नई दिल्ली: कल 6 जुलाई को तिब्बत के 14वें धर्मगुरू दलाई लामा का जन्मदिन मनाया गया. दलाई लामा 86 वर्ष के हो गए हैं. दलाई लामा एक ऐसा पद है, जिस पर तिब्बत के धर्मगुरुओं का समय-समय पर चुनाव होता है. मौजूदा दलाई लामा का नाम तेंज़िन ग्यात्सो हैं. तिब्बत के ल्हासा में अपने आधिकारिक महल पोटाला से दूर भारत में ये उनकी 62वीं जन्मतिथि है. लगभग इतने ही वर्षों से वो अपनी निर्वासित सरकार के साथ भारत में बसे हुए हैं.


6 दशकों से देश की आजादी के लिए संघर्ष 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दुनियाभर के तिब्बती लोग 6 जुलाई का दिन  World Tibet Day या फिर संकल्प दिवस के तौर पर भी मनाते हैं. वर्ष 1959 में चीन के अत्याचारों को झेलने के बाद वहां से निर्वासित हो चुके तिब्बतियों को भरोसा है कि वो एक दिन अपने घर जरूर लौटेंगे. यही उनका एकमात्र संकल्प है.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दलाई लामा से बात की और उन्हें उनके जन्मदिन पर शुभकामनाएं दीं. बड़ी बात ये है कि कुछ ही दिन पहले जब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के 100 वर्ष पूरे हुए थे, तब प्रधानमंत्री ने चीन को इसकी शुभकामनाएं नहीं दी थीं.


दलाई लामा पिछले 6 दशकों से अपने देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं और उनके साथ उनके लाखों अनुयायी भी हैं. ये संघर्ष तिब्बत के लोगों के लिए बहुत पीड़ादायी रहा है, लेकिन इसके बावजूद दलाई लामा के अनुयायियों ने हमेशा खुश रहने का तरीका सीख लिया है.


तिब्बत में रहने वाले 60 लाख लोग आज भी दलाई लामा का बहुत सम्मान करते हैं. आज भी जब दलाई लामा से अपने देश वापस जाने की बात पूछी जाती है तो वो शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए स्वदेश वापसी की बात दोहराते हैं. इस दौरान वो भारत में लोगों को मिली स्वतंत्रता और धार्मिक आजादी की तारीफ भी करते हैं.


चीन कराना चाहता था दलाई लामा की हत्या 


चीन की सेना ने जब तिब्बत पर कब्जा किया था, तो उस समय चीन दलाई लामा की भी हत्या कराना चाहता था और इसी वजह से वर्ष 1959 में दलाई लामा तिब्बत छोड़कर भारत आ गए. दलाई लामा असम में तेजपुर के रास्ते भारत आए थे और तब भारत में उनका शानदार स्वागत हुआ था. दलाई लामा के साथ उनकी मां और उनकी बहन भी थीं और बड़ी संख्या में उनके अनुयायी भी थे. 


दलाई लामा के भारत आने के बाद तिब्बत के करीब 80 हजार नागरिक भी भारत आ गए थे और कुछ समय बाद हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में तिब्बत की निर्वासित सरकार का गठन हुआ. पिछले 62 वर्षों से भारत दलाई लामा के दूसरे घर जैसा है. दलाई लामा और उनके समर्थक आज भी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं.


तिब्बत में दलाई लामा का इतिहास


दलाई लामा का शाब्दिक अर्थ होता है, ज्ञान का महासागर तिब्बत के लोग उन्हें अपना शिक्षक मानते हैं, जो उन्हीं के बताए रास्ते पर चलते हैं. माना जाता है दलाई लामा ऐसे धर्मगुरु हैं, जिन्होंने मानवता की रक्षा के लिए पुनर्जन्म का फैसला किया. तिब्बत में दलाई लामा का इतिहास करीब 600 वर्ष पुराना है.


तिब्बत के लोग मानते हैं कि दलाई लामा अपने पुनर्जन्म को भी तय कर सकते हैं और उनके पास उस शरीर को चुनने की क्षमता है, जिसमें वो पुनर्जन्म लेना चाहते हैं. इससे पहले वर्ष 1933 में 13वें दलाई लामा का निधन हुआ था. उस समय 14वें दलाई लामा की खोज में 4 वर्षों का समय लगा था.


