नई दिल्ली: एक जमाना था जब हमारे देश में मजबूत पारिवारिक रिश्तों की मिसाल पेश की जाती थी. बड़े बड़े परिवार होते थे. एक ही घर में 40, 50 लोग रहा करते थे. यानी संयुक्त परिवार की संस्कृति हमारे DNA में थी और ऐसे परिवारों को संयुक्त कुटुम्ब कहा जाता था. ये वो दौर था, जब रिश्ते भरोसे की गोंद से चिपके होते थे.


समय के साथ बदला व्यवहार


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तब अगर परिवारों में मनमुटाव की वजह से किसी सदस्य को घर से बाहर करने की बात होती थी, तो इसका विरोध होता था और परिवार बिखरते नहीं थे. उस समय बिखरे हुए परिवारों को बिखरे हुए मोतियों की माला कहा जाता था, लेकिन समय बदला और इस समय के साथ अपनों के प्रति हमारा आचरण और व्यवहार भी बदल गया. संयुक्त परिवार यानी जो संयुक्त कुटुम्ब भारत की ताकत होते थे, वो ताकत कमजोर हो गई.


आज बड़ी बड़ी इमारतों में सैकड़ों लोग तो रहते हैं, लेकिन ये सैकड़ों लोग सैकड़ों परिवार में बंटे हुए हैं. अब संयुक्त परिवार बहुत कम मिलते हैं और एक कड़वी सच्चाई तो ये है कि भारत में अब बहुत सी संतानें अपने माता पिता को अपने साथ नहीं रखना चाहती हैं. वो अपने माता पिता की सम्पत्ति तो चाहती हैं, लेकिन माता पिता को अपने साथ रखने के संस्कार उनमें नहीं हैं. इसलिए आज हम आपके साथ इस विषय पर चर्चा करना चाहते हैं.


पांच बेटों ने मां को भूखा मरने के लिए छोड़ दिया...


हमारे इस विश्लेषण के केन्द्र में है, मध्य प्रदेश के राजगढ़ से आई एक ख़बर. यहां पांच बेटों ने अपनी एक मां को भूखा मरने के लिए छोड़ दिया. रामकुंवर बाई के पति जब जिंदा थे, तब उनके पांचों बेटे उनके साथ रहते थे, लेकिन फिर उनकी शादी होती चली गई और उनके बेटों ने माता पिता से ख़ुद को अलग कर लिया. पांचों बेटे शादी के बाद अलग हो गए और इस तरह परिवार टूट गया.


जब पिता की मौत हुई और मां अपने बेटों का सहारा चाहती थी, तो इनमें से किसी बेटे ने अपनी मां को नहीं रखा. विडम्बना देखिए कि इस महिला ने अपने पांच बेटों की परवरिश की, लेकिन ये पांच बेटे अकेली मां को नहीं रख पाए. जो बात सबसे ज़्यादा हैरान करती है, वो ये कि इस महिला के पांचों बेटों ने अपने पिता की मौत के तुरंत बाद उनकी पैतृक सम्पत्ति को बेच दिया.


उनके पिता के पास साढ़े 6 एकड़ ज़मीन थी, जिसमें से साढ़े 5 एकड़ ज़मीन इन लोगों ने बेच दी. इससे उन्हें जो पैसा मिला इन लोगों ने उसे आपस में बांट लिया और जो आधा एकड़ ज़मीन बची, वो इन लोगों ने गांव के एक व्यक्ति को दे दी और उससे ये कहा कि वो उनकी मां का ध्यान रखे. यानी इन पांचों बेटों ने अपनी बेसहारा मां को एक ऐसे व्यक्ति के पास छोड़ दिया, जिसका उससे कोई लेना देना नहीं था. महत्वपूर्ण बात ये है कि इस व्यक्ति ने भी ये ज़मीन बेच दी और इस बुज़ुर्ग महिला को घर से बेदख़ल कर दिया.


बुज़ुर्ग महिला ने दर्ज कराया केस


 


ये मामले जब पुलिस के पास पहुंचा तो उसने बुज़ुर्ग महिला के पांच बेटों के ख़िलाफ Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 के केस दर्ज कर लिया. 


पहले भी सामने आए ऐसे मामले


हालां​कि भारत में इस तरह का ये पहला मामला नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनसे पता चलता है कि भारत में लोग अपने बुज़ुर्ग माता पिता के साथ नहीं रहना चाहते. यही नहीं आज के ज़माने में एक भाई भी अपने भाई के साथ संयुक्त परिवार यानी जॉइंट फैमिली में नहीं रहना चाहता.


इसे आप कुछ आंकड़ों से समझिए-


-2001 की जनगणना के मुताबिक़, उस समय भारत में 19 करोड़ 31 लाख परिवार थे, जिनमें से 3 करोड़ 69 लाख Joint Families थीं.


-यानी कुल परिवारों में से 19 प्रतिशत परिवार एक साथ रहती थे.


