और उन्हें लगता है कि ऐसा करके वो किसानों की मदद कर रहे हैं.
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देश के स्वाभिमान से राहुल गांधी ने समझौता कर लिया?
यही नहीं राहुल गांधी सहित कांग्रेस के सांसदों ने संसद परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने धरना दिया और केंद्र सरकार को किसान विरोधी बताते हुए तीनों कृषि कानून को वापस लेने की मांग की. राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि लाल किले पर जो हिंसा हुई है, उसके पीछे किसानों को बदनाम करने की साजिश है. हिंसा के बाद किसानों को राहुल गांधी का ये समर्थन बताता है कि उन्होंने देश के स्वाभिमान से समझौता कर लिया है और वो ऐसे लोगों का साथ देने के लिए तैयार हैं जिन्होंने गणतंत्र दिवस पर देश को दुनिया के सामने शर्मसार करने की कोशिश की.
पीएम मोदी की विपक्ष से अपील
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी पार्टियों से कहा कि लोकतंत्र की मर्यादाओं का पालन होना चाहिए और सभी नेताओं को चाहे वो सरकार में हों या विपक्ष में उन्हें देशहित सबसे ऊपर रखना चाहिए.
गाजीपुर बॉर्डर बना किसान आंदोलन का केंद्र
किसान आंदोलन का सारा फोकस अब गाजीपुर बॉर्डर पर शिफ्ट हो गया है. गुरुवार रात राकेश टिकैत ने कहा था कि वो आंदोलन खत्म नहीं करेंगे, भले ही पुलिस गोली चला दे. उनके इस बयान के बाद गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों की संख्या और बढ़ गई है. प्रशासन किसानों को बॉर्डर से हटाने की कोशिश कर रहा है. लेकिन किसान अब भी वहां बैठे हुए हैं.
किसानों का शक्ति प्रदर्शन
सबसे अहम बात ये है कि किसान नेता राकेश टिकैत के समर्थन में शुक्रवार को मुजफ्फरनगर में महापंचायत भी हुई. ये महापंचायत दरअसल राकेश टिकैत के समर्थन में शक्ति प्रदर्शन जैसी थी. इसमें ये फैसला लिया गया कि गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन जारी रहेगा. राकेश टिकैत के भाई नरेश टिकैत भी भारतीय किसान यूनियन के नेता हैं और उनका कहना है कि जब तक किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं होगा, आंदोलन चलता रहेगा.
राजनीति के 'राजाबाबू'
हमने आपको पहले ही बताया था कि राजनीति के राजाबाबू, किसान आंदोलन से अपनी राजनीति को चमकाना चाहते हैं. 26 जनवरी को जब लालक़िले पर हिंसा हुई थी तो योगेंद्र यादव ने कहा था कि ट्रैक्टर परेड में जिस तरह हिंसा हुई उसके लिए वो शर्मिंदा हैं और वो इसकी जिम्मेदारी लेते हैं. लेकिन 72 घंटे के भीतर उनका फिर से हृदय परिवर्तन हो गया है. शुक्रवार को योगेंद्र यादव दिल्ली-यूपी बॉर्डर गए. जहां उन्हें भी राकेश टिकैत के आंसुओं ने नई ऊर्जा दे दी. उनको ये लगता है कि टीवी कैमरों के सामने राकेश टिकैत ने जो आंसू बहाए थे, उसने किसानों के कलंक को धो दिया है.
जांच में जुटी दिल्ली पुलिस
इस राजनीति के बीच सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस ने अपनी जांच तेज कर दी है. शुक्रवार को दिल्ली पुलिस की फॉरेंसिक टीम ने गाजीपुर बॉर्डर जाकर सबूतों को जमा किया, जहां से गणतंत्र दिवस के दिन प्रदर्शनकारी ट्रैक्टर लेकर लालक़िला पहुंचे थे और तोड़फोड़ की थी.
