नई दिल्ली: राम भक्त हनुमान (Lord Hanuman) को संकट मोचक भी कहा जाता है और कोरोना वायरस (Coronavirus) के इस दौर में हम सब एक ऐसा संकट मोचक ढूंढ रहे हैं जो हमें इस महामारी से बचा सके. भगवान हनुमान का जीवन मंत्र इस मुश्किल दौर में एक संजीवनी बूटी साबित हो सकता है. इसलिए अब हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि हम सब हनुमान के जीवन से क्या सीख सकते हैं.


कोरोना को हराने के लिए सीखें हनुमान जी के ये गुण


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इनमें पहली है सही जानकारी की वैक्सीन. रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब रावण से युद्ध के दौरान लक्ष्मण के प्राण निकलने वाले थे, तब हनुमान ने उनके लिए संजीवनी बूटी ढूंढी थी. हनुमान जी को ये नहीं पता था कि संजीवनी बूटी जिस पर्वत पर है, वो पर्वत किस दिशा में है. तब सुषेण वैद्य ने उन्हें सही दिशा की जानकारी दी थी और इस सही जानकारी की वजह से हनुमान द्रोणागिरी पर्वत तक पहुंच पाए, जहां संजीवनी बूटी थी.


यानी सही जानकारी का महत्व बहुत बड़ा है. अगर जानकारी गलत हो तो आप कभी भी उस लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकते, जिसका आपने निश्चय किया है. तो पहली बात यही है कि आपको सही जानकारी होनी चाहिए.


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इच्छाशक्ति की वैक्सीन


दूसरी है इच्छाशक्ति की वैक्सीन. राम भक्त हनुमान ने अपनी इच्छाशक्ति के दम पर कई असाधारण काम किए. उदाहरण के लिए उन्होंने अकेले विशाल समुद्र को लांघा, वो सूर्य को भी निगल गए और ज़रूरत पड़ने पर अकेले ही पूरी लंका में आग लगा दी. लंका दहन उस युग की बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक थी, जिसने रावण को हनुमान की ताकत का एहसास करा दिया था.


इसलिए आपको भी जीवन में असाधारण कामों के लिए खुद को तैयार रखना चाहिए. आज आप हनुमान जी से इच्छाशक्ति की वैक्सीन प्राप्त करके कोरोना वायरस की लंका का दहन कर सकते हैं और इस महामारी पर ये सबसे बड़ी स्ट्राइक होगी.


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बुद्धि के सकारात्मक प्रयोग की वैक्सीन


तीसरी वैक्सीन है बल के साथ बुद्धि के सकारात्मक प्रयोग की. उदाहरण के लिए जब हनुमान लंका जा रहे थे, तब देवताओं के कहने पर समुद्र में रहने वाली नागमाता 'सुरसा' ने उनका रास्ता रोक लिया था और हनुमान जी के धैर्य और बुद्धि की परीक्षा ली थी. जब हनुमान ने उनसे रास्ता देने की विनती की तो सुरसा ने अपना मुंह फैलाकर हनुमान को निगलने की कोशिश की, लेकिन हनुमान भी अपना आकार बढ़ाते चले गए.


अंत में सुरसा ने अपना मुंह सैकड़ों किलोमीटर तक फैला दिया. उस समय हनुमान चाहते तो सुरसा को पराजित करके ही दम लेते. लेकिन उन्होंने अपना आकार तुरंत छोटा कर लिया और वो कई किलोमीटर तक फैले सुरसा के मुंह में प्रवेश करके बाहर भी आ गए.


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यानी उन्होंने बल के साथ बुद्धि का भी प्रयोग किया. और आज लोगों को भी इसी की जरूरत है. आज शक्ति ये दिखाने में नहीं है कि आप कितने क्षमतावान हैं, आपके पास कितनी धन दौलत है और आपके Six Pack Abs हैं या नहीं. आज बुद्धिमानी इसमें है कि आप मास्क लगा कर इस संक्रमण को रोकने की कोशिश करें और इसकी चेन को तोड़ें.


आज कल लोग अपने कर्तव्य को लेकर निष्ठा नहीं दिखाते, इसलिए ऐसे लोग आज भगवान हनुमान के जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं. वो अपनी जिम्मेदारियों को बोझ नहीं समझते थे. चाहे निर्भीक होकर लंका में सीता तक भगवान राम का संदेश पहुंचाना हो या फिर संजीवनी बूटी ढूंढते हुए पूरा पर्वत उठा लाना हो. हनुमानजी ने ये सारे काम अकेले ही किए.


हमारे देश में अक्सर लोग एक दूसरे को देखकर व्यवहार करते हैं. कोई व्यक्ति मास्क नहीं लगाता तो उसे देख कर दूसरे लोग भी अपना मास्क हटा लेते हैं, कोई गन्दगी करता है तो वो भी ऐसा करने लगते हैं और कहते हैं कि जब वो कर सकता है तो मैं क्यों नहीं. लेकिन हमें लगता है कि इन लोगों को आज हनुमान जी से प्रेरणा लेनी चाहिए ताकि ये लोग अपने कर्तव्य को समझ सकें.


धैर्य की वैक्सीन


और आख़िरी वैक्सीन है धैर्य की. भगवान हनुमान ने जब पूरा समुद्र लांघा तो ये उनका बल था, लेकिन समुद्र को पार करते हुए उनके सामने कई चुनौतियां आईं. लेकिन उन्होंने धैर्य रखा और सकारात्मक सोच रखी. वो विनती करते हुए समुद्र को लांघ कर लंका तक पहुंच गए और धैर्य की परीक्षा में भी पास हुए. और आज लोगों को भी धैर्य की सख़्त ज़रूरत है. आज अगर आपने धैर्य दिखाया और सरकारी आदेशों का पालन किया तो आप इस महामारी को हरा सकते हैं.


रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब भगवान राम सीता की खोज करते हुए कर्नाटक के जंगलों में पहुंचे तो वहां उनकी भेंट पहली बार हनुमान और सुग्रीव से हुई. तब इस क्षेत्र को किष्‍किंधा कहा जाता था. हनुमान के बल, बुद्धि और भक्ति ने श्री राम को मोहित किया और यहीं उन्होंने हनुमान और सुग्रीव के साथ मिल कर वानर सेना बनाई. और फिर इसी सेना के साथ वो रावण के ख़िलाफ़ युद्ध में उतरे.


लेकिन क्या आपको पता है कि त्रेतायुग में श्री राम द्वारा बनाई गई इस सेना का बजट यानी ख़र्च कितना था. इस सेना का ख़र्च था त्याग, इच्छाशक्ति और सीता को रावण से छुड़ाने की प्रतिज्ञा. यानी भगवान राम की ये सेना निस्वार्थ उनके साथ जुड़ी थी. लेकिन ये त्रेतायुग नहीं है, ये कलियुग है. और आज के ज़माने में कौन सा देश अपनी सेना पर कितना ख़र्च करता है, इसी से उसकी ताक़त का आकलन किया जाता है.