DNA Analysis: गलवान घाटी को लेकर आखिर क्या है शी जिनपिंग की मंशा?
गलवान वैली में भारतीय सेना के 20 जवानों की शहादत के बाद भारत और चीन के रिश्ते सबसे खराब दौर में पहुंच गए हैं.
नई दिल्ली: कुछ दिनों पहले चीन ने गलवान वैली से पीछे हटने का वादा किया था लेकिन चीन ने ना सिर्फ अपना ये वादा तोड़ा बल्कि 1962 के युद्ध के बाद भारत के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात भी किया है और चीन अब भी भारत को धोखा देने की फिराक में है. ये बात सेटेलाइट से ली गई एक ताजा तस्वीर से साफ होती है. ये तस्वीर गलवान वैली में भारत और चीन के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद ली गई है और इसमें चीन की सेना की करीब 200 गाड़ियों को LAC के पास देखा जा सकता है. यही वो जगह है जहां 15 जून की रात भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी झड़प हुई थी.
हैरानी की बात ये है कि इस झड़प के बाद चीन और भारत की सेना ने पीछे हटने पर सहमति जताई थी और दोनों देशों ने इस इलाके में तनाव को कम करने की बात कही थी. लेकिन ये तस्वीरें बताती हैं कि चीन अब भी इस इलाके में डटा हुआ है और इसलिए चीन की किसी भी बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता.
जैसा कि हम आपको बता चुके हैं ये विवाद तब शुरू हुआ जब भारतीय सेना के जवान गलवान नदी पार कर उस विवादित इलाके में पहुंचे जहां चीन ने कब्जा किया हुआ था. दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटने का वादा कर चुकी थीं. इसलिए भारत की सेना के जवान ये सुनिश्चित करने पहुंचे थे कि चीनी सेना अपने वादे पर अमल कर रही है या नहीं. लेकिन इसी दौरान चीन के सैनिकों ने भारत के सैनिकों पर हमला बोल दिया. और सैनिकों के बीच पत्थर, लाठी, डंडों और लोहे की रॉड के साथ मारपीट शुरू हो गई. इस दौरान भारत के कई सैनिक गलवान नदी में गिर गए और इनमें से 20 जवानों की चोट और ठंड की वजह से मृत्यु हो गई. हालांकि चीन को भी इस दौरान काफी नुकसान हुआ और उसके कम से कम 35 से 43 सैनिक मारे जाने की खबर है.
गलवान वैली में भारतीय सेना के 20 जवानों की शहादत के बाद भारत और चीन के रिश्ते सबसे खराब दौर में पहुंच गए हैं. चीन भारत का वो पड़ोसी देश है जिसे भारत ने हाल ही के वर्षों में सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी है. 2014 से लेकर अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग करीब 18 बार आपस में मुलाकात कर चुके हैं. प्रधानमंत्री मोदी अपने अब तक के कार्यकाल में 5 बार चीन की यात्रा कर चुके हैं. नरेंद्र मोदी पिछले 70 वर्षों में इतनी बार चीन जाने वाले पहले भारत के प्रधानमंत्री हैं. इसके अलावा वो गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए भी चार बार चीन जा चुके हैं. जबकि शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति के तौर पर दो बार भारत आ चुके हैं.
ये भी पढ़ें- DNA Analysis: क्या चीन में बालाकोट जैसा एयर स्ट्राइक करने की तैयारी में है भारत?
इस दौरान भारत ने शी जिनपिंग का पूरा आदर सत्कार किया उन्हें भारत की संस्कृति के दर्शन कराए और ये एहसास दिलाया कि 21वीं सदी में भारत और चीन के पास मित्रता के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि इसी दोस्ती पर दोनों देशों का भविष्य टिका हुआ है. लेकिन जब-जब भारत ने चीन की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तब-तब चीन ने भारत को धोखा दिया. हमारे यहां तो कहा जाता है कि अगर आप एक बार किसी का नमक भी खा लें तो आप जीवन भर उसे धोखा नहीं देते. लेकिन चीन बार-बार भारत को घायल करके भारत के जख्मों पर नमक छिड़कता रहा है. चीन ऐसा क्यों कर रहा है इसे समझने के लिए आपको शी जिनपिंग की मंशा को समझना होगा.
