नई दिल्ली:  भारत में इस समय गूगल प्लेस्टोर पर 30 लाख से ज्यादा मोबाइल फोन एप्लीकेशन मौजूद हैं. इनमें से 4 लाख 44 हज़ार 226 ऑनलाइन गेमिंग एप्स हैं और इन गेमिंग एप्स में से 19 हज़ार 632 एप्स भारत में ही विकसित हुए हैं.


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-वर्ष 2018 में भारत में ऑनलाइन गेम्स खेलने वाले यूजर्स की संख्या 26 करोड़ 90 लाख थी.


-वर्ष 2020 में ऐसे यूजर्स की संख्या बढ़कर 36 करोड़ 50 लाख हो गई.


-और अनुमान है कि वर्ष 2022 में ये संख्या 51 करोड़ हो जाएगी.


एक और आंकड़ा आपको बताते हैं. वर्ष 2019 में भारत में ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री की वैल्यू 8 हज़ार 300 करोड़ रुपये थी, लेकिन अनुमान है कि वर्ष 2022 तक ये वैल्यू बढ़कर 21 हजार करोड़ रुपये हो जाएगी.


लूडो कौशल का नहीं, किस्मत का खेल?


ये आंकड़े हमने आपको पहले इसलिए बताए ताकि आप भारत में तेजी से बढ़ती ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री की ताकत को समझ सकें. ये आंकड़े आपने जान लिए, अब आपको खबर के बारे में बताते हैं. दरअसल, बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर हुई है, जिसमें ये कहा गया है कि लूडो की आड़ में ऑनलाइन गेमिंग एप्स कंपनी जुए को बढ़ावा दे रही है और लोग इसे खेल रहे हैं. इस याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि लूडो कौशल का नहीं, बल्कि किस्मत का खेल है.


अंग्रेज़ी में इसे Game of Skill और Game of Chance कहते हैं. वैसे इससे संबंधित क़ानून The Public Gambling Act, 1867 में इन दोनों का ज़िक्र नहीं है. लेकिन सामान्य तौर पर Game of Chance उस खेल को कहते हैं, जिसमें आपकी जीत और हार, आपकी किस्मत पर निर्भर करती है. जैसे लॉटरी का खेल, Casino, Bingo और सट्टा यानी Betting.


गेम ऑफ स्किल उस खेल को कहते हैं, जिसमें आपकी जीत तभी मुमकिन है, जब उस खेल में आप माहिर हों. आपको खेल के बारे में पता हो. कैसे जितना है, इसकी जानकारी हो. जैसे शतरंज का खेल. इसमें आपको दिमाग लगाना पड़ता है और खुद चाल चलनी पड़ती है. यानी ये किस्मत का खेल नहीं है.


बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका


अब इस याचिका में लूडो को इस आधार पर Game of Chance यानी किस्मत का खेल बताया गया है कि इसमें पासा फेंकने पर व्यक्ति को पता नहीं होता कि उसका कौन सा नंबर आएगा. ये तभी पता चलता है जब पासा गिरता है. यानी इसमें उस व्यक्ति की कोई स्किल नहीं होती. इसी आधार पर ये याचिका दावा करती है कि ऑनलाइन लूडो खिलाने वाली ये कंपनी इसकी आड़ में जुआ खिला रही है.


इस याचिका में दावा किया गया है कि ये कंपनी हर यूजर से पांच पांच रुपये लेती है. एक खेल में चार लोग होते हैं. यानी इस हिसाब से हर यूजर से पांच पांच रुपये लेकर 20 रुपये इकट्ठा हो जाते हैं. खेल खत्म होने पर जो व्यक्ति जीतता है उसे 17 रुपये मिलते हैं, जबकि तीन रुपये कंपनी के पास चले जाते हैं. इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा है और अगली सुनवाई के लिए 22 जून की तारीख तय की है.


अब आपके मन में ये बात होगी कि इस तरह के तो कई एप्स हैं, जो आपको खेल के जरिए कमाने का मौका देते हैं. इसमें बड़ी बात क्या है? तो अब हम आपको इस खेल के पीछे का भी सारा खेल बताते हैं.


Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry की एक स्टडी में ये अनुमान लगाया गया है कि भारत में वर्ष 2023 तक Real Money Gaming का बाजार 13 हजार 300 करोड़ रुपये का हो जाएगा. ये रकम कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि एक स्टडी के अनुमान के मुताबिक, एक तैयार बिल्डिंग में एक अस्पताल का सेट अप करने के लिए 70 लाख रुपये तक खर्च होते हैं. इस हिसाब से देखें तो 13 हजार 300 करोड़ रुपये में 19 हजार अस्पताल का सेट अप हो सकता है.


भारत में कहा जाता है कि नशे की लत दो तरह की होती है.


-एक लत है नशीले पर्दार्थों की


-और दूसरी लत है जुए के नशे की.


जुए को भारत में नशे की लत की तरह देखा जाता है. यही नहीं तीन दशक पहले जब मोबाइल फोन एक सीमित वर्ग के पास होते था और स्मार्टफोन नहीं आए थे, तब जुए को एक बीमारी माना जाता था. लोग कहते थे कि जुआ जीने नहीं देता और जिंदगियां बर्बाद कर देता है और ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ विश्वास है लोगों का. जुए ने कई जिंदगियों को बर्बाद भी किया है और इसीलिए शायद तब माता-पिता अपने बच्चों को जुए से अलग रखते थे और जुआ खेलने वालों को समाज में गलत नजरों से देखा जाता था. तब बड़े बुजुर्ग परिवार के सदस्यों से कहते थे कि ऐसे लोगों से दूर रहे, जो जुआ खेलते हैं.


लेकिन आज जमाना बदल गया है. अब इंटरनेट का युग है और इस युग में जुआ खेलना ट्रेंड है. आज कई ऑनलाइन गेमिंग एप्स के जरिए लोग पैसा कमा रहे हैं और इसमें आर्थिक नुकसान होने का भी जोखिम रहता है.


-एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में कुल इंटरनेट यूजर्स में से 40 प्रतिशत ऑनलाइन जुआ खेलते हैं


-ये अध्ययन ये भी कहता है कि आने वाले वर्षों में भारत इस मामले में ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ देगा.


-इसके अलावा एक और रिसर्च कहती है कि भारत में 18 साल से ऊपर के 80 प्रतिशत लोग साल में कम से कम एक बार जरूर जुआ खेलते हैं.


और ऑनलाइन गेमिंग एप्स आने के बाद तो हर रोज जुआ खेलने का एक ट्रेंड बन गया है.



कुछ रिपोर्ट्स ऐसा भी कहती हैं कि जब से कोरोना वायरस आया है, तब से इन गेमिंग एप्स के अच्छे दिन आ गए हैं. लोग लूडो और दूसरे खेल के बहाने पैसे भी कमा रहे हैं और घर में रह कर अपना मनोरंजन भी कर रहे हैं, लेकिन यहां ये समझना जरूरी है कि कहीं मनोरंजन के चक्कर में ये एप्स आपको जुआ खेलने की लत तो नहीं लगा रहे?


एक सर्वे के मुताबिक, भारत में गेमिंग एप्स खेलने वाले लोगों में से 24 प्रतिशत लोगों को लगता है कि वो इससे पैसा भी कमा सकते हैं. 


हालांकि आपके मन में ये भी सवाल होगा कि जब ये एप्स जुआ खिला रहे हैं, तो फिर इन पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?


तो अब हम आपको इसके बारे में भी बताते हैं. भारत में जुए और सट्टे को राज्यों का विषय माना गया है. इसके लिए हमारे देश में The Public Gambling Act, 1867 मौजूद है. ये कानून जुए से संबंधित सभी गतिविधियों को रोकता है. इस हिसाब से जितने भी एप्स अपने यूजर्स को पैसे जीतने का मौका देते है, वो प्रतिबंधित होने चाहिए. लेकिन इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला बहुत अहम है.


ये फैसला सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1957 में दिया था, जब देश को आजाद हुए 10 वर्ष हुए थे. इस फैसले में तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई खेल कौशल से जुड़ा है, यानी स्किल्स का खेल है और उसमें पैसा लगता भी है तो इसे जुआ नहीं माना जाएगा. ये Game of Skill कहलाएगा. अगस्त 2015 में भी सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एक फैसला दिया था. इसमें तब अदालत ने कहा था कि रमी गेम भी Game of Skill है.


