DNA ANALYSIS: छोटी-छोटी खुशियों वाला राष्ट्रवाद, चीन में जो गोल्ड ना जीते...वो गद्दार!
भारत में सिल्वर मेडल जीतने वाली मीराबाई चानू और ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली पीवी सिंधु का जोरदार स्वागत हो रहा है. वहीं पड़ोसी चीन में गोल्ड से कुछ भी कम जीतने वाले खिलाड़ी को गद्दार माना जाता है.
नई दिल्ली: हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले पहलवान रवि दहिया टोक्यो ओलम्पिक (Tokyo Olympics 2021) में पुरुषों की Free Style कुश्ती के फाइनल में पहुंच गए हैं. उन्होंने कम से कम सिल्वर मेडल पक्का कर लिया है.
रवि दहिया की जीत से जो लोग खुश हैं. उनमें से किसी ने मेडल नहीं जीता है और इनमें से किसी को कोई ईनाम भी नहीं मिलेगा. फिर भी ये लोग एक खिलाड़ी की जीत से खुश हैं. इसकी वजह ये है कि वह खिलाड़ी, इनके गांव, इनके राज्य और इनके देश का खिलाड़ी है. अगर रवि दहिया फाइनल में हार भी जाएं तो भी ये लोग ऐसे ही खुश होंगे. यही असली राष्ट्रवाद है, जो पूरी तरह से निस्वार्थ होता है .
असली राष्ट्रवाद होता है निस्वार्थ
असली राष्ट्रवाद ना दक्षिण पंथी होता है और ना वाम पंथी होता है. असली राष्ट्रवाद सिर्फ निस्वार्थ होता है. जो बिना किसी लालच के अपने खिलाड़ियों, अपने सैनिकों और अपने देश से प्यार करता है. वही असल में राष्ट्रवादी होता है. बैडमिंटन में Bronze Medal जीतने वाली पीवी सिंधु का भी शानदार स्वागत हुआ. जब वो अपने घर पहुंची तो पीवी सिंधु और उनके कोच की आरती उतारी गई. पीवी सिंधु के कोच दक्षिण कोरिया के हैं. फिर भी उनका स्वागत किसी हीरो की तरह किया गया. ये सब बताता है कि हम अपने खिलाड़ियों को सम्मान देना जानते हैं. फिर चाहे वो Bronze Medal जीतें या सिल्वर-गोल्ड. या फिर अच्छा मुकाबला करके हार ही क्यों ना जाएं.
बुधवार को जब भारत की महिला हॉकी टीम सेमीफाइनल मुकाबले में अर्जेंटीना से 2-1 से हार गई तो पूरे देश में निराशा फैल गई. इसके बावजूद देश के लोगों ने अपने खिलाड़ियों का साथ नहीं छोड़ा और उन्हें Bronze Medal मैच के लिए शुभकामनाएं देना शुरू कर दिया. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी महिला हॉकी टीम की कैप्टन रानी रामपाल को फोन किया और कहा कि हार-जीत तो जीवन का हिस्सा है. उन्हें निराश होने की ज़रूरत नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी ने महिला हॉकी टीम को अगले मुकाबले के लिए शुभकामनाएं भी दीं.
महिला हॉकी टीम का शुक्रवार को मुकाबला
अब महिला हॉकी टीम शुक्रवार को Bronze Medal के लिए ब्रिटेन के खिलाफ मैदान में उतरेगी. जबकि पुरुषों की हॉकी टीम का Brozne Medal Match गुरुवार को जर्मनी से होगा. रेसलिंग के फाइनल में पहुंचे रवि दहिया भी गुरुवार को गोल्ड मेडल के लिए मुकाबले में उतरेंगे. बुधवार को रेसलिंग के सेमीफाइनल में हारने वाले दीपक पुनिया भी गुरुवार को Bronze Medal मैच के लिए Ring में उतरेंगे. अब ये खिलाड़ी चाहे Gold जीतें, सिल्वर या फिर Bronze लेकिन देश इनके लिए खुशियां मनाएगा.