हरियाणा की सरकार ने अंबाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल सहित 13 जिलों में Voice Call को छोड़कर इंटरनेट सेवाओं को 30 जनवरी शाम 5 बजे तक के लिए बंद करने का निर्णय लिया है. सोनीपत, पलवल और झज्जर में पहले से ही इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाई गई है.
जब भी कोई आंदोलन अपने उद्देश्य से भटक जाता है या फिर देशविरोधी लोगों द्वारा हाइजैक कर लिया जाता है तो ये स्थिति विपक्षी पार्टियों को बहुत अच्छी लगती है. किसान आंदोलन के साथ अब फिर से यही हो रहा है. किसानों के आंदोलन में अब पोलिटिकल टूरिज्म पार्ट-2 शुरू हो चुका है.
आंदोलन को खाद-पानी देने पहुंचे सिसोदिया
उत्तर प्रदेश की सरकार ने गुरुवार को आंदोलन को खत्म कराने के लिए गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों को पानी और बिजली की सप्लाई रोक दी थी. ताकि आंदोलनकारियों को हटाया जा सके. लेकिन योगी सरकार के इस आदेश से दिल्ली सरकार को राजनीति का नया मौका मिल गया. गुरुवार को दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, उस गाजीपुर बॉर्डर पर गए, जहां किसान नेता राकेश टिकैत प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्हें ऐसा लग रहा था कि जो आंदोलन दम तोड़ रहा है, उसे फिर से जिंदा करने के लिए खाद-पानी देना जरूरी है. इसलिए वो गाजीपुर बॉर्डर पर पानी की सप्लाई को बहाल करवाने पहुंचे थे.
दिल्ली सरकार को प्रदर्शनकारियों की चिंता
दिल्लीवाले भले ही पिछले 65 दिनों से बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन से परेशान हों, लेकिन दिल्ली सरकार को इसकी कोई चिंता नहीं है. उन्हें चिंता है उन प्रदर्शनकारियों की, जिन्होंने 26 जनवरी को देश के सम्मान को ट्रैक्टर से रौंद दिया था. उन्हें चिंता है उन प्रदर्शनकारियों की जो दिल्ली के पुलिसकर्मियों को ट्रैक्टर से कुचलना चाहते थे. उन्हें चिंता उस किसान नेता राकेश टिकैत की है, जो गोली-बंदूक की बातें करके किसान आंदोलन में हिंसा फैलाना चाहता है.
दिल्ली पुलिस से भिड़े आप नेता
दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर भी आम आदमी पार्टी के मंत्री-विधायक पहुंच गए उन्हें भी प्रदर्शनकारियों के खाने-पीने और ठहरने की चिंता हो रही थी. वे दिल्ली पुलिस के अफसरों से ही उलझ गए। मंत्री सत्येंद्र जैन ने शायद 26 जनवरी की उन तस्वीरों को नहीं देखा है, जब प्रदर्शनकारी दिल्ली के पुलिसकर्मियों को ट्रैक्टर से कुचलने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन झूठे आरोप और सहूलियत वाली सियासत दिल्ली सरकार को ज्यादा पसंद है.
कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा भी गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे और उन्होंने किसानों के आंदोलन को समर्थन का वादा किया. यानी कांग्रेस भी सियासी गेम में पीछे नहीं रहना चाहती है.
एक और नेता हैं अभय चौटाला. ये हरियाणा की राजनीतिक पार्टी INLD के नेता हैं. गुरुवार को इन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया. उनको ऐसा लग रहा था कि किसानों से ज्यादती हो रही है और इस्तीफा देकर वो किसानों की मदद कर सकते हैं. उन्हें किसान नेता राकेश टिकैत में सियासत का नया चेहरा नजर आ रहा है और अभय चौटाला ने कह दिया है कि वो शनिवार को राकेश टिकैत से मिलने गाजीपुर जाएंगे.