वैसे किसी भी खेल में जब पैसों की बात आती है और उसके कानूनी और गैर कानूनी होने पर सवाल उठते हैं तो ऐसी स्थिति में भारत का संविधान सभी राज्यों को एक विशेष अधिकार देता है. ये अधिकार भारतीय संविधान के Seventh Schedule की लिस्ट 2 के तहत मिलता है. इसके तहत राज्य चाहे तो जुए को रोकने के लिए अपना कानून बना सकते हैं. हालांकि अधिकतर राज्यों ने ऐसा नहीं किया है. वो The Public Gambling Act, 1867 को ही मानते हैं और यही कानून इन राज्यों में लागू है.


लेकिन असम, ओडिशा, सिक्किम, नागालैंड और तेलंगाना जैसे राज्यों के पास जुए को रोकने के लिए अपना कानून है.


इनमें असम, ओडिशा और तेलंगाना ऐसे तीन राज्य हैं, जहां इस तरह के किसी भी खेल पर प्रतिबंध है, जिसमें पैसों का लेन देन होता है.


यही नहीं पैसों का लेन देने करने वाले कई ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स भी इन राज्यों में प्रतिबंधित हैं.


कुछ राज्य ऐसे भी हैं, जहां ऐसे गेमिंग एप्स पर कठोर कार्रवाई की गई है. जैसे तमिलानाडु और आन्ध्र प्रदेश में रमी और पोकर जैसे गेमिंग एप्स पर बैन लगाया गया है और ये मामला दोनों ही राज्यों के हाई कोर्ट में विचाराधीन है.


महत्वपूर्ण बात ये है कि इस मामले में इन कंपनियों ने ये दलील हाई कोर्ट में दी है कि Wireless Communication राज्यों का नहीं, बल्कि केन्द्र का विषय है. ऐसे में राज्यों की ये कार्रवाई संविधान के अनुरूप नहीं है.


लेकिन इसके बावजूद कुछ राज्य ऐसे भी हैं, जो इन एप्स पर कार्रवाई के लिए विचार कर रहे हैं.


इनमें गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान और उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं.


और अब महाराष्ट्र में भी लूडो एप्स को लेकर मामला हाई कोर्ट में पहुंच गया है.


लूडो का इतिहास


आज जब लूडो की बात हो रही है तो हम इससे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें भी आपको बताना चाहते हैं. आपको शायद पता नहीं होगा कि लूडो का इतिहास अजंता और एलोरा की गुफाओं, महाभारत, मुगल शासक अकबर और कोरोना वायरस से जुड़ा हुआ है. कैसे अब आप वो समझिए-


वैसे तो लूडो के खेल की उत्पत्ति को लेकर इतिहास में कोई भी जानकारी स्पष्ट रूप से मौजूद नहीं है. लेकिन इससे संबंधित सबसे प्राचीन सबूत महाराष्ट्र की अजंता की गुफाओं में मिलते हैं. तब दीवारों पर लूडो का ये खेल खेला जाता था. इन साक्ष्यों से पता चलता है कि लूडो भारत में खेला जाने वाला प्राचीन खेल है


लूडो को भारत में कई नामों से जाना जाता है. जैसे चौसर, चौपड़ और पचीसी. यही नहीं लूडो पूरी दुनिया में लोकप्रिय है. यूरोप के देश स्पेन में ये Parcheesi के नाम से जाना जाता है, चीन में इसे Chatush pada कहा जाता है. इसके अलावा अफ्रीका में लोग इसे (Ludu) लुडु कहते हैं.


लूडो खेल का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है. ऐसी मान्यता है कि महाभारत का युद्ध अगर लड़ा गया तो इसके पीछे यही खेल था. महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों और कौरवों के बीच द्यूत क्रीड़ा का आयोजन हुआ था.


द्यूत क्रीड़ा लूडो का ही प्राचीन नाम है. तब पांडवों और कौरवों के बीच द्यूत क्रीड़ा हुई. इसमें कौरवों की तरफ से शकुनी खेल रहे थे और उनके सामने पांडव थे. तब पांडव इस खेल में शकुनी से अपना राजपाट हार गए थे और सब कुछ हारने के बाद उन्होंने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया था और फिर कौरवों ने द्रौपदी को भी इस क्रीड़ा में जीत लिया था. चीर हरण का अध्याय इसी से जुड़ा है.