शी जिनपिंग की मंशा चीन के बाद अब दुनिया का सुप्रीम लीडर बनने की है. इसी वजह से बार-बार वो दोस्ती का हाथ बढ़ाकर भारत को धोखा देते हैं. इसके लिए शी जिनपिंग क्रीपिंग फॉर्वर्ड पॉलिसी का सहारा ले रहे हैं. क्रीपिंग फॉर्वर्ड पॉलिसी यानी धीरे-धीरे आगे बढ़ने की नीति. इस पॉलिसी के तहत चीन एक-एक इंच करके किसी देश की जमीन पर कब्जा करता है और बॉर्डर से जुड़े पिछले समझौतों से पीछे हट जाता है. चीन एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय भू माफिया है जो इसी पॉलिसी के तहत अपना विस्तार करना चाहता है. अगर कभी कोई देश चीन की इस हरकत पर आपत्ति जताता भी है तो चीन तीन कदम आगे बढ़ाकर 2 कदम पीछे चला जाता है और इसका नतीजा ये होता है कि पीछे हटने के बाद भी एक कदम जमीन चीन के नियंत्रण में ही रहती है.
गलवान घाटी पर चीन का दावा इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि यहां ये सियाचिन ग्लेशियर बहुत दूर नहीं है और वो सक्षम घाटी भी करीब ही है. जिसे 1962 में पाकिस्तान ने चीन को सौंप दिया था. भारत सियाचिन से पाकिस्तान और चीन दोनों पर एक साथ नजर रखता है. इसके अलावा दौलत बेग ओल्डी सेक्टर भी इसी से लगा हुआ है. आपको बता दें कि दौलत बेग ओल्डी में दुनिया में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर मौजूद हवाई पट्टी है. अगस्त 2013 में भारतीय वायुसेना ने यहां अपना सबसे बड़ा C -130 J सुपर हर्क्यूलिस ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उतारा था.
इस लिहाज से गलवान घाटी चीन सीमा पर भारत के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. यानी अगर चीन पीछे नहीं हटता है तो भारत के 2 दुश्मन एक दूसरे के बहुत करीब आ जाएंगे और तब भारत के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी.
विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन के पास अभी जो जमीन है उसमें से करीब 60 प्रतिशत जमीन कभी उसकी थी ही नहीं. चीन ने मंगोलिया, तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान , और इनर मंचूरिया जैसे इलाकों पर कब्जा करके अपना इतना विस्तार किया है. 1962 के युद्ध के बाद चीन के कब्जे में भारत के कुछ इलाके भी आ गए थे और बाद में पाकिस्तान ने भी अपने कुछ इलाकों को चीन को सौंप दिया. हैरानी इस बात की है कि टुकड़े टुकड़े करके जमीन इकट्ठी करने वाला चीन आज वन चाइना पॉलिसी की बात करता है और इसी पॉलिसी के तहत वो तिब्बत से लेकर ताइवान और हॉन्गकॉन्ग पर अपना दावा ठोकता है. ये विश्लेषण हमने असम राइफल्स के पूर्व डायरेक्टर जनरल रामेशवर राय से बातचीत के आधार पर तैयार किया है.
लेकिन शी जिनपिंग के कार्यकाल में ये वन चाइना पॉलिसी एक कदम आगे बढ़ चुकी है और अब चीन सेना और पैसों के दम पर उन देशों को भी अपना हिस्सा बनाना चाहता है जो अब तक चीन के चंगुल से आजाद हैं. अपनी इसी रणनीति के तहत चीन भारत के साथ उलझने का दुस्साहस कर रहा है. चीन दुनिया को ये बताना चाहता है कि जब वो भारत जैसे विशाल देश को डरा सकता है तो छोटे-छोटे देश उसका क्या बिगाड़ लेंगे. चीन के राष्ट्रपति खुद को दुनिया का सुप्रीम लीडर बनाना चाहते हैं और इसीलिए चीन उनके नेतृत्व में भारत समेत कई देशों से उलझ रहा है. इनमें सिंगापुर, ताइवान, फिलीपींस, वितयनाम, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल हैं.
