DNA ANALYSIS: वो देश जहां लोकतंत्र नहीं, कट्टर इस्लाम की जड़ें ज्यादा मजबूत हैं
दुनिया में इस समय चार बड़े धर्म (Religions) हैं. ईसाई धर्म, इस्लाम, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म. दुनिया की कुल आबादी में ईसाई धर्म को मानने वालों की संख्या 31 प्रतिशत है. इस्लाम को मानने वालों की संख्या 25 प्रतिशत और हिंदू धर्म को मानने वालों की संख्या करीब 15 प्रतिशत है. बौद्ध धर्म को मानने वाले करीब 7 प्रतिशत हैं.
नई दिल्ली: यूरोप के देश ऑस्ट्रिया (Austria) की राजधानी विएना (Vienna) में एक बड़ा आतंकवादी हमला हुआ है. ऑस्ट्रिया की सरकार ने भी इसे एक इस्लामिक आतंकवादी हमला (Islamic Terror Attack) माना है. विएना की जिन 6 जगहों पर इस हमले को अंजाम दिया गया उनमें एक यहूदी प्रार्थना स्थल भी शामिल हैं और इसलिए इसे कुछ लोग कट्टर इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा यहूदियों के खिलाफ किया गया हमला भी बता रहे हैं.
विएना में कट्टरपंथी हमले की खबर के साथ आज हम विश्व की धार्मिक जनसंख्या का विश्लेषण करेंगे.
दुनिया में इस समय चार बड़े धर्म
दुनिया में इस समय चार बड़े धर्म हैं. ईसाई धर्म, इस्लाम, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म. दुनिया की कुल आबादी में ईसाई धर्म को मानने वालों की संख्या 31 प्रतिशत है. इस्लाम को मानने वालों की संख्या 25 प्रतिशत और हिंदू धर्म को मानने वालों की संख्या करीब 15 प्रतिशत है. बौद्ध धर्म को मानने वाले करीब 7 प्रतिशत हैं. 7 प्रतिशत लोग अन्य धर्मों को मानने वाले हैं जबकि 15 प्रतिशत ऐसे हैं जो किसी धर्म में विश्वास नहीं रखते.
ऐसा कोई मुस्लिम देश नहीं, जो पूरी तरह से लोकतांत्रिक है
दुनिया में इस समय करीब 57 देश हैं जहां इस्लाम को मानने वाले बहुसंख्यक हैं. इन देशों में करीब 200 करोड़ मुसलमान रहते हैं. इनमें से बहुत कम देश ऐसे हैं जहां लोकतंत्र है. लेकिन इन देशों में ये लोकतंत्र भी कई रूपों में बहुत कमजोर है. फिलहाल दुनिया में ऐसा कोई मुस्लिम देश नहीं है जो पूरी तरह से लोकतांत्रिक है. मलेशिया और इंडोनेशिया लोकतांत्रिक देश जरूर हैं. लेकिन वहां भी कट्टर इस्लाम की जड़ें काफी मजबूत हो चुकी हैं और यहां लोकतंत्र ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा.
इस्लामिक राज और लोकतंत्र का मिश्रण
पाकिस्तान, तुर्की, बांग्लादेश और नाइजीरिया जैसे देशों में जो लोकतंत्र है उसे आप इस्लामिक राज और लोकतंत्र का मिश्रण कह सकते हैं. इसे Hybrid Democracy भी कहते हैं. जबकि ईरान में एक तरह से तानाशाही है. ईराक और लीबिया जैसे इस्लामिक देशों में कठपुतली सरकार है. कई देशों में इस्लाम की कट्टर विचारधारा को माना जाता है. उदाहरण के लिए सऊदी अरब में आज भी अदालतें शरिया कानून के हिसाब से फैसले सुनाती हैं. सऊदी अरब में तो सिर कलम करके सज़ा दिए जाने का भी प्रावधान है.
यूरोप में मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ी
यूरोप की बात की जाए तो आबादी के हिसाब से सबसे ज्यादा मुसलमान फ्रांस में रहते हैं जहां मुस्लिमों की आबादी 9 प्रतिशत है. 8 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के साथ ऑस्ट्रिया दूसरे नंबर पर है और 6 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के साथ ब्रिटेन तीसरे नंबर पर है. लेकिन यूरोप में मुसलमानों की आबादी तेजी से पिछले कुछ वर्षों के दौरान ही बढ़ी है. इसके पीछे दो कारण है. पहला है मुसलमानों के बीच ज्यादा जन्म दर और दूसरा है पलायन.
