DNA: B.Ed कर लोगे.. पर सरकारी जॉब मिलेगी क्या? 4 लाख युवाओं से बिहार सरकार की `सामूहिक ठगी`
DNA Analysis: आजकल ठगी के ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं, जहां नौकरी देने या दिलाने का झांसा देकर युवाओं से मोटी रक़म ऐंठ ली जाती है. छात्र भी ठगी के इस Pattern को जानते हैं, समझते हैं, लेकिन बेरोज़गारी चीज़ ही ऐसी होती है, कि युवा बार-बार ऐसे ठगों के झांसों में आते रहते हैं.. ठगी का शिकार होते रहते हैं.
DNA Analysis: आजकल ठगी के ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं, जहां नौकरी देने या दिलाने का झांसा देकर युवाओं से मोटी रक़म ऐंठ ली जाती है. छात्र भी ठगी के इस Pattern को जानते हैं, समझते हैं, लेकिन बेरोज़गारी चीज़ ही ऐसी होती है, कि युवा बार-बार ऐसे ठगों के झांसों में आते रहते हैं.. ठगी का शिकार होते रहते हैं.
हम आपको युवाओं के साथ ठगी के एक ऐसे Classic उदाहरण के बारे में बताएंगे, जिसके बारे में सुनकर आप भी अपना सिर पकड़ लेंगे. क्योंकि युवाओं के साथ ये ठगी, किसी व्यक्ति, गिरोह या संगठन ने नहीं की है. बल्कि ये ठगी बिहार की सरकार ने की है, वो भी सामूहिक रूप से और आप चाहें तो इसे सरकारी Scam भी कह सकते हैं.
दरअसल बिहार स्कूल शिक्षा विभाग ने इसी वर्ष जून में शिक्षकों की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था और फॉर्म भरने की अंतिम तारीख़ 12 जुलाई तक रखी गई थी. शिक्षक भर्ती परीक्षा में कक्षा 1 से लेकर 12 वीं तक के लिए कुल 1,70,461 पदों पर भर्तियां होनी थीं. जिसके लिए 8 लाख 15 हजार युवाओं ने फॉर्म भरे. और इसमें क़रीब 3 लाख 80 हज़ार अभ्यर्थी बीएड डिग्री धारक थे. यहां तक सब कुछ ठीक था.
लेकिन फॉर्म भरे जाने के क़रीब एक महीने बाद यानी 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसला सुनाया. बीएड डिग्री धारकों को प्राइमरी शिक्षक के लिए अयोग्य ठहरा दिया गया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार जिन छात्रों ने B.Ed किया है, वो पहली से पांचवी तक के छात्रों को नहीं पढ़ा सकते और वो सिर्फ़ छठी से बारहवीं तक की Classes को पढ़ाने के लिए ही योग्य होंगे. बस अदालत के इसी आदेश की आड़ लेकर बिहार सरकार और Bihar Service Public Commission ने बिहार के B.Ed डिग्रीधारी युवाओं के साथ सामूहिक ठगी को अंजाम दे दिया.
BPSC ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद B.Ed कर चुके युवाओं को Primary Teacher भर्ती परीक्षा देने से नहीं रोका. बिहार शिक्षा विभाग की तरफ़ से कहा गया कि जिन छात्रों ने फॉर्म भरा है, वो फिलहाल परीक्षा दे दें...क्या करना है, ये फ़ैसला बाद में लिया जाएगा. इसीलिए 24, 25 26 अगस्त को बिहार में जो शिक्षक भर्ती परीक्षा हुईं थी, उसमें B.Ed वाले छात्रों ने भी हिस्सा लिया.
हमने DNA में उस वक़्त भी बताया था कि ये छात्र किस तरह के हालात में परीक्षा देने पहुंचे थे. कोई घुटनों तक पानी में डूबकर परीक्षा केंद्र पहुंचा था, तो किसी ने परीक्षा देने के लिए फुटपाथ पर रात काटी थी. रेलवे स्टेशन ही नहीं, बस अड्डों और आसपास के मंदिरों तक में छात्रों की भीड़ नज़र आई थी. छात्रों ने ये सब मुश्किलें इसलिए सहीं थीं, ताकि वो सरकारी शिक्षक की नौकरी हासिल कर सकें. लेकिन परीक्षा देने के बाद जब रिज़ल्ट की बारी आई तो BPSC ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला देते हुए B.ED वालों के रिज़ल्ट जारी करने से ही मना कर दिया.