चीन को जवाब देने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि उसकी वन चाइना पॉलिसी को खारिज कर दिया जाए और जो इलाके चीन से अलग होना चाहते हैं उन्हें कूटनीतिक समर्थन देकर चीन को मुश्किल में डाल दिया जाए. और चीन को दुनिया में अलग थलग कर दिया जाए. क्योंकि अगर दुनिया के देश ऐसा नहीं करेंगे तो चीन अमेरिका की गर्दन तक भी पहुंच जाएगा और वो किसी देश को हथियारों तो किसी देश को पैसों के दम पर और अगर इससे भी बात नहीं बनी तो वायरस के दम पर झुकाने की कोशिश करेगा.
शी जिनपिंग चीन के नेता हैं लेकिन वो खुद को किसी चक्रवर्ती सम्राट से कम नहीं समझते और उन्हें लगता है कि दुनिया भर की आने वाली पीढ़ियां उन्हीं के शासन में अपना जीवन बिताएंगी.
इसलिए आज हमने शी जिनपिंग के व्यक्तित्व को डीकोड करने की कोशिश की है. शी जिनपिंग का इतिहास रइसों वाला भी और वो चीन में गरीब लोगों के बीच पोस्टर बॉय वाली छवि भी रखते हैं. बचपन से ही उन्होंने सत्ता की ताकत को बहुत करीब से देखा था, क्योंकि उनके पिता भी चीन के बड़े नेता थे और वो सरकार में ऊंचे पदों पर भी रहे. लेकिन अचानक समय बदल गया और शी जिनपिंग के पिता पार्टी में कमजोर हो गए और अकेले पड़ गए.
इसके बाद इसका खामियाजा शी जिनपिंग को भी उठाना पड़ा. जब वो स्कूल जाते थे तो उनके साथ के बच्चे उन्हें चिढ़ाया करते थे. इसके बाद चीन में एक सांस्कृतिक क्रांति हुई और नाजों से पले बड़े अमीर शी जिनपिंग को गांव में खेती करने के लिए भेज दिया गया. इस दौरान भी शी जिनपिंग को उपहास और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. उनके साथ में खेती करने वाले किसान उन्हें औसत और कमजोर कहा करते थे.
लेकिन आगे चलकर शी जिनपिंग ने किसानी के इसी अनुभव का इस्तेमाल मार्केटिंग में एक औजार के तौर पर किया और वो आज खुद को जमीन से जुड़ा हुआ नेता बताते हैं.
लेकिन शी जिनपिंग के लिए राजनैतिक यात्रा आसान नहीं थी. कम्यूनिस्ट पार्टी में शामिल होने की उनकी कई अर्जियां खारिज कर दी गईं. उन्हें सिस्टम की कड़वी सच्चाई का सामना करना पड़ा और धीरे-धीरे करके वो चीन के राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे. इसीलिए शी जिनपिंग आज अपनी सत्ता को किसी के साथ बांटना नहीं चाहते और वो खुद जीवन भर चीन का सुप्रीम लीडर बनें रहना चाहते हैं.
इसके लिए उन्होंने घरेलू मोर्चे पर बहुत सारी चीजें की हैं. उन्होंने खुद को पीपल्स लिबरेशन आर्मी का कमांडर इन चीफ बना लिया है. लेकिन मजे की बात ये है कि उन्हें सेना का कोई अनुभव नहीं हैं. वो एक जमाने में चीन के पूर्व रक्षा मंत्री के पर्सनल असिस्टेंट रहे हैं और शायद इसी वजह से उन्हें लगता है कि वो बहुत बड़े सैन्य रणनीतिकार हैं. इसीलिए जब भी किसी दूसरे देश से उनकी सेना का टकराव होता है तो वो इंचार्ज के तौर पर सारे ऑपरेशन्स पर खुद नजर रखते हैं. उन्होंने राष्ट्रपति बने रहने की सीमा को भी समाप्त कर दिया और अब वो आजीवन इस पद पर बने रह सकते हैं. इसके अलावा उन्होंने अपने सारे विरोधियों को भी किनारे कर दिया है और बहुत सारे लोगों को जेल में डाल दिया है. और आज चीन की सेना, वहां की मीडिया और वहां की Industries का सिर्फ एक ही लक्ष्य है और वो है शी जिनपिंग को खुश रखना. ये सब लोग चीन की जनता की नहीं बल्कि सिर्फ शी जिनपिंग की सेवा करते हैं.
