DNA on Hurriyat Conference and NGO: हमारे देश में ऐसे बहुत सारे संगठन और NGOs हैं, जो गरीब और कमजोर लोगों की भलाई और मदद के नाम पर बड़ी बड़ी दुकानें चलाते हैं. पूरी दुनिया इन लोगों को मसीहा समझने लगती है. इन्हें बड़े बड़े पुरस्कार मिलते हैं और इन सबके पीछे इनके काले कारनामे हमेशा के लिए छिप जाते हैं.


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आज हम सबसे पहले आपको ये बताएंगे कि कश्मीर में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस कैसे लाखों रुपये का चंदा लेकर आजाद कश्मीर का समर्थन करने वाले युवाओं को पाकिस्तान के मेडिकल Colleges में पढ़ने के लिए भेजती थी. इन छात्रों से मिलने वाले चंदे से हुर्रियत के नेता कश्मीर में अपनी जेबे भरते थे और बाकी का पैसा आतंकवादियों में बांट देते थे.


पुलिस ने डिकोड किया हुर्रियत का बिजनेस मॉडल


ये खबर हम आपको इसलिए बता रहे हैं क्योंकि टेरर फंडिंग के एक मामले में जम्मू कश्मीर पुलिस ने वहां की एक अदालत में चार्जशीट दाखिल की है. जिसमें विस्तार से इस पूरे बिजनेस मॉडल को डिकोड किया गया है. ये पूरा बिजनेस मॉडल क्या है, अब आप वो समझिए.


पाकिस्तान के मेडिकल Colleges और Universities में कश्मीर के मुस्लिम छात्रों के लिए एक विशेष कोटा रखा गया है. इसके तहत हर साल MBBS की 40 सीटें कश्मीरी छात्रों के लिए आरक्षित रखी जाती हैं और दूसरे प्रोफेशनल Courses में भी कश्मीर छात्रों के दाखिले को प्राथमिकता दी जाती है. यानी पाकिस्तान की सरकार एक विशेष प्रोग्राम के तहत कश्मीरी छात्रों को वहां आकर पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है. बड़ी बात ये है कि कश्मीरी छात्रों को पाकिस्तान के मेडिकल Colleges में ये दाखिला सीधे तौर पर नहीं मिलता बल्कि इसके लिए उन्हें हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के पास जाना होता है.



पाकिस्तान में MBBS कराने के 10 लाख रुपये


हुर्रियत कॉन्फ्रेंस कश्मीर में 26 अलग अलग राजनीतिक पार्टियों और संगठनों का एक गठबन्धन है, जो कश्मीर की आजादी मांग करता है. ये पूरी व्यवस्था इस तरह है कि अगर कोई कश्मीरी छात्र पाकिस्तान जाकर MBBS की पढ़ाई करना चाहता है तो उसे हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से एक Recommendation Letter हासिल करना जरूरी होता है. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ये लेटर उन्हीं छात्रों को देता है, जो कश्मीर में अलगावाद और आतंकवाद का समर्थन करते हैं.


अगर कोई छात्र और उसका परिवार हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के विचारों से सहमत होता है तो उस छात्र को Recommendation Letter आसानी से मिल जाता है. हालांकि इसके लिए प्रत्येक छात्र से 10 लाख रुपये तक लिए जाते हैं. यानी इस हिसाब से हुर्रियत कॉन्फ्रेंस हर साल कश्मीर के 40 मुस्लिम छात्रों को MBBS की पढ़ाई कराने के लिए पाकिस्तान भेजता है और इसके बदले में उसे सालाना चार करोड़ रुपये मिलते हैं.


अब क्योंकि पाकिस्तान में कश्मीर छात्रों के लिए सीटें पहले से आरक्षित हैं, इसलिए ये पैसा सीधे हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की जेब में चला जाता है. फिर इन पैसों से कश्मीर में आतंकवादियों को फंडिंग की जाती है और पत्थरबाजों को पैसा दिया जाता है. कश्मीर में ऐसे Over Ground Workers तैयार किए जाते हैं, जो अलगाववाद और आतंकवाद का समर्थन करते हैं.


आतंकवादी बनने का दिया जाता था ऑफर


दूसरी बात, हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की ओर से ऐसे कश्मीरी नौजवानों से भी सम्पर्क किया जाता है, जो आतंकवादी बनने के लिए तैयार होते हैं. ऐसे लोगों को हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की तरफ से एक शानदार ऑफर भेजा जाता है. इस ऑफर के तहत ये कहा जाता है कि अगर किसी परिवार से कोई व्यक्ति आतंकवादी बनने का फैसला लेता है तो हुर्रियत कॉन्फ्रेंस उस परिवार के एक सदस्य को MBBS की पढ़ाई कराने के लिए पाकिस्तान भेजेगा. यानी MBBS की सीट आतंकवादी के परिवार को एक Incentive के रूप में मिलती है. 