-लेकिन 10 वर्षों में ही ये तस्वीर बदल गई. वर्ष 2011 में कुल परिवारों में से Joint Families 16 प्रतिशत ही रह गईं.



-2011 की जनगणा के मुताबिक़, उस समय भारत में 24 करोड़ 88 लाख परिवार थे, जिनमें से 4 करोड़ Joint Families थीं.


-भारत के एक NGO- Helpage द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक़, हमारे देश में 1 हज़ार 176 Old Age Home यानी वृद्ध आश्रम हैं.
(2009 के आंकड़े)


सबसे ज़्यादा ओल्ड एज होम केरल में


एक दूसरी स्टडी के मुताबिक, इन वृद्ध आश्रम में लगभग 97 हज़ार ऐसे लोगों के रहने की व्यवस्था है, जिन्हें उनका परिवार बुढ़ापे में छोड़ देता है. लेकिन बड़ी बात ये है कि भारत में वर्ष 2028 तक ऐसे लोगों की संख्या 9 लाख हो जाएगी, यानी इन लोगों के लिए न तो घर में जगह बचेगी और न ही वृद्ध आश्रम में इनके लिए जगह होगी. सोचिए ये कितने दुर्भाग्य की बात है.


अगर राज्यों की बात की जाए, तो सबसे ज़्यादा ओल्ड एज होम केरल में हैं, वहां इनकी संख्या 615 है.


ये आंकड़े उस देश के हैं, जहां माता पिता पूजनीय होते हैं. हमारे देश में जब बच्चे परीक्षा या नौकरी के लिए घर से बाहर जाते हैं तो वो माता पिता का आशीर्वाद जरूर लेते हैं. त्योहार के मौकों पर बड़े बुज़ुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है. यही नहीं भारत में त्योहार के मौक़ों पर परिवारों का मिलना जुलना भी होता है. लेकिन अब ऐसा लगता है कि ये सारे रिश्ते डिजाइनर हो गए हैं और भावनाएं भी डिजाइनर हो गई हैं.


संयुक्त परिवार का बेहतरीन उदाहरण


 


हालांकि कुछ लोग हैं, जो अब भी संयुक्त परिवार में यकीन रखते हैं.


इनमें कर्नाटक का भी एक परिवार है. इस परिवार को नरसिंगानवार फैमिली कहते हैं, जिसमें आज भी 180 लोग एक साथ रहते हैं और इसे एशिया कॉन्टिनेंट की सबसे बड़ी जॉइंट फैमिली माना जाता है. ये परिवार पिछले 500 वर्षों से इस तरह संयुक्त कुटुम्ब में रह रहा है. सोचिए 5 सदी हो गईं लेकिन ये परिवार नहीं बिखरा. ये आज भी अंगूर के गुच्छों की तरह एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.


इस सूची में ज़ाओना चाना का भी परिवार है. उनके परिवार में 172 लोग रहते हैं, जिनमें उनकी 39 पत्नियां हैं, 90 बच्चे हैं और 33 नाती पोते हैं. ये परिवार भी एक साथ रहने में यकीन रखता है. सोचिए 90 बच्चे हैं, लेकिन कोई उनसे अलग नहीं हुआ. ऐसे और भी कई उदाहरण मिल जाएंगे. भारत में आज भी अलग अलग शहरों और गांवों में संयुक्त परिवार मिल जाएंगे, लेकिन ये संयुक्त परिवार अब सीमित हो रहे हैं और बिखर रहे हैं.


पश्चिमी देशों का चलन


हालांकि भारत के DNA में पहले ये संस्कृति नहीं थी. पहले पश्चिमी देशों में इसका चलन था. वहां आज भी बच्चे बड़े होते ही अपने माता पिता से अलग हो जाते हैं. इसे आप कुछ आंकड़ों से भी समझ सकते हैं.


-ब्रिटेन में लगभग साढ़े चार लाख लोग, वृद्ध आश्रम में रहते हैं.


-यानी 65 वर्ष या उससे ज़्यादा आयु वाले लोगों में से 4 प्रतिशत वृद्ध आश्रम में रहते हैं.


-जबकि 85 वर्ष ये ज्यादा आयु वाले 15 प्रतिशत वृद्धा आश्रम में रहते हैं.


-ये बात जानकर आपको हैरानी होगी कि ब्रिटेन में 65 वर्ष से अधिक आयु के 65 लाख लोग अकेले रहते हैं. ये वो लोग हैं, जिनके बच्चे उनके साथ नहीं रहते.


-यही नहीं, ब्रिटेन में 75 वर्ष से अधिक आयु के 20 लाख भी अकेले रहते हैं.


-इनमें से कई ऐसे हैं, जो अपने पति या पत्नी को खो चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद बाकी बचा जीवन इन्हें अकेले गुजारना पड़ रहा है.