और घर के अंदर इतना शक्तिशाली हो जाने की वजह से ही शी जिनपिंग अब पूरी दुनिया का सुप्रीम लीडर बनना चाहते हैं. इससे पहले चीन के ज्यादातर नेता दुनिया के सामने शांत बने रहते थे और कभी खुलकर उस तरह के दावे नहीं करते थे जैसे दावे शी जिनपिंग कर रहे हैं. शी जिनपिंग अपने देश के लोगों को ये यकीन दिला रहे हैं कि इतिहास में चीन से जो सम्मान छीना गया वो उसे वापस लाएंगे और इसके लिए वो चीन के लोगों के मन में एक नकारात्मक राष्ट्रवाद भर रहे हैं. वो अपने पड़ोसी देशों के साथ पुराने मुद्दों पर उलझ रहे हैं और अपनी सेना के दम पर विदेश नीति तैयार कर रहे हैं.
चीन की सेना उन्हीं के इशारे पर भारत को उकसा रही है. इसके जरिए वो ना सिर्फ छोटे देशों पर दबाव डालना चाहते हैं बल्कि उन कंपनियों को भी चेताना चाहते हैं जो कोरोना वायरस के बाद चीन छोड़कर भारत आना चाहती हैं. यानी शी जिनपिंग गलवान के रास्ते खुद को पूरी दुनिया में एक बलवान नेता के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं लेकिन भारत उनकी इस मंशा को सफल नहीं होने देगा.
अब सवाल ये है कि अगर शी जिनपिंग ने दुनिया का सुप्रीम लीडर बनने का फैसला कर ही लिया है तो भारत उन्हें कैसे रोक सकता है.
इसके चार विकल्प हैं. पहला ये कि भारत चीन के साथ एक छोटा लेकिन निर्णायक युद्ध लड़े. ठीक वैसे ही जैसे भारत ने करगिल का युद्ध लड़ा था और पाकिस्तान की सेना को पीछे धकेल दिया था. दूसरा विकल्प ये है कि भारत भी LAC पर किसी इलाके में चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दे. जैसे चीन के सैनिक गलवान घाटी तक घुस आए. वैसे ही भारत भी किसी ऐसे इलाके पर कब्जा कर सकता है जिस पर चीन अपना दावा करता है. इससे चीन को बिना किसी शर्त के बातचीत की टेबल पर आने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
तीसरा विकल्प ये है कि भारत चीन के खिलाफ एक अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन की शुरुआत करे. इसमें दुनिया के तमाम शक्तिशाली और प्रभावशाली देशों को शामिल किया जाए और चीन को पूरी दुनिया में अलग थलग करके उसे झुकने पर मजबूर किया जाए. ऐसा हो जाने के बाद अगर चीन भारत के साथ युद्ध की शुरुआत करता भी है तो उस पर कूटनीतिक दबाव भी होगा और भारत को अमेरिका जैसे देशों से युद्ध के दौरान जरूरी मदद भी मिल पाएगी.
चौथा और सबसे महत्वपूर्ण विकल्प ये है कि जब तक चीन LAC का मुद्दा पूरी तरह सुलझाने पर राजी न हो उसके साथ किसी दूसरे मुद्दे पर भी कोई बातचीत ना की जाए. यानी चीन को आधिकारिक तौर पर LAC को अंतरराष्ट्रीय सीमा के तौर पर मानने पर मजबूर किया जाए.
दरअसल, भारत और चीन के बीच करीब 3500 किलोमीटर लंबा बॉर्डर है और चीन जानबूझकर इस बॉर्डर को विवादित बनाकर रखना चाहता है. जब तक भारत चीन के साथ LAC पर मजबूती से बात नहीं करेगा तब तक चीन इस सीमा के पास अलग-अलग इलाकों पर अपना दावा करता रहेगा और धीरे-धीरे आगे बढ़ने की रणनीति पर काम करता रहेगा.
जिस तरह से भारत पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए ये शर्त रखता है कि कश्मीर पर कोई बात नहीं होगी क्योंकि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है उसी तरह भारत को चीन के सामने ये शर्त रखनी होगी कि जब तक चीन LAC विवाद का हल नहीं करता. तब तक चीन से किसी भी तरह की बातचीत नहीं होगी.
LAC चीन की दुखती रग है और अगर भारत LAC को सेटल करने के लिए चीन पर दबाव डालता है तो चीन के लिए ये सबसे बड़ा कूटनीतिक और रणनीतिक द्वंद होगा और इसी का फायदा उठाकर भारत चीन का असली चेहरा दुनिया के सामने ला सकता है.