DNA ANALYSIS: 23 नेताओं के पत्र से क्यों चिढ़े राहुल गांधी? जानिए चिट्ठी की 5 बड़ी बातें
राजनीति की दुनिया से सबसे बड़ी खबर ये है कि सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) अभी कांग्रेस (Congress) के अध्यक्ष पद पर बनी रहेंगी. सोमवार सुबह अध्यक्ष पद से सोनिया गांधी के इस्तीफे की पेशकश और पार्टी में बदलाव की बड़ी बड़ी बातें शाम होते होते सिर्फ एक दिखावा साबित हुईं
नई दिल्ली: राजनीति की दुनिया से सबसे बड़ी खबर ये है कि सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) अभी कांग्रेस (Congress) के अध्यक्ष पद पर बनी रहेंगी. सोमवार सुबह अध्यक्ष पद से सोनिया गांधी के इस्तीफे की पेशकश और पार्टी में बदलाव की बड़ी बड़ी बातें शाम होते होते सिर्फ एक दिखावा साबित हुईं और सात घंटे के मंथन के बाद भी कांग्रेस परिवारवाद के पंजे से बाहर नहीं निकल पाई, हालांकि इस बीच सोनिया गांधी ने ये जरूर कहा कि वो इस पूरे घटनाक्रम से आहत हैं और जो हो गया सो हो गया. लेकिन क्या वाकई इस घटनाक्रम के बाद जो हो गया सो हो गया कहकर मामले की गंभीरता से छुटकारा पाया जा सकता है ?
अभिनेता सुशांत सिंह की मौत के बाद देश के लोगों ने जो गुस्सा दिखाया. वो गुस्सा ये साबित करता है कि अब ये देश परिवारवाद को किसी भी कीमत पर सहने के लिए तैयार नहीं है. फिर ये परिवारवाद चाहे फिल्मों में हो, खेलों की दुनिया में या फिर राजनीति में हो. लेकिन ऐसा लगता है कि देश की 135 वर्ष पुरानी कांग्रेस पार्टी को ये बात समझ में नहीं आ रही. वो भी तब जबकि पार्टी के अंदर ही परिवारवाद को लेकर गुस्सा बढ़ता जा रहा है. कांग्रेस ने वर्ष 1947 में देश को अंग्रेजों से तो आजादी दिला दी थी लेकिन 73 वर्षों में कांग्रेस के नेता अपनी पार्टी को परिवारवाद से आजाद नहीं कर पाए. इसलिए हमें लगता है कि अब कांग्रेस के ही नेताओं को इस दिशा में आगे आना होगा और परिवारवाद से कांग्रेस को मुक्त कराने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन चलाना होगा. आज हम कांग्रेस के लिए जरूरी इसी स्वतंत्रता आंदोलन को आधार बनाकर राजनीति में परिवारवाद का विश्लेषण करेंगे.
15 दिन पहले कांग्रेस के 23 बड़े नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में कांग्रेस में ऊपर से लेकर नीचे तक बदलाव करने की मांग की गई थी. ये चिट्ठी लिखने वाले कुछ बड़े नेताओं के नाम हैं राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी और विवेक तन्खा. इनमें से कुछ सांसद हैं तो कुछ पार्टी के बड़े नेताओं में शामिल हैं. चिट्ठी लिखने वालों में बहुत सारे लोग पूर्व केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. जैसे भूपेंद्र सिंह हूडा, राजेंद्र कौर भट्टल, एम वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चव्हाण, पीजे कुरियन और रेणुका चौधरी.
चिट्ठी की 5 बड़ी बातें
- कांग्रेस के 23 नेताओं की इस चिट्ठी में जो पांच बड़ी बातें कही गई थीं. उनमें पहली ये थी कि कांग्रेस पार्टी में नीचे से ऊपर तक बदलाव होने चाहिए.
- दूसरी बात ये थी कि कांग्रेस पूर्णकालिक अध्यक्ष का चुनाव करे और पार्टी की लीडरशिप प्रभावी तरीके से काम करे.
- तीसरी बात ये थी कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी के चुनाव कराए जाएं
- चिट्ठी में चौथी बात थी कि ब्लॉक स्तर पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के स्तर पर और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के स्तर पर चुनाव कराए जाएं.
- पांचवी बात ये थी कि बीजेपी के खिलाफ एक नए मोर्चे का गठन किया जाए जिसमें पूर्व कांग्रेसी नेता और ऐसी पार्टियां हों जो बीजेपी का विरोध करती हैं.