-कहने का मतलब ये है कि भारत में इस तरह की संस्कृति नहीं रही है, लेकिन अब धीरे धीरे हम अपनी जड़ों को भूलते जा रहे हैं.


हमारे पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि उस पिता का जीवन कष्टमय ही गुजरता है जिसका पुत्र उसकी आज्ञा का उल्लंघन करता हो और उस पिता का जीवन तो नर्क समान है, जिसकी पत्नी भी पुत्र के समान हो और दोनों ही मिलकर पिता को अकेला कर देते हों.


श्रवण कुमार की कहानी 


आज भी जब माता पिता के प्रति सेवा भाव की बात होती है तो सबसे पहले श्रवण कुमार का ही नाम याद आता है. श्रवण कुमार की कहानी उस समय की है जब महाराज दशरथ अयोध्या पर राज किया करते थे और श्रवण कुमार के माता-पिता देख नहीं सकते थे.


एक दिन उनके माता-पिता ने उनसे कहा, 'बेटा, तुमने हमारी सारी इच्छाएं पूरी की हैं. अब एक इच्छा बाकी रह गई है.'


इस पर श्रवण कुमार ने कहा, 'कौन-सी इच्छा मां? क्या चाहते हैं पिता जी? आप आज्ञा दीजिए. प्राण रहते आपकी इच्छा पूरी करूंगा.' ये बात श्रवण कुमार ने कही.


इसके जवाब में उनके पिता ने कहा कि 'हमारी उम्र हो गई है और अब हम भगवान के भजन के लिए तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते हैं. शायद भगवान के चरणों में हमें शांति मिले.' अपने पिता की बात सुनकर श्रवण कुमार सोच में पड़ गए. उन दिनों आज की तरह बस, रेल या विमान नहीं होते थे. तब श्रवण कुमार के पास ज़्यादा विकल्प नहीं थे और उन्हें अपने माता पिता की इच्छा भी पूरी करनी थी.


ऐसे में उन्होंने दो बड़ी-बड़ी टोकरियां लीं और उन्हें एक मजबूत लाठी के दोनों सिरों पर रस्सी से बांधकर लटका दिया। इस तरह एक बड़ा कांवर बन गया. इसके बाद श्रवण कुमार ने अपने माता पिता को उसके अन्दर बैठा दिया और उनकी तीर्थ यात्रा सम्पन्न कराई. माता पिता देख नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों से उन्हें तीर्थ स्थलों के दर्शन भी कराए. श्रवण कुमार जो कुछ देखते थे, वो अपने माता पिता को बताते थे. ताकि वो भी उसे महसूस कर सकें.


ये कहानी हमने आपको इसलिए बताई ताकि आप समझ सकें कि भारतीय संस्कृति का DNA क्या है. आज भारत में परिवार ही नहीं रिश्ते भी बिखरे हुए हैं और माता पिता को लेकर संतानों का व्यवहार और स्वभाव भी बदला है. यही नहीं कई घरों में लोग अपने बुज़ुर्ग माता पिता के साथ दुर्व्यवहार भी करते हैं और इससे उन्हें बचाने के लिए क़ानून भी बनाए गए हैं. सोचिए श्रवण कुमार की संस्कृति वाले देश में माता-पिता को उनकी संतान से बचाने के लिए क़ानून बनाने पड़े.


कानून क्या कहता है?


 


हमारे देश में इसके लिए Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 है. इसके तहत माता पिता के भरण-पोषण और उनकी देखरेख को सुनिश्चित किया गया है. ये क़ानून कहता है कि संतान अगर अपने माता पिता का भरण पोषण नहीं करती तो ऐसी स्थिति में उन्हें अपने माता पिता को 10 हज़ार रुपये तक का हर महीने भत्ता देना होगा.


इसके अलावा वर्ष 2017 में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इस पर एक अहम फ़ैसला दिया था. इस फ़ैसले में तब कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई व्यक्ति घर में अपने बुज़ुर्ग माता पिता के साथ दुर्व्यवहार करता है तो वो अपने माता पिता की सम्पत्ति में हिस्से का हक़दार नहीं होगा. इसके अलावा उन्हें ऐसा करने पर घर से बाहर भी निकाला जा सकता है.


एक सर्वे के मुताबिक़ भारत में लगभग 50 प्रतिशत बुज़ुर्ग कभी ना कभी अपनी संतानों द्वारा उत्पीड़न का शिकार हुए हैं. इनमें 48 प्रतिशत पुरुष और 52 प्रतिशत महिलाएं हैं.


पिछले लगभग डेढ़ साल से पूरी दुनिया कोरोना वायरस से संघर्ष कर रही है और इस संघर्ष में बहुत से लोगों ने ये समझा है कि परिवार से बड़ा कोई बैंक बैलेंस नहीं होता. टूटा और बिखरा हुआ परिवार, ठीक उन मोतियों की तरह होता है, जो डिब्बे में साथ होते हुए भी एक सूत्र में नहीं बंधे होते हैं.