2010 से 2016 के बीच यूरोप की मुस्लिम आबादी में करीब 29 लाख का इजाफा हुआ है. ये जन्म से होने वाली वृद्धि है. आंकड़ों के मुताबिक यूरोप में मुसलमानों की जन्म दर उनकी मृत्यु दर से ज्यादा है. इसी अवधि के दौरान यूरोप में गैर मुसलमानों की जनसंख्या 16 लाख कम हो गई.
2010 से 16 के बीच पलायन करके यूरोप आने वाले मुसलमानों की संख्या 34 लाख से ज्यादा थी जबकि इस दौरान सिर्फ 12 लाख गैर मुसलमानों ने अपने देशों से यूरोप के देशों में पलायन किया. इस दौरान धर्मांतरण करने वाले गैर मुसलमानों और मुसलमानों की संख्या लगभग 1 लाख 60 हजार थी.
मुसलमानों को कट्टरपंथी तीन तरीकों से बनाया जाता है
यूरोप के इन देशों में मुसलमानों को कट्टरपंथी तीन तरीकों से बनाया जाता है. पहले तरीके के तहत विश्वविद्यालयों में कट्टरपंथी विचारधारा को मानने वाले लोगों को समूह बनाए जाते हैं और फिर ये लोग छात्रों के बीच अपनी विचारधारा को फैलाते हैं.
दूसरे तरीके के तहत छात्रों को स्कॉलरशिप का लालच दिया जाता है. इस्लामिक कट्टरपंथी इन छात्रों की पढ़ाई का खर्चा उठाने का वादा करते हैं और फिर इन्हें स्थानीय मदरसों और समुदायों में इस्लाम पढ़ाने के लिए भेजा जाता है और धीरे-धीरे यही शिक्षा कट्टरपंथ की ट्रेनिंग में बदल जाती है.
तीसरे तरीके के तहत NGOs की मदद ली जाती है. इन NGos को जो फंडिंग मिलती है. उसका इस्तेमाल दूसरों धर्मों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए किया जाता है.
आतंकवाद को रोकने की कोशिश
ऐसा नहीं है कि यूरोप के देश आतंकवाद को रोकने की कोशिश नहीं कर रहे. लेकिन इसे रोकने की कोशिशें अक्सर असफल रहती हैं. एक रिसर्च के मुताबिक वर्ष 2001 में यूरोप में आतंकवाद की चार घटनाओं को अंजाम देने की कोशिश हुई थी. लेकिन इसमें से आतंकवादियों को एक में ही सफलता मिली. साल 2015 में 4 आतंकवादी घटनाएं हुईं जबकि 16 कोशिशों को विफल कर दिया गया.
2016 में आतंकवाद की 10 घटनाएं हुई जबकि 20 कोशिशों को नाकाम किया गया. 2017 में करीब 15 आतंकवादी हमले हुए और 19 कोशिशों को असफल किया गया. 2018 में 6 आतंकवदी हमले हुए और 12 को समय रहते रोक लिया गया.
पोलैंड ने एक भी इस्लामिक शरणार्थी को अपने देश में जगह नहीं दी
शरणार्थियों के लिए दरवाजे खोलने का नतीजा क्या होता है ये आज ऑस्ट्रिया के लोगों ने देखा. लेकिन यूरोप के ही एक और देश पोलैंड ने कट्टरपंथियों को रोकने के लिए जो किया वो आज पूरी दुनिया के लिए सबक है.
ऑस्ट्रिया की आबादी 90 लाख है जबकि पोलैंड की आबादी 3 करोड़ 70 लाख है लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि ऑस्ट्रिया की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी करीब 8 प्रतिशत है जबकि पोलैंड में मुसलमानों की आबादी सिर्फ 0.1 प्रतिशत है. ऐसा नहीं है कि यूरोप के बाकी देशों ने पोलेंड पर शरणार्थियों को शरण देने का दबाव नहीं बनाया था. लेकिन जहां एक तरफ ऑस्ट्रिया ने दिल खोलकर मध्य एशिया से आए शरणार्थियों का स्वागत किया, उन्हें अपने नागरिकों को मिलने वाले ज्यादातर अधिकार दिए. वहीं पोलैंड ने एक भी इस्लामिक शरणार्थी को अपने देश में जगह नहीं दी.
