नई दिल्ली: टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) में आज (4 अगस्त) का दिन भारत के लिए ऐतिहासिक हो सकता है. महिला हॉकी टीम अगर अपना सेमीफाइनल मुकाबला जीत जाती है तो ये भारतीय हॉकी (Indian Hockey) के लिए बहुत बड़ा पल होगा, लेकिन इससे पहले पूरे देश की नजर एक और खिलाड़ी पर होगी. जब भारत की बॉक्सर लवलीना बोरगोहेन (Lovlina Borgohain) सुबह 11 बजे सेमीफाइनल मुकाबले में उतरेंगी.


वर्ल्ड चैंपियन से होगा लवलीना का मुकाबला


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लवलीना बोरगोहेन (Lovlina Borgohain) का मुकाबला टर्की की वर्ल्ड चैंपियन बुसेनाज सुरमेनेली (Busenaz Surmeneli) से होगा. हालांकि लवलीना क्वार्टर फाइनल मुकाबला जीतकर भारत के लिए कांस्य मेडल (Bronze Medal for India) पहले ही पक्का कर चुकी हैं, लेकिन अगर वो सेमीफाइनल मैच जीत जाती हैं तो वो फाइनल में पहुंचकर देश के लिए कम से कम सिल्वर मेडल जरूर पक्का कर देंगी.


लवलीना के गांव तक नहीं थी पक्की सड़क


लवलीना बोरगोहेन (Lovlina Borgohain) असम के गोलाघाट के एक छोटे से गांव से आती हैं, जिसका नाम बारामुखिया है. कुछ दिन पहले तक उनके गांव पहुंचने के लिए पक्की सड़क तक नहीं थी, लेकिन लवलीना की कामयाबी के बाद अब उनके गांव तक पक्की सड़क का निर्माण किया जा रहा है. हमारे देश में लोग अक्सर संसाधनों के अभाव का बहाना बनाकर कठिन परिश्रम से बचने लगते हैं. लोग कहते हैं कि उनके पास सुविधाएं नहीं हैं वो करें तो क्या करें, लेकिन कई बार जब आप तमाम परेशानियों के बावजूद सफलता हासिल करते हैं तो संसाधन अपने आप आपके पीछे आने लगते हैं. ऐसी ही कहानी लवलीना की है.


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निम्न मध्य वर्गीय परिवार से आती हैं लवलीना


लवलीना बोरगोहेन (Lovlina Borgohain) निम्न मध्य वर्गीय परिवार से आती हैं और वो आज अपनी मेहनत के दम पर इस मुकाम पर पहुंची है. लवलीना की दो बड़ी बहने भी हैं. दोनों इस समय पैरामिलिट्री फोर्स का हिस्सा हैं और देश की सेवा कर रही हैं. जब भी लवलीना किसी मुकाबले में उतरती हैं तो उनके माता पिता उनका मैच नहीं देखते, क्योंकि उनका कहना है कि वो अपनी बेटी को मार खाते हुए नहीं देख सकते, लेकिन फिर भी वो अपनी बेटी की जीत के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, क्योंकि लवलीना के कंधों पर पूरे देश की उम्मीदों का भार है.


ऐसा है लवलीना का घर और उनका गांव


हमें लगता है कि जिस तरह सैनिकों का घर किसी तीर्थ से कम नहीं होता, उसी तरह देश का मान बढ़ाने वाले खिलाड़ियों के घर जाना भी सम्मान की बात है. इसीलिए Zee News की टीम दुर्गम रास्तों से होते हुए लवलीना के घर पहुंची और ये समझने की कोशिश की कि लवलीना का परिवार और उनके गांव वाले सेमीफाइनल मुकाबले को लेकर कितने उत्साहित हैं. लवलीना का गांव काफी छोटा है और कुछ कच्चे-पक्के मकान हैं. गांव में अभी तक पक्की सड़क तक नहीं है और देखकर ही लगता है कि यहां की आबादी पूरी तरह से खेती पर निर्भर है.


क्या कभी सोचा जा सकता था कि एक छोटे से गांव निकली एक 23 साल की लड़की पूरे देश का सिर गर्व से ऊंचा करेगी. लवलीना छोटे से गांव में अपने माता-पिता और दो बहनों के साथ रहती हैं. परिवार साधारण है, लेकिन इस परिवार की बेटियों में प्रतिभा आसाधारण है. लवलीना की दो बड़ी बहनें पैरामिलिट्री फोर्स में रहकर देश की सेवा में लगी है और खुद लवलीना देश का सिर ऊंचा करने के लिए बॉक्सिंग करती हैं. लवलीना ने ओलंपिक में ब्रॉन्ज तो पक्का कर लिया, लेकिन अब उनकी नजर गोल्ड पर है.


खेती करते पिता ने बेटियों को प्रेरित किया


लवलीना बोरगोहेन (Lovlina Borgohain) के पिता टिकेन बोरगोहेन खेती करते हैं और उसी से होने वाली कमाई से अपने तीन बेटियों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. उनका कहना है कि लवलीना का गोल्ड जीतने का सपना है और हमें खुशी है. हम लोग आर्थिक रूप से कमजोर थे और खेल में जितना चाहिए खेतीबाड़ी से उतना करने में सक्षम नहीं थे. लवलीना का आत्मविश्वास था और स्ट्रगल करके ओलंपिक तक गई है.


छोटी उम्र से ही कहीं भी अकेले चल जाती थीं लवलीना


लवलीना बोरगोहेन (Lovlina Borgohain) बचपन से ही मजबूत इच्छाशक्ति वाली लड़की थीं. 15 साल की उम्र में ही देश के अलग-अलग हिस्सों में ट्रेनिंग के लिए अकेले ही चली जाती थीं. उनकी इसी खासियत ने उनके पिता को यकीन दिलाया कि वह मजबूत और जिद्दी हैं. ओलंपिक में गोल्ड जीतना भी उनकी एक जिद है. लवलीना वर्ष 2010 से 2012 तक मुआ ताई किक बॉक्सिंग की प्रैक्टिस करती थीं, लेकिन उन्हें स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की ओर से बॉक्सिंग करने का मौका मिला तो उन्होंने कमाल ही कर दिया. ओलंपिक में देश के लिए खेलने तक का सफर लवलीना ने अकेले तय किया है. अभी पिछले साल ही उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था.


गांव में पक्की सड़क बनने का काम शुरू


लवलीना बोरगोहेन (Lovlina Borgohain) की उपलब्धि ने एक काम कर दिया कि अब उनके गांव के लिए सड़क बनाने का काम शुरू कर हो गया है, क्योंकि गोलाघाट से कई किलोमीटर दूर बसे इस गांव में पहले जहां कोई नहीं आता था. अब लोगों का आना जाना बढ़ गया है, क्योंकि इस गांव से निकली बेटी ने देश के लिए ओलंपिक मेडल (Olympic Medal) पक्का करवाया है.


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