जब पांडव इस खेल में द्रौपदी को हार गए तो उनका चीरण हरण हुआ. दुःशासन ने भरी सभा में उनका चीर हरण किया. हालांकि इस दौरान भगवान श्री कृष्ण अवतरित हुए और उन्होंने द्रौपदी की साड़ी को इतना लम्बा कर दिया कि दुःशासन चीर हरण करते करते थक गया. मान्यता है कि द्रौपदी का ये अपमान पांडवों को बर्दाश्त नहीं हुआ और फिर पांडवों और कौरवों के बीच कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध लड़ा गया.


यानी लूडो का उल्लेख द्यूत क्रीड़ा के रूप में महाभारत में भी मिलता है. तब इस खेल में चौसर को हाथों में फंसा कर फेंका जाता था. चौसर में दो पासे होते थे. कहने का मतलब ये है कि लूडो भारतीय संस्कृति का हिस्सा है.


इसके अलावा कुछ इतिहासकार मानते हैं कि मुगल बादशाह अकबर को भी ये खेल काफी पसंद था. हालांकि तब खेल का स्वरूप काफी अलग था. उस समय चौकोर खानों में गोटियों की जगह इंसान खड़े होते थे. आगरा में फतेहपुर सीकरी किले में आज भी फर्श पर ऐसे चौकोर खाने बने हैं, जिनसे पता चलता है कि मुगल बादशाह अकबर इस खेल का कितना बड़ा दीवाना था.


हालांकि आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इस खेल को लूडो नाम ब्रिटेन के एक अफसर ने दिया था, जिनका नाम Alfred Collier था. जब हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था, उस समय ये अफसर यहीं पर नियुक्त थे. हालांकि बाद में जब ये अपने देश लौटे तो उन्होंने वर्ष 1891 में लूडो को अपने नाम पर पेटेंट करा लिया. यानी लूडो पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया. कहा जाता है कि इस पेटेंट के बाद ही ये खेल दुनिया भर में इतना लोकप्रिय हुआ.


कई तरह की सीख भी देता है लूडो का खेल


आज हम आपसे यहां ये भी कहना चाहते हैं कि लूडो का खेल हमें कई तरह की सीख भी देता है.


ये हमें बताता है कि अगर शुरुआत अच्छी हो तो इसका मतलब ये नहीं है कि अंत में जीत भी आपको मिल जाएगी. कई बार ऐसा होता है कि आप पासा फेंक कर 6, 6 अंक ले आते हैं और अपनी गोटियां खोल लेते हैं, लेकिन बाद में हार जाते हैं.


दूसरी सीख, अपने प्रतिद्वंद्वी को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए. इस खेल के दौरान अक्सर लोगों को लगता है कि वो आसानी से अपने प्रतिद्वंद्वी को हरा देंगे जबकि ऐसा होता नहीं है.


तीसरी सीख, जीत के लिए हमेशा आपके पास एक नहीं दो प्लान होने चाहिए क्योंकि, जब पहला प्लान फेल हो जाता है तो दूसरा प्लान ही काम आता है.


ये खेल हमें सिखाता है कि हमें हमेशा सावधान रहना चाहिए क्योंकि, जीत जितनी जरूरी हमारे लिए है, उतनी ही जरूरी दूसरों के लिए भी है. लूडो खेलते समय हर कोई जीतना चाहता है, लेकिन अंत में जीतता कोई एक ही है.


और सबसे अहम अगर आपकी चारों गोटियों घर में हैं तो आप सुरक्षित हैं. कोरोना के इस काल में ये सीख सबसे ज्यादा जरूरी है क्योंकि, अगर आपके परिवार का कोई सदस्य यानी गोटी बाहर रह गई और वो स्टॉप पर नहीं है तो ये वायरस उस पर प्रहार कर सकता है. इसलिए अपनी सभी गोटियों के साथ अंदर रहिए और जीवन में कभी भी तनाव में मत रहिए.