नई दिल्ली: कल 21 दिसंबर को पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध यानी Northern Hemisphere वाले देशों में इस साल का सबसे छोटा दिन रहा. यहां छोटे दिन से अर्थ है कि सूर्य की किरणें पृथ्वी के इस हिस्से पर सबसे कम समय के लिए पड़ीं. यानी 21 दिसंबर का दिन छोटा रहा और रात लंबी.


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विज्ञान की भाषा में इस Astronomical Event को Winter Solstice कहा जाता है. ये घटना हर वर्ष होती है. यानी हर वर्ष पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध पर सबसे बड़ा और सबसे छोटा दिन होता है. लेकिन आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों होता है, तो पृथ्वी से जुड़ी इस अनोखी घटना को आज हम सरल शब्दों में आपको समझाने की कोशिश करेंगे. 


सबसे पहले आप Equator यानी भूमध्य रेखा को समझिए. ये एक काल्पनिक रेखा है, जो पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध को विभाजित करती है. इस रेखा के नीचे वाला हिस्सा दक्षिणी गोलार्ध है और ऊपर वाला उत्तरी गोलार्ध है. यानी ये रेखा पृथ्वी को दो हिस्सों में बांटती है. सूर्य का चक्कर लगाते समय पृथ्वी के अलग अलग हिस्सों में उसकी किरणें पड़ती हैं. ऐसा होने पर ही किसी एक हिस्से में सूर्य उदय होता है और जब सूर्य की किरणें उस हिस्से पर नहीं पड़तीं तो वहां रात हो जाती है. यानी दिन और रात का विज्ञान यही है. अब हम यहां आपको ये बताते हैं कि इस प्रक्रिया में दिन छोटे और रातें लंबी कैसे हो जाती हैं.


असल में हमारी पृथ्वी सीधी नहीं है. मतलब इसके घूमने का जो अक्ष है, वो सीधा नहीं है. पृथ्वी 23 दशमलव 5 डिग्री के कोण पर झुकी हुई है. इस कोण पर जब सूर्य, पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में मौजूद होकर मकर रेखा में होता है, तो पृथ्वी के इस हिस्से पर सूरज की किरणें ज़्यादा देर के लिए नहीं पड़तीं. इससे यहां दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं. इस Astronomical Event को ही Winter Solstice कहा जाता है. हर वर्ष 20 से 23 दिसम्बर के बीच ये घटना देखी जाती है. पिछले वर्ष 22 दिसम्बर को उत्तरी गोलार्ध वाले देशों में साल का सबसे छोटा दिन रहा था. भारत इसी हिस्से में आता है. हालांकि इस घटना का हमारे देश पर ज़्यादा असर नहीं होता. हमारे यहां दिन में केवल एक से दो मिनट का अंतर होता है. लेकिन जो देश North Pole के क़रीब हैं, वहां इसका सबसे ज़्यादा असर दिखता है.


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जैसे आज रूस के Saint Petersburg में सुबह 10 बजे सूरज दिखाई दिया और 3 बज कर 53 मिनट पर सूर्य अस्त हो गया. यानी वहां दिन 6 घंटे से भी छोटा रहा. इसी तरह अमेरिका के Alaska राज्य में चार घंटे से भी छोटा दिन रहा. भारत की बात करें तो दिल्ली में कल 21 दिसंबर को सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर सूर्य उदय हुआ और शाम 5 बजकर 29 मिनट पर सूर्य अस्त हो गया.



हालांकि ऐसा नहीं है कि पृथ्वी पर सभी देशों में ये स्थिति एक जैसी होती है. उत्तरी गोलार्ध वाले देशों में जहां आज साल का सबसे छोटा दिन है तो दक्षिणी गोलार्थ वाले देशों में आज साल का सबसे बड़ा दिन है. इन देशों में ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और साउथ अफ़्रीका जैसे देश शामिल हैं. इसका मतलब ये है कि सूर्य का चक्कर लगाते हुए पृथ्वी के जिस हिस्से पर सूरज की किरणें कम पड़ती हैं, वहां सर्दियों का मौसम शुरू हो जाता है और जहां सूर्य की किरणें ज़्यादा पड़ती हैं, वहां गर्मियां शुरू हो जाती हैं. ये प्रक्रिया इसी तरह चलती रहती है.


हमें उम्मीद है कि आप छोटे दिन और लम्बी रातों का विज्ञान समझ गए होंगे. इसलिए अब हम आपको कल 21 दिसंबर के दूसरे सबसे बड़े Astronomical Event के बारे में बताना चाहते हैं.


सौर मंडल के दो बड़े ग्रह बृहस्पति और शनि यानी Jupiter और Saturn एक दूसरे के बेहद नज़दीक आ गए. इसे विज्ञान की भाषा में The Great Conjuction कहा जाता है. ये संयोग तब बनता है, जब दो ग्रह एक दूसरे के बेहद क़रीब आ जाते हैं और कुछ ऐसा ही अभी अंतरिक्ष में घट रहा है.


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397 वर्षों बाद बृहस्पति और शनि का मिलन देखा जा सकता था. ये दोनों ग्रह इस समय एक दूसरे से 0.1 डिग्री के अंतर पर मौजूद थे. अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी NASA के मुताबिक़ इन दोनों ग्रहों का ऐसा मिलन इससे पहले वर्ष 1623 में देखा गया था. यानी ये अंतरिक्ष की एक दुर्लभ और अद्भुत घटना है.


26 अक्टूबर को ये दोनों ग्रह एक दूसरे से काफ़ी दूर थे. लेकिन बाद में ये अंतर कम होता चला गया और इस समय ये दोनों ग्रह एक ही रूप में नज़र आ रहे हैं. आप चाहें तो इसे बृहस्पति और शनि ग्रह का दुर्लभ मिलन भी कह सकते हैं.


Jupiter को सूर्य का एक चक्कर लगाने में लगभग 12 वर्षों का समय लगता है. Saturn यानी शनि ग्रह 29 दशमलव 4 वर्षों में इसका एक चक्कर पूरा करता है. लेकिन जब ये दोनों ग्रह सूर्य का चक्कर लगा रहे होते हैं तो हर 20 वर्ष में दोनों एक दूसरे के बेहद क़रीब होते हैं. वर्ष 2000 में भी ऐसा हुआ था. लेकिन तब ये संयोग दिन के समय बना था, इसलिए इसे देखा नहीं जा सका था. लेकिन अब इसे देखा जा सकता है.


ये संयोग दुर्लभ इसलिए भी रहा क्योंकि इसके बाद अब वर्ष 2080 में ही Jupiter और Saturn इतने क़रीब आएंगे और इन्हें देखा जा सकेगा.