इन छात्रों ने परीक्षा के लिए करीब एक हज़ार रुपये परीक्षा शुल्क जमा किया था. इस लिहाज से देखें तो बिहार सरकार ने इनसे परीक्षा फ़ीस के नाम पर करोड़ों रुपये वसूल लिए, वो भी तब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही साफ़ कह दिया था कि B.ED वाले Primary में पढ़ाने के लिए योग्य नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला 11 अगस्त को सुनाया था. क़ायदे से BPSC को तभी इन 3 लाख 80 हज़ार छात्रों को प्राइमरी टीचर के लिए एक्ज़ाम देने से रोक देना चाहिए था और उनकी एक्ज़ाम फ़ीस वापस कर देनी चाहिए थी. लेकिन BPSC ने सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद इसलिए परीक्षा करवाई ताकि पहली से पांचवी तक के लिए परीक्षा देने वाले इन B.ED अभ्यर्थियों की फ़ीस वापस न करनी पड़े.
अब परीक्षा करवाने के बाद BPSC और बिहार सरकार को अचानक सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की याद आ गई. यानी पहले तो फ़ीस के नाम पर छात्रों से करोड़ों रुपये वसूल लिए और बाद में कोर्ट का हवाला देकर रिजेक्ट कर दिया. वैसे बिहार सरकार ने इनसे सिर्फ़ पैसों की ठगी ही नहीं की है. उसने इनके सपनों और उम्मीदों को भी ठगा है.
इन छात्रों को किसी संगठन, संस्थान या किसी व्यक्ति ने धोखा दिया होता, तो शायद ये सरकार से इंसाफ़ की गुहार लगाते. लेकिन जब सरकार ही ठगी पर उतर आए तो ये किससे गुहार लगाएं. पटना के नागेंद्र कुमार ने दो लाख रुपये ख़र्च कर बीएड किया था. इस भर्ती से नागेंद्र कुमार की नहीं, उनके घर वालों की उम्मीदें भी जुड़ी थीं. लेकिन सरकार की धोखाधड़ी ने उनके सपने ही नहीं, दिल और हौसला भी तोड़ दिया.
ये बिहार के वो युवा हैं, जिन्हे पहले सरकार ने सरकारी नौकरी के सपने दिखाए. भर्तियां निकाली, फॉर्म भरने के नाम पर मोटी फ़ीस वसूली. और जब रिज़ल्ट की बारी आई तो सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर उन्हे रिजेक्ट कर दिया. नागेंद्र कुमार हों.. हम्बल ज़ैदी हों.. रणधीर कुमार हों या फिर सोनू.. इन सबके कहने का अंदाज़ भले ही अलग हो.. कहानियां एक जैसी हैं. सभी को सरकार ने साज़िश के साथ ठगा है, वो भी खुलेआम.
हमारी इस रिपोर्ट मक़सद था कि आप भी इन छात्रों का दर्द महसूस कर सकें. क्योंकि सिस्टम की चमड़ी तो इतनी मोटी हो चुकी है कि उस पर शायद ही ऐसी अपीलों का कोई असर होता हो. वैसे बिहार की एक सच्चाई और भी है. केंद्र सरकार की तरफ से संसद में दी गई जानकारी के अनुसार वर्ष 2020 से लेकर वर्ष 2022 तक देश के लगभग सभी राज्यों में शिक्षकों की लाखों postखाली रह गई थीं. यानी इन पदों पर किसी की भर्ती ही नहीं हुई. और बिहार इसमें सबसे ऊपर है. आंकड़ों के अनुसार बिहार में वर्ष 2022-23 में कक्षा 1 से लेकर 8 तक के शिक्षकों की एक लाख सत्तासी हज़ार दो सौ नौ ((1,87,209)) पद खाली थे. ये हाल तब है, जबकि बिहार में छात्रों और शिक्षकों के बीच का अनुपात सबसे ख़राब है और वहां 50 से 60 छात्रों के बीच सिर्फ़ एक teacher ही है.
यानी एक तरफ़ तो बिहार में teachers की भारी कमी है. जबकि दूसरी तरफ़ B.ED वाले लाखों छात्र वैकेंसी का इंतज़ार कर रहे हैं. उनका ये इंतज़ार कब ख़त्म होगा, कोई नहीं जानता. क्योंकि जिस सरकार को जवाब देना है, वो तो उन्हे पहले ही ठग चुकी है.