पहले जब कोई आपसे पूछता था कि क्या हाल है या आप कैसे हैं? तो आपका जवाब होता था कि मैं अच्छा हूं. आप कैसे हैं? लेकिन अब संवाद का ये ढांचा भी बदल गया है. आज आपसे कोई पूछता है कि आप कैसे हैं? तो आप यही कहते हैं कि अब तक तो ठीक हूं. आगे का कुछ कह नहीं सकता. यानी आज लोगों के मन में अनिश्चितता का माहौल है.


महामारी ने तोड़ा आत्मविश्वास


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सोचिए जिस देश के लोग भविष्य को लेकर तमाम योजनाएं बनाने में विश्वास रखते हैं, जहां शादी की तैयारियां कई साल पहले से शुरू हो जाती हैं, बेटियों के विवाह के लिए माता पिता उनके बचपन से ही पैसा बचाना शुरू कर देते हैं. जिस देश में बड़े बुज़ुर्ग ये कहते हैं कि भविष्य की चिंता करो वर्ना तुम्हारा कुछ नहीं होगा. उसी देश के लोग आज अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं. इस महामारी से उनका आत्मविश्वास पूरी तरह हिल गया है.


हालांकि ये लोग आज भगवान श्री राम से बहुत कुछ सीख सकते हैं. बुधवार को देश में राम नवमी का त्योहार मनाया गया. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राजा दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र भगवान राम का जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था. यानी इसी दिन श्री राम का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है. भगवान राम के जन्म और आज की परिस्थितियों को आप इस चित्र से समझ सकते हैं.


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भगवान श्रीराम के जीवन से लें संदेश


पिछले साल जब कोरोना वायरस की पहली लहर आई थी तो पूरी दुनिया में ही इस महामारी की कोई वैक्सीन नहीं थी. लेकिन अब जब दूसरी लहर आई है तो इसकी एक नहीं बल्कि दो-दो वैक्सीन हमारे ही देश में बन रही हैं. विदेशी वैक्सीन भी जल्द भारत में लगनी शुरू हो जाएंगी. जब हम बिना वैक्सीन के पहली लहर का सामना कर सकते हैं तो दूसरी लहर कैसे हम पर हावी हो सकती है और ये संदेश आप भगवान श्री राम के जीवन से भी ले सकते हैं.


विपरीत परिस्थितियों में न हों विचलित


श्री राम ने अपने जीवन में 14 साल का वनवास काटा था. लेकिन क्या आपको पता है कि जब उनके पिता राजा दशरथ ने उन्हें 14 वर्षों के लिए वनवास पर भेजा था तो श्री राम उनके फैसले से एक पल के लिए भी विचलित नहीं हुए थे. ये त्याग उन्होंने मर्यादा और कर्त्वय के लिए किया था. पिता के फैसले को मानना उनका कर्तव्य था. उनके खिलाफ न जाना उनकी मर्यादा थी और आज इसी त्याग की जरूरत आपको भी है.


आज आवश्यकता है कि आप बेवजह घर से बाहर ना निकलें. जन्मदिन और दूसरे मौकों पर होने वाले कार्यकर्मों और पार्टियों का कुछ दिनों के लिए त्याग कर दें. अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मुलाकात को भी त्याग दें. सबसे अहम मास्क नहीं लगाने की आदत को भी आपको त्यागना होगा और आप ये श्री राम से सीख सकते हैं. जो 14 वर्षों तक आइसोलेशन में रहे.


इसलिए श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया


सोचिए श्री राम अगर अपने पिता राजा दशरथ के फैसले के खिलाफ विद्रोह कर देते और वनवास पर जाने से मना कर देते तो क्या होता. तब शायद युद्ध रावण के खिलाफ नहीं बल्कि अयोध्या में ही हो गया होता. लेकिन भगवान राम ने ऐसा नहीं किया. क्योंकि वो अपनी मर्यादाओं को भी जानते थे और इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया.


लेकिन हमारे देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जो ना तो त्याग करना चाहते हैं, ना अपना कर्तव्य निभाना चाहते हैं और ना ही मर्यादाओं का पालन करना चाहते हैं.


लोगों को क्यों आता है गुस्सा? 


आज कल हमारे देश में लोगों को बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है. आपको याद होगा रविवार को दिल्ली में एक बदतमीज पति-पत्नी ने मास्क के लिए टोकने पर पुलिस से बदसलूकी की थी. इसी तरह भोपाल और दूसरे शहरों में डॉक्टरों के साथ भी दुर्व्यवहार हुआ था. ये सब घटनाएं इसलिए हुईं क्योंकि ये लोग अपनी मर्यादाओं को भूल चुके थे. लेकिन आप मर्यादा के महत्व को भगवान राम से सीख सकते हैं.