इसका नतीजा ये हुआ कि पोलैंड में हाल के वर्षों में आतंकवाद की कोई घटना नहीं हुई है. कुछ समय पहले जब पोलैंड के एक सांसद से एक न्यूज़ चैनल पर डिबेट के दौरान ये सवाल पूछा गया कि क्या उनकी पार्टी इस्लामिक देशों से आने वाले शरणार्थियों के साथ भेदभाव नहीं कर रही है तो वहां के इस सांसद ने साफ किया कि उनके देश ने यूक्रेन से आए 20 लाख शरणार्थियों को अपने यहां जगह दी है. लेकिन हम अपने यहां एक भी कट्टरपंथी मुसलमान को शरण नहीं देंगे क्योंकि, लोगों ने उनकी सरकार को इसी वजह से चुना था, चाहे दुनिया उन्हें रंगभेदी कहे, चाहे राष्ट्रवादी कहे लेकिन हम अपने देश के लोगों से किया गया वादा नहीं भुला सकते.
जेहाद जैसी विचारधारा को समर्थन
कुछ इस्लामिक देश ऐसे हैं जो जेहाद जैसी विचारधारा को समर्थन देते हैं और इसे बढ़ावा भी देते हैं. हैरानी की बात ये है कि इनमें से कई देशों में जेहाद के नाम पर मुसलमान ही मुसलमानों को मार रहे हैं. उदाहरण के लिए इराक सीरिया और ईरान जैसे देशों में मुसलमान ही मुसलमानों से लड़ रहे हैं. इतना ही नहीं पूरी दुनिया में इस्लाम का इस समय किसी न किसी धर्म या जाति के साथ युद्ध चल रहा है.
कट्टरपंथी मुसलमान पहला निशाना उन मुसलमानों को बना रहे हैं जो इस्लाम में सुधार के पक्षधर हैं.
-शिया और सुन्नी के बीच लड़ाई चल रही है.
-वहाबी और सलाफी मुसलमानों के बीच युद्ध हो रहे हैं.
-ईसाई धर्म और इस्लाम के बीच युद्ध चल रहा है.
-म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों में मुसलमान वहां बौद्ध धर्म को मानने वालों से लड़ रहे हैं.
-बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों में हिंदुओं का विरोध किया जा रहा है और फिलीस्तीन में मुसलमानों की जंग यहूदियों से हो रही है.
मुसलमान ही मुसलमानों का खून बहा रहे
दुनिया में कई जगहों पर मुसलमान ही मुसलमानों का खून बहा रहे हैं और ये सब जेहाद के नाम पर किया जा रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मुसलमानों की दूसरे धर्मों के साथ ये लड़ाईयां ऐसे ही चलती रहीं तो जल्द ही दुनिया की व्यवस्था में एक बड़ा परिवर्तन दिखाई दे सकता है. यानी एक न्यू वर्ल्ड की शुरुआत हो सकती है. क्योंकि अब ये लड़ाई दो मोर्चों पर लड़ी जा रही है. एक तरफ मुसलामन और गैर मुस्लिम हैं, दूसरी तरफ सुधारवादी मुस्लिम और कट्टरपंथी मुस्लिम आपस में लड़ रहे हैं. कुछ इस्लामिक देश ऐसे हैं जो जेहाद जैसी विचारधारा को समर्थन देते हैं और इसे बढ़ावा भी देते हैं. लेकिन मुस्लिम देशों में सुधारवादी मुसलमानों की राह आसान नहीं है क्योंकि, ज्यादातर इस्लामिक देशों में कट्टरपंथ का विरोध करने वालों को या तो मौत की सजा दे दी जाती, जीवन भर के लिए जेल में डाल दिया जाता है या फिर उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ता है.
कट्टरपंथी चाहें तो हिंदू धर्म से सीख ले सकते हैं
कट्टरपंथी चाहें तो हिंदू धर्म से सीख ले सकते हैं. इनमें बाल विवाह, सती प्रथा, दहेज प्रथा, जैसी गलत प्रथाएं शामिल थीं, एक समय पर तो भारत में हिंदू विधवाओं को दोबारा विवाह की इजाजत तक नहीं थी. जिन लोगों ने इन प्रथाओं का विरोध किया और इनका अंत किया उन्हें हमारे यहां धर्म विरोधी नहीं बल्कि समाज सुधारक कहा गया.
ये फर्क आज दुनिया के सभी लोगों को समझना चाहिए क्योंकि जब किसी धर्म की कुरीतियों को मिटाया जाता है तो वो धर्म भ्रष्ट नहीं होता बल्कि वो ज्यादा परिपक्व और ज्यादा सौहार्दपूर्ण हो जाता है.