नई दिल्ली: पूर्व क्रिकेटर कपिल देव (Kapil Dev) को 22 अक्टूबर को दिल का दौरा पड़ा था. जिसके बाद उन्हें दिल्ली के पास एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया. इसके बाद उनकी एंजियोप्लास्टी हुई और अब वो खतरे से बाहर हैं. हम कपिल देव के करोड़ों फैन्स को बताना चाहते हैं कि अब उनकी तबीयत ठीक है और वो पूरी तरह से खतरे से बाहर हैं. कपिल देव ने खुद एक ट्वीट करके अपने स्वास्थ्य की जानकारी दी है. उन्होंने कहा है कि वो पूरी तरह स्वस्थ हैं. उन्होंने अपने करोड़ों फैन्स को धन्यवाद भी दिया है.


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इतिहास रचने की हिम्मत
कपिल देव न सिर्फ करोड़ों फैन्स के लिए बल्कि पूरे देश के लिए हीरो हैं और आज पूरे देश के साथ हम भी इस हीरो के जल्द स्वस्थ हो जाने की कामना कर रहे हैं. कपिल देव, देश के एक ऐसे नायक हैं जिन्होंने न सिर्फ भारत में क्रिकेट को नई पहचान दी, बल्कि दुनिया को ये भी बताया कि भारत में लोअर मिडल क्लास से आने वाले लोग भी अपने दम पर इतिहास रचने की हिम्मत रखते हैं. इसलिए आज हम आपको बताएंगे कि कपिल देव क्यों न सिर्फ क्रिकेट फैन्स के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा पुंज हैं.


भारत को क्रिकेट का पहला वर्ल्ड कप
कपिल देव की कहानी 1970 के दशक से शुरू होती है. ये वो दौर था, जब भारतीय क्रिकेट में सिर्फ बड़े शहरों से आए खिलाड़ियों का दबदबा था और हरियाणा जैसे राज्य से निकलकर क्रिकेट की दुनिया का महान खिलाड़ी बनना एक असंभव सा सपना था. ये वो दौर भी था, जब क्रिकेट में तेज गेंदबाजों का वर्चस्व था. लेकिन इसी बीच 16 अक्टूबर 1978 को पाकिस्तान के फैसले बाद में क्रिकेट के मैदान पर हरियाणा के तेज गेंदबाज कपिल देव की एंट्री हुई. कपिल देव को पहले मैच में सिर्फ एक विकेट मिला और तब किसी को अंदाजा नहीं था कि 19 वर्ष का ये खिलाड़ी सिर्फ 5 वर्षों के बाद अपनी कप्तानी में भारत को क्रिकेट का पहला वर्ल्ड कप जिताएगा.


भारतीय क्रिकेट को नई उड़ान दी
भारतीय क्रिकेट में तेज गेंदबाजी की बंजर जमीन पर हरियाली लाने का काम हरियाणा के कपिल देव ने अकेले अपने दम पर किया. क्रिकेट के मैदान में जिस किलर इंस्टिंक्ट यानी कुछ कर दिखाने की जिस जिद को भारत वर्षों से खोज रहा था वो कपिल देव के टीम में आने से हासिल हुई. कपिल देव विरोधी बल्लेबाजों की आंख में आंख डालकर बात करते थे. उन्होंने टीम के अंदर वो आत्मविश्वास पैदा किया जिसने भारतीय क्रिकेट को नई उड़ान दी. 1970 के दशक तक क्रिकेट में मुंबई और दिल्ली के खिलाड़ियों का बोलबाला था. हरियाणा से कपिल देव की क्रिकेट टीम में एंट्री हुई तो अन्य प्रदेश के युवाओं में आत्मविश्वास आया कि अब वो भी भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बन सकते हैं.


1983 की क्रिकेट विश्व कप जीत भारतीय क्रिकेट का वो टर्निंग प्वाइंट है जिसके बाद क्रिकेट देश में लगभग एक धर्म बन गया, और देश भर में क्रिकेटर्स को भगवान मानकर पूजा जाने लगा. इस जीत के असली नायक कप्तान कपिल देव ही थे. यहां आपको ये जान लेना चाहिए कि वो कौन सी 6 बातें हैं जो आप कपिल देव से सीख सकते हैं. आप इन 6 बातों को क्रिकेट में एक ओवर की 6 गेंद भी मान सकते हैं और इस ओवर की एक एक गेंद आपका जीवन बदल सकती हैं.


-पहली बात ये है कि कपिल देव एक ऐसे कप्तान थे जिन्होंने अपनी टीम में जीत का जज्बा भरा और जीत के लिए लड़ना सिखाया. इसी का परिणाम था कि भारत 1983 में पहली बार क्रिकेट का विश्वविजेता बना.


