DNA Analysis: सेना पर रोज पत्थरबाजी, हर हफ्ते 1-2 आतंकी हमले, पाकिस्तान के झंडे और उसके जिंदाबाद के नारे ये आज से कुछ साल पहले जम्मू-कश्मीर की पहचान थी. फिर 2019 में अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया. उसके बाद पत्थरबाजी, आतंकी हमले और पाकिस्तान परस्त नारे लगने या तो बंद हो गए या बेहद कम हो गए. जहां एक ओर विकास ने जम्मू-कश्मीर में रफ्तार पकड़ी, वहीं दूसरी ओर टारगेट किलिंग की घटनाएं भी जम्मू-कश्मीर की पहचान बनती जा रही है  और यही सरकार और सेना के लिए सबसे बड़ी चिंता है तो क्या जम्मू-कश्मीर में तेजी से हो रहा विकास और टारगेट किलिंग के बीच कोई संबंध है और कब तक हिंदुओं की जम्मू-कश्मीर में हत्या होती रहेगी. DNA में अब हम इसी का विश्लेषण करेंगे.


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दरअसल 72 घंटे में 3 लोगों को टारगेट किलिंग में मार दिया गया है. सोमवार की रात को जम्मू कश्मीर के शोपियां में आतंकियों ने दो गैर-कश्मीरी मजदूरों पर ग्रेनेड से हमला करके उनकी हत्या कर दी.  शोपियां के हरमेन में आतंकियों ने तब हमला किया जब दोनों अपने घर में सो रहे थे. मारे गए दोनों लोग मोनीष कुमार और रामसागर उत्तर प्रदेश के कन्नौज के रहने वाले थे. आतंकी हमले के बाद पुलिस और सेना ने लगातार कई घंटे सर्च अभियान चलाया. इसके बाद हमले में शामिल लश्कर के दो आतंकियों को गिरफ्तार कर लिया गया है और बाकी आतंकियों की तलाश की जा रही है. वहीं इस टारगेट किलिंग के विरोध में लोगों ने प्रदर्शन किया. 


टारगेट किलिंग की इस घटना से 2 दिन पहले यानी 15 अक्टूबर को भी शोपियां में ही एक कश्मीरी पंडित पूरन कृष्ण भट की हत्या कर दी गई थी. कश्मीरी पंडित पूरन कृष्ण भट जब काम पर जा रहे थे उसी दौरान आतंकियों ने उनपर गोलियों से हमला कर दिया. उन्हें तुरंत इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उनकी मौत हो गई. कश्मीरी पंडित की हत्या के बाद इस मामले पर जम्मू-कश्मीर के दो बड़े नेता फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने मोदी सरकार पर निशाना साधा.  हमेशा कि तरह एक बार फिर यह साबित करने की कोशिश की कि 370 को हटाना गलत फैसला था. 


फारूक अब्दुल्ला कह रहे हैं कि जब तक इंसाफ नहीं होगा.....टारगेट किलिंग नहीं रुकेगा. सवाल ये है कि फारूक अब्दुल्ला किस इंसाफ की बात कर रहे हैं और वो जम्मू-कश्मीर की भलाई के बारे में सोचते हैं. इस देश से उनको प्यार है तो वो ये कैसे कह सकते हैं कि ये नहीं रुकेगा. उन्हें तो ये कहना कहना चाहिए कि इसे रोकना होगा या इसे रोकना जरुरी है या इसे रोकना चाहिए. फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ये दोनों वही नेता है जो आतंकियों को भटके हुए युवा कहते हैं, पत्थरबाजों का बचाव करते हैं और पाकिस्तान परस्त नारों पर चुप्पी साध लेते हैं. पूरी दुनिया को ये पता है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले के लिए केवल और केवल पाकिस्तान जिम्मेदार है लेकिन दोनों नेता बार-बार पाकिस्तान से बातचीत की पैरवी करते हैं. 


दरअसल अनुच्छेद 370 हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर में हालात काफी तेजी से सुधरे हैं. जहां एक ओर विकास पर हजारों करोड़ रु खर्च किए जा रहे हैं, युवा मुख्यधारा में जुड़ रहे हैं, सेना में भर्ती हो रहे हैं, वहीं दूसरी वहां के उद्योग धंधों में काफी सुधार देखने को मिला है. टूरिज्म जम्मू-कश्मीर में कमाई का सबसे बड़ा Source है और इस साल यहां पर्यटकों को आने का रिकॉर्ड टूट गया है.


आंकड़ों के मुताबिक इस साल अभी तक जम्मू-कश्मीर में 1 करोड़ 60 लाख पर्यटक आ चुके हैं और अब तक रिकॉर्ड है. अकेले कश्मीर में अगस्त तक साढ़े 20 लाख से ज्यादा पर्यटक आ चुके हैं जिसमें साढ़े तीन लाख से ज्यादा अमरनाथ यात्री है. कश्मीर जो पहले अशांत था, जहां आतंकियों का बोलबाला था अब उस जगह पर्यटक सुकून के साथ घूम रहे हैं. पहलगाम, गुलमर्ग, सोनमर्ग में होटल पूरी तरह भरे हैं और आपको कमरा चाहिए तो इंतजार करना पड़ेगा. 


दरअसल जम्मू-कश्मीर में टारगेट किलिंग तेजी से बदलते माहौल को बिगाड़ने की कोशिश की है और ये कोशिश पहले भी होती रही है.जिस तरीके से कश्मीर में हिंदुओं को टारगेट किया जा रहा उससे ये तो साफ जाहिर होता है आतंकी हिंदुओं को किसी तरीके से डराना चाहते हैं. ऐसी ही कोशिश 90 के दशक में की गई थी लेकिन इस बार ये संभव नहीं है क्योंकि कश्मीर के आतंकी और सरपरस्त डरे हुए हैं. सेना लगातार आंतकियों को खत्म कर रही है और आतंकी घटनाएं काफी कम हो गई है.


आंकड़ों के मुताबिक आतंकी हमले में 2018 में 86, 2019 में 42, 2020 में 33, 2021 में 36 और 2022 में 25 लोगों की मौत हो गई. अगर सुरक्षा बलों की बात करें तो 2018 में 95, 2019 में 78, 2020 में 56, 2021 में 45 और 2022 में 29 सुरक्षा बल शहीद हो गई. 


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