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वहीं जब चीन में उनका कोई खिलाड़ी गोल्ड मेडल ना जीत कर सिल्वर या Bronze मेडल जीतता है तो उसकी Trolling होने लगती है. इसकी वजह से वो खिलाड़ी अपनी हार के बाद घबरा जाते हैं. दरअसल चीन ने अपने खिलाड़ियों पर नकली राष्ट्रवाद का इतना बोझ लाद रखा है कि वो हारने के बाद अपने देश वापस लौटने से भी डरते हैं. वहां सिलवर मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को भी ये कहा जाता है कि उन्होंने देश की नाक कटा दी और वो गद्दार है.
चीन का नकली राष्ट्रवाद किसी को भी खराब प्रदर्शन की गुंजाइश नहीं देता.
चीन (China) इस समय 32 Gold Medals के साथ टोक्यो ओलम्पिक (Tokyo Olympics 2021) की Medal Tally में सबसे ऊपर है. Silver और Bronze मिलाकर चीन के पास इस समय 70 मेडल हैं. इसके बावजूद चीन के लोग और वहां की सरकार इससे खुश नहीं है. चीन में ऐसी मानसिकता है कि अगर खिलाडी Gold Medal से कम कुछ भी जीतते हैं तो वो सच्चे देश भक्त नहीं है बल्कि गद्दार हैं.
चीन ने खेलों को भी बनाया अहंकार का विषय
चीन ने खुद को दुनिया के मुकाबले खड़ा करने के लिए अपना सबकुछ झोंक दिया. खेल से लेकर विज्ञान तक को अहंकार का विषय बना लिया. चीन में जो लोग सोशल मीडिया और इंटरनेट पर अपने खिलाड़ियों को निशाना बना रहे हैं. वे लोग ओलंपिक खेलों को किसी युद्ध के मैदान से कम नहीं समझते. ऐसा युद्ध का मैदान, जहां चीन अकेला पूरी दुनिया से लड़ रहा है. जहां Gold जीतने वाला खिलाड़ी तो एक योद्धा है लेकिन हारने वाले खिलाड़ी Loosers और गद्दार हैं.
चीन में Computer के Keyboard पर इस नकली राष्ट्रवाद का प्रदर्शन करने वाले इन युवाओं को LITTLE PINKS कहा जाता है. ये लोग अपने देश की एक भी हार को बर्दाश्त नहीं कर पाते. इस दबाव को एक उदाहरण से समझिए. पिछले हफ्ते Table Tennis के Mixed Doubles का फाइनल मुकाबला चीन अपने प्रतिद्वंदी जापान से हार गया था. चीन के खिलाड़ियों ने अपने देश के लिए सिल्वर मेडल जीता. किसी और देश के लिए शायद ये भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती. वहीं चीन के खिलाड़ी लगातार रो रहे थे और बार-बार माफी मांग रहे थे.
शायद इन खिलाड़ियों को अंदाज़ा हो गया था कि अब चीन (China) में उनके साथ क्या होने वाला है. मैच के तुरंत बाद चीन के लोगों ने इंटरनेट पर इन खिलाड़ियों को Troll करना शुरू कर दिया. लोगों ने आरोप लगाए कि इन खिलाड़ियों ने अपने देश का सिर शर्म से झुका दिया है और देश की नाक कटा दी है.
गोल्ड हारने पर ट्रोल करते हैं चीनी नागरिक
जापान और चीन की दशकों पुरानी दुश्मनी है. 1930 के दशक में जापान ने चीन पर कई बार हमले किए थे और चीन के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा भी कर लिया था. इस दौरान जापान की सेना ने चीन के लाखों लोगों का खून बहाया और उनके साथ अत्याचार किया. इसलिए चीन किसी भी कीमत पर जापान से हारना नहीं चाहता. सवाल है कि क्या वर्षों पहले हुए एक घटनाक्रम के लिए ओलंपिक में खेल रहे खिलाड़ियों को गद्दार कहा जा सकता है?
ये सिर्फ एक खेल में मिली हार की कहानी नहीं है. जब बैडमिंटन में चीन की Men's Doubles की टीम ताइवान के हाथों फाइनल मैच हार गई. तब भी उन खिलाड़ियों के साथ भी ऐसा ही किया गया. तब चीन (China) के सोशल मीडिया Users ने अपने इन खिलाड़ियों के लिए लिखा कि ऐसा लगता है ये खिलाड़ी सो गए थे और इन्होंने जीतने के लिए ज़रा भी कोशिश नहीं की.
