नई दिल्‍ली:  अब हम आपको धर्म के उस कॉलम के बारे में बताना चाहते हैं, जिसमें आतंकवाद को तो डिस्काउंट मिल जाता है लेकिन जब बात वैक्सीन की आती है तो इसे लेकर धर्म के नाम पर एक ऐसी रुपरेखा खींची जाती है, जिसे आप चाह कर भी मिटा नहीं सकते. ये रूपरेखा ही उस सिद्धांत को जन्म देती है, जिसमें आतंकवाद का तो कोई धर्म नहीं होता लेकिन वैक्सीन (Vaccine) में ये सिद्धांत धर्म को ढूंढ ही लेता है और वैक्सीन धर्म के आधार पर बंट जाती है. 


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ये ठीक वैसा ही है जैसे हवा, पानी, आकाश और पेड़ पौधों पर धर्म को थोप दिया जाए और ऑक्सीजन का भी अलग अलग धर्मों के हिसाब से बंटवारा हो जाए.  इसीलिए आज इस पर चर्चा करना बहुत जरूरी हो गया है. 


वैक्सीन के धर्म पर बहस


दुनियाभर में कोरोना वायरस (Coronavirus)  से 20 लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और कई देशों में अब भी स्थिति चिंताजनक है. हालांकि एक महत्वपूर्ण बात ये है कि कई देशों ने कोरोना वायरस की वैक्सीन (Coronavirus Vaccine) बना ली है और भारत भी इन देशों में शामिल है और भारत में बनी वैक्सीन लेने के लिए कई देश लाइन में लगे हुए हैं और यहां तक सब ठीक है. 


वैज्ञानिकों ने अपना काम शानदार तरीके से किया है और पूरे देश को उन पर गर्व होना चाहिए.  लेकिन यहां एक और बात है, जिस पर आज दुनियाभर में बहस हो रही है और ये बात वैक्सीन के धर्म से जुड़ी हुई है. 


कई देशों में वैक्सीन के हलाल सर्टिफिकेशन (Halal Certification) की मांग की गई है. इस्लाम में हलाल और वर्जित नाम की दो श्रेणी होती हैं. हलाल का सर्टिफिकेट उन चीज़ों को मिलता है. जिनके इस्तेमाल की इजाजत इस्लामिक कानून देता है और वर्जित श्रेणी में वो चीजें आती हैं,  जिनको इस्तेमाल करने की इजाजत इस्लामिक कानून में नहीं होती. 


इंडोनेशिया ने कोरोना वैक्‍सीन को दिया हलाल सर्टिफिकेट 


जैसे इंडोनेशिया (Indonesia) ने कोरोना वायरस की वैक्सीन को हलाल सर्टिफिकेशन दे दिया है. सरल शब्दों में इसका मतलब ये है कि इंडोनेशिया की सरकार ने ये प्रमाणित कर दिया है कि चीन में बनी जो वैक्सीन वो इस्तेमाल कर रहा है, उसमें शामिल कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं है जिसकी इजाजत इस्लाम नहीं देता. 


इंडोनेशिया दुनिया की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश है, वहां लगभग 22 करोड़ मुसलमान हैं और वहां खाने-पीने के सामान, कॉस्‍मेटिक्‍स और यहां तक कि दवाइयों का भी हलाल सर्टिफाइड होना अनिवार्य है.  हालांकि ऐसा भी नहीं है कि इंडोनेशिया में ही ये धार्मिक मान्यता मौजूद है.  सभी मुस्लिम देशों में इस प्रक्रिया को अपनाया जाता है और ये देश अब वैक्सीन के हलाल सर्टि‍फिकेशन देने पर विचार कर रहे हैं. 


यूरोप के भी कई देशों में ईसाई धर्म से जुड़े बहुत से लोगों ने चीन में बनी वैक्सीन को लगवाने से इनकार कर दिया है और इसकी सबसे बड़ी वजह है इस वैक्सीन में Aborted Fetal Cells यानी भ्रूण कोशिकाओं का इस्तेमाल. यानी दुनियाभर में कोरोना वायरस की वैक्सीन पर धर्म का एक ऐसा विचार हावी हो गया है, जो Dos and Don'ts तय करता है.  धर्म के नाम पर आपको क्या करना है और क्या नहीं करना, इसकी सूची बना दी जाती है और इस सूची को लोगों पर थोप दिया जाता है.  लेकिन जब बात आतंकवाद की आती है तो यही लोग कहते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, कोई देश नहीं होता. 