-दूसरी बात आप उनसे ये सीख सकते हैं कि कपिल देव एक फाइटर यानी योद्धा थे. वो भारतीय टीम में एक फास्ट बॉलर की भूमिका में थे. उस समय टीम में कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं था जो नई गेंद से इतनी सटीक और धारधार गेंदबाजी कर सकता था. लेकिन कपिल देव ने ये करके दिखाया और देखते ही देखते भारतीय टीम को मैच जिताने की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर आ गई. लेकिन उन्होंने कभी इसे बोझ नहीं माना, बल्कि इसे चुनौती की तरह लेकर उन्होंने अपनी क्षमताओं का विस्तार किया.


-तीसरी बात आप उनसे ये सीख सकते हैं कि उन्होंने अपने मुश्किल हालात को कभी अपनी उपलब्धियों और मेहनत के आड़े नहीं आने दिया जिस जमाने में उन्होंने क्रिकेट के मैदान पर कदम रखा. उस समय मुंबई और दिल्ली के क्रिकेटरों का भारतीय क्रिकेट टीम में बोलबाला था. कपिल देव ने छोटे शहरों और कस्बों के युवाओं में ऊर्जा का संचार किया. उन्हें विश्वास दिलाया कि वो भी भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बन सकते हैं.


-चौथी बात आप जो कपिल देव से सीख सकते हैं वो है फिटनेस, तेज गेंदबाज बहुत जल्द चोट का शिकार हो जाते है लेकिन कपिल देव का बॉलिंग एक्शन बहुत स्मूद और सटीक था. उन्होंने 16 साल के करियर में 131 टेस्ट मैच खेले लेकिन कभी भी चोट या फिटनेस में आई कमी की वजह से उन्होंने कोई मैच मिस नहीं किया. यानी कपिल देव फिटनेस की अहमियत तब समझ गए थे. जब भारत में इसे कोई खास महत्व ही दिया जाता था.


-पांचवीं बात जो कपिल देव से सीख सकते हैं वो उनका हरफनमौला क्रिकेटर होना. जितने अच्छी गेंदबाजी कपिल देव ने अपने करियर में की उतनी ही बेहतरीन बल्लेबाजी भी उन्होंने की.


उस समय उनकी गिनती दुनिया के टॉप 4 ऑल राउडंर्स में होती थी. इंग्लैंड के इयान बॉथम, न्यूजीलैंड के रिचर्ड हेडली और पाकिस्तान के इमरान खान से कपिल देव का मुकाबला क्रिकेट की जगत की सुर्खियों में रहता था । रिचर्ड हेडली ने टेस्ट क्रिकेट में 431 विकेट लेने का जो विश्व रिकॉर्ड बनाया जिसे कपिल देव ने ही तोड़ा.


-और छठी बात आप उनसे ये सीख सकते हैं कि उन्होंने अपने दौर में युवा खिलाड़ियों को मौका दिया और कभी क्रिकेट में अपने कद को अहंकार का विषय नहीं बनाया.


1983 के क्रिकेट वर्ल्ड कप का फाइनल मैच लंदन के लॉर्ड्स पर खेला गया था. फाइनल में यूं तो सभी खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था लेकिन कपिल देव ने पीछे दौड़ते हुए जिस तरह विवियन रिचर्ड्स का कैच पकड़ा वो कैच ऑफ द टूर्नामेंट बन गया. उस समय विवियन रिचर्ड्स दुनिया के सबसे विस्फोटक बल्लेबाजों में एक थे और कपिल देव के इस कैच ने वेस्टइंडीज के हाथों से विश्व कप का खिताब छीन लिया. लॉर्ड्स की मशहूर का बॉलकनी में क्रिकेट विश्व कप की चमचमाती ट्रॉफी लिए कपिल की ये तस्वीरें भारतीय क्रिकेट की सबसे सुनहरे पल हैं.


आज के दौर में आप देखते हैं कि बड़े बड़े क्रिकेटर जो फिटनेस पर बहुत ध्यान देते हैं वो जिम जाते हैं, नियमित डाइट लेते हैं, उस जमाने में क्रिकेटर मैदान पर ही प्रैक्टिस करते थे और कपिल देव ने फिटनेस पर बहुत ध्यान दिया. उन्होंने अपने 16 साल के करियर में 131 टेस्ट मैच खेले लेकिन कभी भी चोट या फिटनेस के चलते उन्होंने कोई मैच मिस नहीं किया. अपने टेस्ट करियर की 184 पारियों में वो कभी रन आउट नहीं हुए. इससे आप समझ सकते हैं कि कपिल देव की फिजिकल फिटनेस हमेशा कितनी अच्छी रही.