Explainer: क्या पीक ऑवर में गाड़ी निकाली तो दिल्ली में न्यूयॉर्क की तरह लगेगा टैक्स? भारत में कितना चलेगा ये फॉर्मूला
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Explainer: क्या पीक ऑवर में गाड़ी निकाली तो दिल्ली में न्यूयॉर्क की तरह लगेगा टैक्स? भारत में कितना चलेगा ये फॉर्मूला

Traffic Congestion: क्या दिल्ली जैसे शहरों में न्यूयॉर्क की तरह भीड़भाड़ वाले इलाकों में ट्रैफिक टैक्स लागू किया जा सकता है. न्यूयॉर्क ने हाल ही में अपने सिटी सेंटर में कंजेशन प्राइसिंग लागू की है. क्या यह मॉडल दिल्ली की समस्याओं का समाधान बन सकता है. इसे समझना जरूरी है. 

Explainer: क्या पीक ऑवर में गाड़ी निकाली तो दिल्ली में न्यूयॉर्क की तरह लगेगा टैक्स? भारत में कितना चलेगा ये फॉर्मूला

Delhi Traffic Tax Model: देश के कई मेट्रोपोलिटन शहरों में पिछले कई सालों से भीड़ बढ़ रही है. इससे उस खास इलाके में जनसंख्या घनत्व भी बढ़ रहा है. राजधानी दिल्ली की सड़कों पर भी रोजाना का ट्रैफिक ना सिर्फ लोगों के धैर्य की परीक्षा लेता है, बल्कि समय और ईंधन की भी बर्बादी करता है. क्या दिल्ली जैसे शहरों में न्यूयॉर्क की तरह भीड़भाड़ वाले इलाकों में ट्रैफिक टैक्स लागू किया जा सकता है? असल में न्यूयॉर्क ने हाल ही में अपने सिटी सेंटर में कंजेशन प्राइसिंग लागू की है, जिससे ट्रैफिक को नियंत्रित करने और पर्यावरण सुधारने की कोशिश की जा रही है. क्या यह मॉडल दिल्ली की ट्रैफिक समस्याओं का समाधान बन सकता है? आइए इसे समझते हैं.

आखिर न्यूयॉर्क में कौन सी पॉलिसी लागू हुई है.. 
दरअसल, अमेरिकी शहर न्यूयॉर्क में जनवरी 2025 से यह नई पॉलिसी लागू की गई है.. इस पॉलिसी के तहत सेंट्रल मैनहटन में प्रवेश करने वाले ड्राइवर्स को पीक ऑवर में 775 रुपये करीब 9 डॉलर तक का टैक्स देना होगा. इससे पहले सिंगापुर, लंदन, स्टॉकहोम और मिलान जैसे शहरों में भी इस तरह की योजनाएं सफल रही हैं. इन देशों में टैक्स का उद्देश्य ट्रैफिक को कम करना और सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहित करना है.

क्या दिल्ली में आसान है ये सब..?
दिल्ली जैसे शहर में इस योजना को लागू करना चुनौतीपूर्ण जरूर है लेकिन इस पर काम किया जा सकता है. शहर में हर दिन लाखों गाड़ियां सड़कों पर उतरती हैं. जिनमें से कई सेंट्रल दिल्ली जैसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाती हैं. अगर इस नीति को सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह समय और संसाधनों की बचत के साथ-साथ प्रदूषण कम करने में मददगार साबित हो सकती है. 

कौन सा सिस्टम पहले लाया जा सकता है.. 
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में इस पर केस स्टडी की गई. रिपोर्ट में बताया गया कि अन्य देशों की तरह, दिल्ली में भी इसे इलेक्ट्रॉनिक टोल प्रणाली के जरिए लागू किया जा सकता है. जैसे लंदन में प्रति दिन 1600 रुपये का शुल्क लगता है और स्टॉकहोम में पीक और ऑफ-पीक सीजन के आधार पर टैक्स अलग-अलग होता है. भारत में ऐसी योजनाएं ट्रैफिक कम करने के साथ-साथ आर्थिक लाभ भी दे सकती हैं.

तो इसका फायदा किसको होगा?
वैसे तो इसके फायदे कई हो सकते हैं, आर्थिक के साथ-साथ भीड़ नियंत्रण भी. जैसे न्यूयॉर्क में इस योजना से 15 अरब डॉलर (करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये) की आमदनी की उम्मीद है. यह ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने में काम आएगी. लंदन और मिलान जैसे शहरों में इससे वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ और कार्बन प्रदूषण में 30% तक की कमी आई.

लेकिन चुनौती भी कम नहीं है.. 
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में चुनौती यह होगी कि लोग इसे टैक्स के बजाय एक समाधान के रूप में स्वीकार करें. एक्सपर्ट्स का मानना है कि सरकार को इसे 'ट्रैफिक-फ्री सड़कों' के लिए शुल्क के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए. साथ ही, बेहतर सार्वजनिक परिवहन विकल्प उपलब्ध कराने होंगे ताकि लोग निजी वाहनों की जगह बसों और ट्रेनों का इस्तेमाल करें.

कंजेशन प्राइसिंग एक नई सोच, दिल्ली में तो प्रदूषण भी कम कर सकता है.. 
दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहर में कंजेशन प्राइसिंग एक नई सोच ला सकती है. यह न केवल ट्रैफिक समस्या को हल कर सकता है, बल्कि प्रदूषण कम करने और शहर की गुणवत्ता को सुधारने में भी मददगार साबित हो सकता है. हालांकि इसे लागू करने से पहले व्यापक जागरूकता और योजना बनानी होगी तभी यह पॉलिसी सफल हो पाएगी. फोटो एआई

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