14वें दलाई लामा इस समय 86 वर्ष के हैं और उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती है. अब उनके समर्थक अगले दलाई लामा की खोज कर रहे हैं. हालांकि चीन दलाई लामा के नाम पर एक ऐसे व्यक्ति को चुनना चाहता है जो कठपुतली की तरह उसके सभी आदेशों का पालन करे.


दलाई लामा ने अब तक आधिकारिक तौर पर अपने उत्तराधिकारी की बात नहीं की है. हालांकि उन्होंने कहा है कि अगले दलाई लामा का जन्म किसी आजाद देश में होगा और वो कोई लड़की भी हो सकती है.



दलाई लामा खुद ही चुनते हैं अपना उत्तराधिकारी 


पारंपरिक तौर पर दलाई लामा खुद ही अपना उत्तराधिकारी चुनते हैं और अपने निधन से पहले वो अपने अनुयायियों को बता देते हैं कि अगले दलाई लामा कहां और किस स्थान पर मिलेंगे, लेकिन चीन चाहता है कि वो इस परंपरा को न मानते हुए खुद ही नए दलाई लामा की घोषणा कर दे.


कहने के लिए चीन के द्वारा चुने गए दलाई लामा तिब्बत के होंगे, लेकिन उनकी विचारधारा सौ प्रतिशत चाइनीज होगी. तिब्बत में अगर किसी व्यक्ति के पास 14वें दलाई लामा की तस्वीर भी मिल जाए तो उसे जेल भेज दिया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि, चीन उन्हें अलगाववादी मानता है.


तिब्बत में दलाई लामा के बाद दूसरे सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति पंचेन लामा होते हैं. उनका पद भी दलाई लामा की तरह पुनर्जन्म पर आधारित है.


वर्ष 1995 में तिब्बत में 6 वर्ष के एक बच्चे को पंचेन लामा का अगला अवतार माना गया था. हालांकि पंचेन लामा और उसके पूरे परिवार को उसके बाद से आज तक देखा नहीं गया. तिब्बत के लोगों का दावा है कि उनके गायब होने के पीछे चीन का हाथ है.


PM मोदी ने सार्वजनिक तौर पर दी जन्मदिन की बधाई


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दलाई लामा को फोन करके जन्मदिन की बधाई दी. पीएम मोदी ने इसके बारे में ट्वीट करके ये जानकारी दी. पीएम मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा कि 86वें जन्मदिन के अवसर पर धर्मगुरु दलाई लामा से फोन पर बात की. हम उनके लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं.


वर्ष 2015 तक पीएम मोदी लगातार धर्मगुरु दलाई लामा को ट्विटर पर बधाई देते रहे हैं, लेकिन वर्ष 2016 के बाद से सार्वजनिक तौर पर पीएम मोदी ने उन्हें बधाई नहीं दी है.


वर्ष 2019 में पीएम मोदी की ओर से दलाई लामा को बधाई भेजी गई थी, लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं किया गया था. वर्ष 2020 में बधाई नहीं दी गई थी और 2021 में अब खुले तौर पर पीएम मोदी ने दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई दी है. यानी वर्ष 2015 के बाद पीएम मोदी ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर दलाई लामा से बात की और उसकी जानकारी ट्विटर पर लोगों से शेयर की है.


चीन को कड़ा संदेश 


चीन के साथ फिलहाल भारत के जो रिश्ते हैं, ऐसे में वक्त दलाई लामा से हुई बातचीत को एक बड़ी हलचल माना जा रहा है, लेकिन पिछले करीब एक-दो साल में भारत और चीन के संबंधों में बड़ा बदलाव हुआ है. लद्दाख में जारी तनाव की वजह से भारत ने अपनी नीति बदली है. पीएम मोदी का खुले तौर पर दलाई लामा को बधाई देना चीन को कड़ा संदेश है. दरअसल, दलाई लामा को भारत में मिल रही शरण से चीन को आपत्ति है.