इसके बाद गांधी परिवार के करीबी नेताओं ने इसे पार्टी विरोधी गतिविधि बताकर इन 23 नेताओं का विरोध शुरू कर दिया.
एंटनी ने चिट्ठी लिखने वालों को सुनाई खरी खोटी
पार्टी में विद्रोह के स्वर सुनकर जल्दबाजी में Congress Working Committee की एक बैठक बुलाई गई. जिसमें इस चिट्ठी के आधार पर सोनिया गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश की. इसके बाद मनमोहन सिंह और ए के एंटनी जैसे कांग्रेस के वफादार नेताओं ने अपील की. उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी को पद पर बने रहना चाहिए. ए के एंटनी ने तो उन 23 नेताओं को भी खरी खोटी सुनाना शुरू कर दिया जिन्होंने ये चिट्ठी लिखी थी.
इसका असर ये हुआ कि लोकसभा चुनाव में हार के बाद नैतिक आधार पर अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले राहुल गांधी को ये बात इतनी चुभ गई कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के इन 23 नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और यहां तक कह दिया कि ये नेता बीजेपी के साथ मिले हुए हैं. राहुल गांधी ने कहा कि जब उनकी मां बीमार थीं और अस्पताल में थीं और राजस्थान में सियासी संकट चल रहा था. तब ऐसी चिट्ठी लिखने की क्या जरूरत थी और इससे सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को ही होना था. आपको याद होगा देश में जब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकार थी. तब हर चीज का दोष विदेशी ताकतों पर डाल दिया जाता था और अब कांग्रेस पार्टी हर चीज का दोष बीजेपी पर डाल देती है.
इसके बाद गुलाम नबी आजाद ने बोलना शुरू किया और चिट्ठी के कुछ हिस्से पढ़ने के बाद राहुल गांधी के आरोपों से नाराज होकर इस्तीफे की पेशकश कर दी. इसके साथ ही कपिल सिब्बल का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने एक ट्वीट करके अपना गुस्सा निकाला और कहा कि हमने 30 वर्षों में कभी बीजेपी के पक्ष में कोई बयान नहीं दिया. फिर भी हमने बीजेपी से सांठगांठ की? इसके बाद कांग्रेस पार्टी में अफरातफरी मच गई. कांग्रेस के लिए मीडिया को मैनेज करने वाले नेताओं ने सारा ठीकरा मीडिया पर ही फोड़ दिया और कहा कि राहुल गांधी ने कभी ऐसा कुछ नहीं कहा.
कांग्रेस किसी खानदान की पार्टी नहीं
कांग्रेस के नेताओं को ये समझना चाहिए कि कांग्रेस किसी खानदान की पार्टी नहीं है. आज हम कांग्रेस के बड़े बड़े नेताओं को बताना चाहते हैं कि कांग्रेस कोई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी नहीं है. सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता भी कांग्रेस के अध्यक्ष बने लेकिन वो नेहरू और महात्मा गांधी के सामने टिक नहीं पाए. एक समय में जब कांग्रेस के नेता सरदार पटेल को अध्यक्ष के तौर पर देखना चाहते थे तो जवाहर लाल नेहरू को इस पद पर बिठा दिया गया. लेकिन कांग्रेस किसी परिवार की पार्टी नहीं है. भारत में लोकतंत्र है और भारत की राजनैतिक पार्टियों में भी लोकतंत्र होना चाहिए, लोकतंत्र में सब बराबर होते हैं.
राजे रजवाड़ों का जमाना जा चुका है और लोकतंत्र में सबको खुलकर अपनी बात कहनी चाहिए. समय आ गया है कि अब कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर के व्यक्ति को बनाया जाए. अब कांग्रेस के नेताओं को इस भ्रम से बाहर निकलना चाहिए कि गांधी परिवार ही कांग्रेस है और कांग्रेस ही गांधी परिवार है.कांग्रेस के इस परिवार ने अपनी पार्टी को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलाया जरूर है. लेकिन कांग्रेस पार्टी कोई ऐसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी नहीं जो सदा बनी रहेगी. कांग्रेस ने देश को अंग्रेजों की गुलामी से बाहर निकाला और आज कांग्रेस के नेताओं को मानसिक गुलामी से बाहर निकलना होगा. अगर कांग्रेस के नेता ऐसा करेंगे तो पूरा देश उनके साथ आ जाएगा. इसलिए आज से और अभी से कांग्रेस के नेताओं को अपनी पार्टी के अंदर ही एक नए स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत करनी चाहिए.
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