श्रीराम के जीवन से लें सीख


रामायण में एक प्रसंग है कि जब रावण सीता को उठा कर लंका ले गया था तब लंका जाने के लिए भगवान राम के रास्ते में समुद्र सबसे बड़ी बाधा था. वो चाहते तो पल भर में समुद्र को सुखा देते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और धैर्य और संयम के साथ समुद्र से रास्ता देने की विनती की. यहां उन्होंने मर्यादा दिखाई. क्योंकि अगर वो समुद्र सुखा देते तो करोड़ों समुद्री जीव जंतुओं की मौत हो जाती.


मर्यादाओं का पालन जरूरी


आज वैसे ही आपको भी मर्यादाओं का पालन करना है. आपको याद रखना है कि अगर आप अपनी मर्यादाओं के बाहर जाकर मास्क हटाते हैं या दो गज की दूरी का पालन नहीं करते तो इससे आपको और दूसरों की जान को खतरा हो सकता है. आज हमारे देश को अपने सभी लोगों से मर्यादित व्यवहार और स्वभाव की जरूरत है.


श्री राम से आप विनम्र रहना भी सीख सकते हैं. क्योंकि उन्होंने कभी भी अपने ऊपर अहंकार नहीं किया. उन्होंने निषाद-राज जैसे गरीब मित्र को गले से लगाया तो शबरी के जूठे बेर भी खाए और बंदरों और भालुओं की सेना को भी सम्मान दिया. जिसे वंचितों की सेना कहा जाता था. समुद्र से रास्ता मांगने के दौरान भी भगवान राम ने अपनी विनम्रता का परिचय दिया था.


भगवान राम सबको बराबर मानते थे. लेकिन आज हमारे देश में वीआईपी नेता और ऐसे लोग जिनके पास काफी धन दौलत है. वो अपना रसूख दिखाकर अस्पतालों में ऑक्सिजन और Beds हासिल कर रहे हैं. जबकि हमारा मानना है कि अस्पताल, उनके Beds, ऑस्किजन और दवाइयों इन सब पर देश के लोगों का बराबर अधिकार होना चाहिए.


कोरोना से लड़ने के लिए देश को शक्ति की जरूरत


इस समय कोरोना वायरस से लड़ने के लिए पूरे देश को शक्ति की भी जरूरत है और भगवान श्री राम को अपने जीवन में उतार कर आप ऐसा कर सकते हैं. वैसे तो रामनवमी के साथ ही आज चैत्र नवरात्र समाप्त हो गए हैं. लेकिन इन नवरात्रों से जुड़ी एक मान्यता आज हम आपको बताना चाहते हैं.



नवरात्रों से जुड़ी मान्यता


मान्यता है कि नवरात्रों में महाशक्ति की पूजा कर श्री राम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई थी. तब उनका आत्मविश्वास रावण के सामने डिगने लगा था और उनकी सेना में भय का माहौल था. तब अपने आत्मविश्वास को नई ऊर्जा देने के लिए भगवान राम ने शक्ति पूजा का सहारा लिया था. यानी भगवान राम का जीवन आसान नहीं था. उनके सामने भी चुनौतियां थीं और समय ने उनकी भी कई बार परीक्षा ली. लेकिन भगवान राम हर परीक्षा में पास हुए. क्योंकि उन्होंने इन परीक्षाओं के लिए खुद को तैयार किया. तो ये वो बातें हैं जो आप भगवान राम से सीख सकते हैं.


नवरात्रि का त्योहार 9 दिन ही क्यों मनाया जाता है?


नवरात्रि मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है. यह कथा उस समय की है जब धरती महिषासुर जैसे असुरों के अत्याचारों से त्रस्त थी और चारों तरफ त्राहिमाम मचा हुआ था. इस स्थिति में सभी देवताओं ने मिलकर देवी दुर्गा का आह्नान किया और देवी दुर्गा विकराल रौद्र रूप लेकर प्रकट हुईं. इन दैत्यों से नौ दिन और नौ रातों तक भीषण युद्ध किया. अन्त में, 10वें दिन सूर्योदय के साथ सारी बुरी शक्तियां हार गईं और तभी से इन नौ दिनों में शक्ति की अराधना की जाती है. आज की परिस्थितियों में देखें तो कोरोना उन्हीं असुरों की तरह है, जिससे चारों तरफ त्राहिमाम मचा हुआ है और आपको इसे मिल कर हराना है.