नई दिल्ली: हाथरस की घटना मीडिया की हेडलाइंस में है. लेकिन महिलाओं पर अत्याचार की ऐसी ढेरों घटनाएं हैं. जिन्हें मीडिया में स्थान नहीं मिल पाता.


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मीडिया ने बलरामपुर की घटना को क्यों भुलाया?
हाथरस की घटना को लेकर कई न्यूज चैनल लगातार खबरें दिखा रहे हैं, लेकिन बलरामपुर और राजस्थान के अलग-अलग शहरों में रेप की कई घटनाओं पर उतनी बात नहीं हो रही है. अगर आप हाथरस और बाकी घटनाओं के मीडिया कवरेज की तुलना करें तो ये अनुपात शायद 99 और 1 का होगा. ऐसे में यह सवाल उठता है कि हाथरस की घटना में ऐसा क्या था जिस पर मीडिया का इतना ध्यान चला गया. जो नेता और मीडिया दिल्ली से 200 किलोमीटर दूर हाथरस तक गए, वो हाथरस से 500 किलोमीटर दूर बलरामपुर क्यों नहीं जा पाए?


सोशल मीडिया पर हाथरस के बारे में फैलाई गई अफवाहें
इस सवाल का जवाब भी जब आप ढूंढेंगे तो अंत में सोशल मीडिया का नाम सामने आएगा. हाथरस के मामले में भी बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया की ताकत का दुरुपयोग किया गया है. सोशल मीडिया के जरिए हाथरस की घटना के बारे में कई गलत जानकारियां फैलाई गईं. इसे सोशल मीडिया पर Trend कराया गया. देखते ही देखते कई न्यूज चैनलों ने वो ही झूठी खबरें दिखानी शुरू कर दीं, जो सोशल मीडिया पर फैलाई गई थीं. 


दोनों जगहों की घटना के कवरेज में भारी अंतर
- हाथरस और बलरामपुर दोनों ही जगहों पर पीड़िता दलित है.
- हाथरस की तरह बलरामपुर में भी पीड़िता के साथ बर्बरता हुई और उसकी मौत हो गई.
- हाथरस की घटना में रेप की पुष्टि नहीं हुई है, जबकि बलरामपुर में बलात्कार की पुष्टि हो चुकी है.
- दोनों ही मामलों में अधिकतर आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए हैं. हाथरस के मुख्य आरोपी का नाम संदीप है, जबकि बलरामपुर के मुख्य आरोपियों का नाम शाहिद और साहिल है.
- हाथरस की ही तरह बलरामपुर में भी पुलिस ने रात के अंधेरे में पीड़िता का अंतिम संस्कार करवा दिया.
- हाथरस और बलरामपुर, दोनों ही जगहें उत्तर प्रदेश में हैं. दोनों ही जगह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं. लेकिन बलरामपुर के मामले में राहुल गांधी ने योगी आदित्यनाथ को छोड़ क्यों दिया..


योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा
हाथरस की तरह बलरामपुर की घटना की उतनी चर्चा क्यों नहीं हुई, इसका जवाब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल उत्तर प्रदेश सरकार के हलफनामे से मिलता है.
- इसमें कहा गया है कि सोशल मीडिया, और कुछ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए अफवाहें फैलाई गईं.
- कुछ राजनीतिक संगठन जातीय हिंसा और दंगों की प्लानिंग कर रहे थे.
- पीड़िता का अंतिम संस्कार रात में इसलिए किया गया क्योंकि खुफिया इनपुट्स मिले थे कि शव को सड़क पर रखकर हिंसा करवाने की प्लानिंग है. सुबह वहां लाखों लोगों के जुटने की आशंका थी.
- प्रदर्शनकारियों ने पूरा प्लान बनाया हुआ था कि क्या करें, क्या नहीं. सोशल मीडिया पर मैसेज भेजे गए थे कि मास्क पहनकर आएं, ताकि कैमरों में पहचान न होने पाए.
- प्रशासन चाहता था कि लड़की को बड़े अस्पताल ले जाया जाए, लेकिन परिवार वाले इसके लिए बहुत देर से तैयार हुए.


उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने हलफनामे में कई सबूत भी पेश किए हैं. इनमें कई सोशल मीडिया पोस्ट, नेताओं के भाषण और मीडिया की रिकॉर्डिंग्स शामिल हैं. उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट को बताया कि हाथरस की घटना की जांच CBI से कराने की सिफारिश की गई है ताकि पूरी सच्चाई सामने आ सके.


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कट्टरपंथी संगठनों के शामिल होने की आशंका
उत्तर प्रदेश पुलिस की अभी तक की जांच में कट्टरपंथी संगठनों के नाम भी सामने आ रहे हैं.
- मथुरा से चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें से एक दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी का छात्र है.
- पुलिस का कहना है कि कट्टरपंथी संगठनों के लोग हाथरस के मुद्दे पर सोशल मीडिया के जरिए माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे थे.
- Fake Social Media Accounts के जरिए हाथरस की घटना को जातीय रंग दे दिया गया.पीड़ित और आरोपी एक-दूसरे को पहले से जानते थे और उनके बीच में फोन पर बातचीत भी होती थी.


बलरामपुर की घटना की पुलिस जांच जारी
उत्तर प्रदेश के ही बलरामपुर में गैंगरेप के मामले में पुलिस की जांच जारी है. 29 सितंबर को यहां 22 साल की एक महिला से बलात्कार की खबर आई. इलाज के दौरान महिला की मृत्यु हो गई. पुलिस ने दोनों मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. जिनके नाम शाहिद और साहिल हैं. पीड़िता के परिवार का आरोप है कि कुछ और लोग भी घटना में शामिल थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें अभी तक नहीं पकड़ा है.


आरोपियों में बलरामपुर पीड़िता के साथ दरिंदगी की
- पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता के साथ बहुत दरिंदगी की गई. उसके शरीर पर चोट के 10 गहरे निशान पाए गए.
- पीड़िता के शरीर के कई संवेदनशील अंगों पर चोट के निशान हैं.
- शरीर के अंदर उसका लिवर पूरी तरह Damage हो चुका था.
- पीड़िता पढ़ाई के साथ एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती थी और घटना के दिन वो कॉलेज में एडमिशन लेने जा रही थी.


जातीय एंगल नहीं दिखा तो बलरामपुर नहीं गए नेता
बलरामपुर की घटना दिल दहलाने वाली है, लेकिन झूठ के शोर में ये सच्ची खबर भी कहीं दबकर रह गई. बलरामपुर में कोई जातीय एंगल नहीं था, इसलिए राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी वहां जाना उचित नहीं समझा. मीडिया के लिए भी ये TRP वाली खबर नहीं थी. इसलिए बलरामपुर में मीडिया का वैसा मेला नहीं लगा, जैसा आपने हाथरस में देखा. उस घटना के बारे में शायद ही किसी बड़े फिल्मी सितारे ने कोई ट्वीट भी किया हो. बलरामपुर की पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए किसी ने भी सोशल मीडिया पर कोई मुहिम नहीं चलाई.


महिलाओं के खिलाफ होने वाले हर अपराध को गंभीर माना जाना चाहिए. ऐसे मामलों में सरकारों, समाज और मीडिया को भी अपनी सोच बदलने की जरूरत है. ताकि ऐसी घटनाओं की आड़ में कोई समाज में नफरत फैलाने की कोशिश न कर पाए.