कोर्ट में जो चार्जशीट दाखिल हुई है, उसमें भी यही बताया गया है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने पिछले कुछ वर्षों में जिन कश्मीरी छात्रों को पाकिस्तान भेजा, वो सभी ऐसे परिवारों से थे, जिनका कोई ना कोई सदस्य आतंकवादी संगठनों में शामिल हो गया था और फिर बाद में मुठभेड़ में मारा गया था.


हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा है कि वो कश्मीर के लोगों की आवाज है. लेकिन हकीकत में इस आवाज़ के पीछे एक बिजनेस मॉडल काम कर रहा है, जिसके तहत कश्मीर को अस्थिर करने की कोशिश की जाती है.


काली कमाई का जरिया बन गए NGOs


अब हम आपको दूसरे बिजनेस मॉडल के बारे में बताते हैं. ये बिजनेस मॉडल उन NGOs का है, जो समाज सुधार की बड़ी बड़ी बातें करते हैं. मानव अधिकारों का मुद्दा उठाते हैं और जो ये कहते हैं कि उनका उद्देश्य देश में सकारात्मक बदलाव लाना है. लेकिन जिस मकसद को ये NGOs बदलाव का नाम देते हैं, उसके पीछे भी असल में एक बिजनेस मॉडल है.


CBI ने दिल्ली, राजस्थान, चेन्नई और हैदराबाद समेत देश में 40 जगहों पर छापेमारी की है. ये छापेमारी केन्द्रीय गृह मंत्रालय के कुछ अफसरों और NGOs के दफ्तर पर की गई है. इन NGOs के नाम हम आपको बताएंगे लेकिन उससे पहले आपको इनका बिजनेस मॉडल बताते हैं.


आरोप है कि ये NGOs FCRA लाइसेंस हासिल करने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारियों को रिश्वत देने वाले थे. रिश्वत की ये रकम 2 करोड़ रुपये से ज्यादा थी. कोई भी NGO तब तक विदेशी चंदा हासिल नहीं कर सकता, जब तक उसके पास FCRA लाइसेंस ना हो. FCRA का अर्थ है, Foreign Contribution (Regulation) Act. ये एक कानून है, जिसके तहत NGOs को विदेशों से मिलने वाले चंदे को रेगुलेट किया जाता है और इसकी निगरानी की जाती है.


सरकार ने कई NGOs के लाइसेंस रद्द किए


भारत सरकार ने कुछ समय पहले इन NGOs का ये लाइसेंस रद्द कर दिया था. इन पर आरोप था कि इन्होंने विदेशी चंदे को लेकर जानकारी छिपाई थी. इनमें से कुछ NGOs पर देश को अस्थिर करने और लोगों का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराने के भी आरोप थे.


अब क्योंकि भारत सरकार की कार्रवाई के बाद इन्हें विदेशों से फंडिंग नहीं मिल पा रही थी. इसलिए इन NGOs ने केन्द्रीय गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारियों से सम्पर्क किया और उन्हें रिश्वत देकर इस लाइसेंस को फिर से बहाल कराने की कोशिश की.


आरोप है कि रिश्वत देने के लिए दो करोड़ रुपये हवाला के लिए जरिए भारत मंगाए गए. जब इसकी शिकायत भारत सरकार को मिली तो ये पूरा बिजनेस मॉडल एक्सपोज हो गया. अब हम आपको इन NGOs के नाम बताते हैं.


इन NGOs के दफ्तरों पर हुई छापेमारी


इनमें एक NGO दिल्ली के उसी जामिया नगर का है, जो शाहीन बाग से सिर्फ 2 किलोमीटर दूर है. इस NGO का नाम है, जहांगीराबाद Education Trust और इसका डायरेक्टर शफी मोहम्मद नाम का एक व्यक्ति है.


इसके अलावा तमिल नाडु और आन्ध्र प्रदेश के भी 2-2 NGOs इसमें शामिल है. मणिपुर और असम के भी 1-1 NGO पर इस साजिश में शामिल होने का आरोप है. इस बिजनेस को आप एक और उदाहरण से समझ सकते हैं.


हाल ही में ED ने भारत की एक तथाकथित महिला पत्रकार राणा अयूब पर कार्रवाई की थी. तब ED ने जांच में पाया था कि राणा अयूब ने चैरिटी करने के लिए लोगों से जो पैसा इकट्ठा किया था, उसे उन्होंने बाद में अपने पिता और खुद के नाम पर FD यानी Fixed deposit करा लिया. जो इनकम टैक्स ऐक्ट के तहत एक अपराध है.