चीन में कई बार गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को भी नहीं बख्शा जाता. इन ओलंपिक खेलों (Tokyo Olympics 2021) का पहला गोल्ड मेडल चीन की शूटर यैंग कियान ने जीता था. इसके बाद इस खिलाड़ी ने अपने जूतों के Collections की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की थी. जो कंपनी ये जूते बनाती है, वो इन दिनों वीगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ चीन में बनने वाले कच्चे माल का विरोध कर रही है.
इसी वजह से चीन की Littile Pink सेना ने इंटरनेट पर अपनी Gold Medalist खिलाड़ी पर हमला बोल दिया. उनका अपमान किया गया और उन्हें डराया और धमकाया गया.
कड़ी मेहनत के बावजूद मिलती है आलोचना
चीन खुद को हर क्षेत्र में Number One देखना चाहता है और उसे इससे कोई मतलब नहीं है कि Number One होने की ये ज़िद उसके खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर डालती है. चीन में बच्चों को बहुत शुरुआत से ही Athletic स्कूलों में डाल दिया जाता है. जहां कड़ी ट्रेनिंग के नाम पर उनके कोच उन्हें मारते-पीटते हैं और प्रताड़ित करते हैं.
बड़े होकर ये खिलाड़ी जब ओलंपिक जैसे खेलों में हिस्सा लेते हैं तो भी उनके हिस्से में सिर्फ आलोचना आती है और इन्हें गद्दार कह दिया जाता है. इस खौफ को चीन (China) के खिलाड़ी भी अच्छी तरह से समझते हैं. इसके बावजूद वे यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति बहुत वफादार हैं.
उदाहरण के लिए Cycling में चीन के लिए Gold और Bronze Medal जीतने वाले दो खिलाड़ी जब पोडियम पर पहुंचे तो उन्होंने अपनी जर्सी पर कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओ त्से तुंग के चेहरे वाला एक Badge लगाया हुआ था. जबकि Olympic Charter के आर्टिकल 50 के मुताबिक खिलाड़ी किसी भी तरह का राजनैतिक या धार्मिक Propaganda Olympics खेलों के दौरान नहीं कर सकते.
वर्ष 1960 में जब चीन में सांस्कृतिक क्रांति हुई. तब माओ के चेहरे वाले इस Badge की चीन में बहुत मांग हुआ करती थी. इसे आज भी देशभक्ति का प्रमाण माना जाता है. चीन के खिलाड़यों को हर कदम पर देशभक्ति का सबूत देना पड़ता है.
दूसरे देशों में खिलाड़ियों को प्रोत्साहन
जबकि दूसरे देशों में ऐसा नहीं होता. भारत के खिलाड़ी Bronze भी जीतते हैं तो पूरे देश को खुशी होती है. हमारे खिलाड़ी अच्छी लड़ाई लड़ने के बाद हार जाते हैं. तब भी हम उनका सम्मान करते हैं. अमेरिका की चैंपियन खिलाड़ी Simon Biles जब मानसिक स्वास्थ्य की वजह से Olympic खेलों में हिस्सा नहीं ले पाईं तो पूरे अमेरिका ने उनके इस फैसले की तारीफ की.
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वहीं चीन के साथ ऐसा नहीं है. वो इतिहास में उसके खिलाफ हुए अत्याचारों का बदला भी अपने खिलाड़ियों के ज़रिए लेना चाहता है. वो अपने खिलाड़ियों के दम पर ही खुद को खेलों की दुनिया की महाशक्ति बनाना चाहता है.
इसी का नतीजा है कि चीन (China) के खिलाड़ी जीतकर भी अपने देश में गद्दार और नाकाम कहलाते हैं. चीन के खिलाड़ियों की ये कहानी हमें आज़ादी और निस्वार्थ राष्ट्रवाद का महत्व बताती है. हमारे देश में आज़ादी है. इसलिए हमें ऐसे दबाव का सामना नहीं करना पड़ता. खराब से खराब प्रदर्शन पर भी हमें आलोचनाएं नहीं झेलनी पड़ती. इसलिए जो आज़ादी हमें भारत में हासिल है. हमें उसकी कीमत पहचाननी चाहिए.
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