वैक्सीन के धर्म पर नकारात्मक विचारों का महिमामंडन


भारत में भी कुछ लोग वैक्सीन के धर्म पर नकारात्मक विचारों का महिमामंडन कर रहे हैं और इसका ताजा उदाहरण है मध्य प्रदेश के उज्जैन से आई एक खबर.  उज्जैन में सुन्नी मुस्लिम समाज नाम की एक संस्था की तरफ से बयान जारी कर लोगों से कहा गया है कि वो तब तक कोरोना वायरस की वैक्सीन न लगवाएं, जब तक मुस्लिम धर्मगुरु इसकी इजाजत नहीं देते.  सोचिए जिस वैक्सीन को वैज्ञानिकों ने लोगों की जान बचाने के लिए विकसित किया, उस पर अब कुछ मुस्लिम धर्मगुरुओं ने धर्म वाली क्लास शुरू कर दी है.  ये लोग वैक्सीन पर एक्स्ट्रा विचार दे रहे हैं, जिन्हें आज आपको जरूर सुनना चाहिए. 


इससे पहले मुंबई की रज़ा एकेडमी और मुसलमानों की एक बड़ी संस्था ऑल इंडिया जमीयत मुसलमीन ने ये घोषणा की थी कि जो वैक्सीन शरियत के हिसाब से हो, भारत के मुसलमान वही वैक्सीन लगवाएं और मुसलमानों को वैक्सीन लगवाते समय हलाल सर्टिफिकेशन का ध्यान जरूर रखना चाहिए.



हलाल सर्टिफिकेशन की जरूरत क्यों है?


हमें लगता है कि धर्म का स्वाद बता कर उसे बेचने वाली ये एक बीमार मानसिकता है, जिसने बंटवारे की रेखाएं खींच दी हैं.  आपने देखा होगा कि दुनियाभर के देशों में धर्म के नाम पर रंग बंट चुके हैं.  खाने का भी बंटवारा हो चुका है बिरयानी मुसलमानों का व्यंजन बन गई है और खिचड़ी हिंदुओं की. यही नहीं सब्जियों के रंग के आधार पर भी धर्म का लेबल चिपका दिया जाता है. आप संक्षेप में इस पूरी बहस दो पॉइंट्स से समझ सकते हैं, जिसका आधार है- दुनिया दो हिस्सों में बंट चुकी है. 


एक तरफ वो देश हैं, जहां आधुनिक तकनीक और अविष्कारों को महत्व दिया जा रहा है.  जैसे ब्रिटेन ने ऐलान किया है कि वहां वर्ष 2030 तक इलेक्ट्रिक कारें, पेट्रोल और डीजल कारों की जगह ले लेंगी.  फ्रांस ने अपने सैनिकों के शरीर में माइक्रो चिप लगाने की योजना बनाई है और दूसरी तरफ वो देश हैं,  जो धर्म की गाड़ी में सवार होकर पीछे जाना चाहते हैं और इसके लिए वो वैक्सीन जैसे विषय में भी धर्म ढूंढ लेते हैं.


आज आपको ये भी समझना चाहिए कि वैक्सीन के हलाल सर्टिफिकेशन की जरूरत क्यों है?  इसे आप कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं.  वर्ष 2012 में जब पाकिस्तान में पोलियो का टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा था. उस समय इस अभियान से जुड़े 100 कर्मचारियों की हत्या कर दी गई थी और ये सब इसलिए हुआ था क्योंकि, पोलियो के टीके को हलालस सर्टिफिकेशन नहीं मिला था. 


भारत में जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो उसके प्रमाण पत्र में धर्म का कॉलम होता है. स्कूलों में एडमिशन के लिए जो फॉर्म भरा जाता है,  उसमें धर्म का कॉलम होता है.  कॉलेजों में दाखिले के लिए भी आपको अपना धर्म बताना होता है और ये एक प्रक्रिया का हिस्सा होता है. लेकिन अब आप ये समझिए कि आपको धर्म कहां नहीं बताना होता. जब आप अस्पताल में इलाज कराने के लिए जाते हैं, तो आपको ये नहीं बताना होता कि आपका धर्म क्या है? दवाइयां खरीदने के लिए भी धर्म का कोई कॉलम नहीं होता. बाजार में खरीदारी करने के लिए आपको अपना धर्म नहीं बताना होता और किसी की मदद करने के लिए भी धर्म की जरूरत नहीं होती.  लेकिन ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग इन चीजों में भी धर्म का कॉलम जोड़ देते हैं और इसके नाम पर लोगों को डराया जाता है.  आप कह सकते हैं कि कोरोना वायरस की वैक्सीन पर भी ऐसा ही हो रहा है क्योंकि, वैक्सीन लगवाने के लिए तो आपको अपना धर्म बताने की जरूरत नहीं है. लेकिन बहुत से लोगों ने वैक्सीन का ही धर्म ढूंढ लिया है और इसके नाम पर लोगों को डराया जा रहा है.  जैसा कि पहले भी किया जा चुका है. 


