नई दिल्ली: गुजरात के गांधीनगर रेलवे स्टेशन की हैं, जिसका नया रंग-रूप अब किसी फाइव स्टार होटल को भी टक्कर दे रहा है. ये स्टेशन अब बनकर तैयार हो गया है और आज प्रधानमंत्री मोदी इसका उद्घाटन करेंगे. हालांकि ये रेलवे स्टेशन आज अपने साथ एक बड़ा सवाल लेकर आया है और वो ये कि रेलवे स्टेशन तो बदल रहे हैं, लेकिन क्या लोगों का रवैया भी बदलेगा?


गांधीनगर का भव्य रेलवे स्टेशन


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हमारे देश में कुल 7 हजार 349 रेलवे स्टेशन हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर स्टेशंस की हालत अच्छी नहीं है. जिन स्टेशनों को पिछले कुछ वर्षों में बदला भी गया है, उनका हाल भी फिर से पहले जैसा हो गया है. दीवारों पर पान थूकने के निशान हैं, स्टेशन परिसर में लगे बेंच टूटे हुए हैं और प्लेटफॉर्म्स पर लगी महंगी लाइटों को चुरा लिया गया है और इन स्टेशनों का ये हाल हमारे ही देश के कुछ लोगों ने किया है. अब सोचिए, जब गांधीनगर का ये भव्य रेलवे स्टेशन इन लोगों के हाथ लगेगा तो ये क्या करेंगे? इसलिए हम कह रहे हैं कि स्टेशन तो बदल जाएंगे, लेकिन क्या रवैया बदलेगा ?


आज से चार वर्ष पहले गांधीनगर रेलवे स्टेशन की भी हालत ऐसी ही थी, लेकिन वर्ष 2017 में इस स्टेशन का पुनर्निर्माण शुरू हुआ और तय किया गया कि इस स्टेशन को Railo-Polis (रेलो-पोलिस) की तर्ज पर विकसित किया जाएगा. Railo-Polis का मतलब एक ऐसे स्टेशन से है, जहां लोग रह भी सकें, काम भी कर सकें और ट्रांसपोर्ट भी इसका एक हिस्सा हो. ग्रीक भाषा में Polis का अर्थ है, शहर.


318 कमरों वाला लग्जरी होटल


इस स्टेशन के ऊपर एक लग्जरी होटल बनाया गया है, जो 7 हजार 400 वर्ग मीटर में फैला है और इस पर कुल 790 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. इस होटल में 318 कमरे हैं और यहां जाने के लिए स्टेशन से अलग एक एंट्रेंस बनाया गया है. यानी जिसे यात्रा करनी है, वो सीधे स्टेशन पर चला जाएगा और जिसे होटल में जाना है, उसके लिए अलग रास्ता होगा.


इसके अलावा इस स्टेशन में 32 अलग अलग थीम की लाइटें, आधुनिक टिकट काउंटर्स, लिफ्ट और पार्किंग की भी व्यवस्था है और इस स्टेशन को फाइव स्टार सर्टिफिकेट भी मिल गया है. इसलिए आप इसे देश का पहला फाइव स्टार रेलवे स्टेशन भी कह सकते हैं.


अभी देशभर में इस तरह के 123 और रेलवे स्टेशंस पर काम चल रहा है, जिन पर 50 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे.



इस स्टेशन से चली थी पहली ट्रेन


मुम्बई के बोरी बंदर को भारत का पहला रेलवे स्टेशन माना जाता है, जिसका नाम बदल कर अब CST यानी छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस रख दिया गया है. वर्ष 1853 में पहली यात्री ट्रेन बोरी बंदर से ठाणे के लिए चली थी.


इसके बाद अंग्रेजों ने अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए भारत में बड़े पैमाने पर रेल लाइनें बिछाई और कई रेलवे स्टेशंस का निर्माण किया और जब अंग्रेज भारत छोड़ कर गए, तब यही ट्रेनें और रेलवे स्टेशंस विभाजन के भी गवाह बने.


लोगों की सोच बदलेगी?


भारत में रेलवे स्टेशन और ट्रेन सेवा आम लोगों की लाइफलाइन तो बन गई, लेकिन लोगों ने कभी रेलवे स्टेशनों को अपना नहीं समझा. इन स्टेशनों में गंदगी फैलाई गई, दंगों के दौरान यहां तोड़फोड़ और आगजनी हुई और कई बार ट्रेनों और स्टेशनों से चीजें भी चुराई गईं.



अकेले सेंट्रल रेलवे के मुताबिक, अप्रैल से सितम्बर 2018 के बीच लगभग 80 हजार तैलिए, 27 हजार बेड शीट्स, 2100 तकिए और 2 हजार ब्लैंकेट्स यात्रियों ने चुरा लिए थे और चोरी करने वाले लोग अपने ही देश के थे.


विकास की चेन पुलिंग


ये भी विडम्बना है कि भारत के लोग जब मेट्रो रेल में सफर करते हैं, तो वो वहां गंदगी फैलाने से डरते हैं और ऐसा ही डर एयरपोर्ट्स पर भी दिखता है और इसी वजह से यहां आप चकाचौंध देखते होंगे, लेकिन रेलवे स्टेशनों के मामले में इन लोगों का नजरिया बदल जाता है. इसलिए आज हम आपसे यही कहना चाहते हैं कि भारत में रेल नेटवर्क का रंग रूप बदलना उतना मुश्किल नहीं है, जितना मुश्किल ट्रेनों में सफर करने वाले लोगों की सोच को बदलना है. इसलिए विकास की चेन पुलिंग से परहेज कीजिए.