जब पोलियो का टीका लगना शुरू हुआ...


वर्ष 1978 में जब भारत में बड़े पैमाने पर पोलियो का टीका लगाने का काम शुरू हुआ तो एक खास धर्म के लोगों के बीच ये अफवाह फैलाई गई कि उनके बच्चे इससे हमेशा के लिए दिव्यांग हो जाएंगे या बीमार पड़ जाएंगे. 


इसी तरह की अफवाह रोटावायरस के टीकाकरण अभियान के दौरान भी उड़ाई गई थी.  तब ऐसा झूठ फैलाया गया कि इस वैक्सीन को लगवाने वाले लोगों की आने वाले नस्ल खराब हो जाएगी. जबकि ऐसा कुछ नहीं था और अब कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर भी लोगों के मन में विश्वास की मात्रा को घटाने का काम किया जा रहा है. 


वैक्सीन से धर्म खतरे में पड़ जाएगा?


ये अविश्वास और डर दो तरह का है. एक डर है कि वैक्सीन के साइड इफेक्‍ट्स  का और दूसरा डर ये है कि इस वैक्सीन से धर्म खतरे में पड़ जाएगा.  हमने आपके इस डर को दूर करने के लिए आज कुछ आंकड़े निकाले हैं. जिन्हें आपको बहुत से ध्यान से देखना चाहिए. पहला डर वैक्सीन का है. जिसे आप कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं. 


जैसे पोलियो की वैक्सीन आने से पहले दुनियाभर में इससे हर वर्ष 4 लाख लोगों की मौत होती थी. लेकिन अब इससे सिर्फ 22 लोगों की मौत होती है और ये वैक्सीन की वजह से ही संभव हुआ है. 


इसी तरह टेटनस (Tetanus) की वैक्सीन आने से पहले हर साल 2 लाख लोगों की मौत होती थी और वैक्सीन आने के बाद ये संख्या 25 हजार रह गई. यानी किसी भी बीमारी की वैक्सीन लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण साबित होती है. 


लेकिन जब बात वैक्सीन से धर्म को खतरे की होती है तो आपको जानकर हैरानी होगी कि इस पर पूरी दुनिया में कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है. ऐसी कोई रिसर्च नहीं है जो ये बताती हो कि हलाल सर्टिफाइड वैक्सीन लगवाने से किसी की मृत्यु हो सकती है. यानी ये सिर्फ एक धार्मिक मान्यता है और इस पर कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है.


हलाल सर्टिफाइड चीजों का व्यापार कितना बड़ा है. ये भी आज हम आपको बताना चाहते हैं


दुनियाभर में हलाल सर्टिफाइड  खाद्य और पेय पदार्थों का व्यापार 98 लाख करोड़  रुपये ($1.3 ट्रिलियन डॉलर ) का है. 


हलाल सर्टिफाइड कपड़ों का व्यापार 20 लाख करोड़ रुपये ($270 बिलियन डॉलर) का है. 


मीडिया और एंटरटेनमेंट का कारोबार करीब 15 लाख करोड़ रुपये ( $209 बिलियन डॉलर) का है. 


ट्रैवेल का व्यापार लगभग 13 लाख करोड़ रुपये ($177 बिलियन डॉलर ) का है और सबसे महत्वपूर्ण हलाल सर्टिफाइड दवाइयों का व्यापार 6 लाख करोड़  रुपये ($87 बिलियन डॉलर) का है. 


अब हम आपको जल्दी से भारत में कोरोना वायरस के टीकाकरण अभियान पर एक छोटा सा अपडेट देना चाहते हैं. 


18 जनवरी तक 3, 81, 305 लोगों को लग चुकी है कोरोना वैक्‍सीन 


भारत में 18 जनवरी तक 3 लाख 81 हज़ार 305 लोगों को कोरोना की वैक्सीन लग चुकी है.  इनमें सिर्फ 580 लोगों में वैक्सीन लगाए जाने के बाद साइड इफेक्‍ट्स देखने को मिले हैं.  ये कुल लोगों को लगे टीके का मात्र 0.2 प्रतिशत है और सरकार ने कहा है कि टीका लगवाने से पहले लोग पुरानी बामिरियों को जानकारी जरूर दें. क्योंकि, अभी कुछ लोग ऐसा नहीं कर रहे हैं.