नई दिल्ली: आज हम Art Of Saying Goodbye यानी अलविदा कहने की कला का विश्लेषण करेंगे. जीवन में हम में से ज्यादातर लोगों को जो भी पहचान मिलती है, जो भी सफलता मिलती है और इस सफलता के साथ जो धन दौलत और प्रतिष्ठा हासिल होती है. उसे छोड़ देना यानी अलविदा कहना आसान नहीं होता. हम अपने पद, प्रतिष्ठा और मान सम्मान को ही अपनी असली पहचान मान लेते हैं. इस पहचान के साथ हमारा रिश्ता जितना लंबा होता है उतना ही इन्हें छोड़ना मुश्किल हो जाता है, इस पहचान को बनाए रखने के लिए लोग उसूलों तक से समझौता कर लेते हैं. लेकिन जो व्यक्ति जीवन के किसी ना किसी मोड़ पर अचानक इस पहचान को छोड़ने की क्षमता रखता है. सही मायनों में वही व्यक्ति सफल होता है.


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हमारे इस विश्लेषण का आधार दुनिया के सबसे महान फुटबॉलर्स में से एक लियोनेल मेसी (Lionel Messi) का वो फैसला है जिसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है. लियोनेल मेसी ने अपने प्रोफेशनल फुटबॉल क्लब बार्सिलोना (Barcelona) को छोड़ने का फैसला कर लिया है. वो इस क्लब के लिए पिछले 20 वर्षों से खेल रहे थे.


लियोनेल मेसी अर्जेंटीना के फुटबॉल खिलाड़ी हैं और वो अंतरराष्ट्रीय मैचों में अपने देश के लिए खेलते हैं. उनके क्लब का नाम है FC Barcelona, जो कि स्पेन का एक फुटबॉल क्लब है. ये ठीक वैसा ही है जैसे क्रिकेट के खिलाड़ी अपने अपने देशों के लिए तो अंतरराष्ट्रीय मैच खेलते हैं. लेकिन IPL में वो कई दूसरे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ एक टीम बनाकर किसी दूसरी टीम से मुकाबला करते हैं. लियोनेल मेसी का बार्सिलोना को छोड़ने का फैसला ठीक वैसा ही है जैसे महेंद्र सिंह धोनी अचानक IPL की अपनी टीम Chennai Super kings को छोड़ दें. वो टीम जिसके साथ वो 12 वर्षों से जुड़े हुए हैं और जिसे उन्होंने अपनी कप्तानी में तीन बार चैंपियन बनाया है.


20 वर्षों से क्लब का हिस्सा
33 वर्ष के मेसी सिर्फ 13 वर्ष की उम्र में ही FC Barcelona के लिए खेलने लगे थे. यानी वो पिछले 20 वर्षों से इस क्लब का हिस्सा रहे हैं. बार्सिलोना उन्हें फीस के तौर पर हर साल 593 करोड़ रुपये देता है. इस क्लब से उनकी हर महीने की आमदनी 49 करोड़ रुपये है यानी वो बार्सिलोना से हर दिन एक करोड़ 63 लाख रुपये और हर घंटे 6 लाख 79 हजार रुपये कमाते हैं. लेकिन इसके बावजूद अब अचानक उन्होंने अपना ये क्लब छोड़ने का फैसला किया है.मेसी ने बार्सिलोना को ये सूचना कल रात एक फैक्स भेजकर दी.


मेसी ने बार्सिलोन के लिए 731 मैच खेले हैं, जिनमें उन्होंने 634 गोल किए हैं. 285 गोल्स को असिस्ट किया यानी इतनी बार उन्होंने गोल करने वाले खिलाड़ी को फुटबॉल पास की है और वो 48 हैट्रिक्स अपने नाम कर चुके हैं. इसके अलावा बार्सिलोना में रहते हुए मेसी कई प्रतिष्ठित पुरस्कार भी अपने नाम कर चुके हैं.


बार्सिलोना के साथ मेसी का कॉन्ट्रैक्ट वर्ष 2021 तक है. लेकिन उन्होंने इस क्लब को तत्काल प्रभाव से छोड़ने का फैसला किया है. उन्होंने अपने क्लब से कहा कि उन्हें फ्री ट्रांसफर का मौका दिया जाए. यानी जब वह कोई दूसरा क्लब जॉइन करें तो बार्सिलोना उनसे जुर्माना ना वसूले.


हालांकि फुटबॉल के जानकारों का मानना है कि अगर बार्सिलोना उन्हें फ्री ट्रांसफर नहीं देता है तो भी मेसी मानने वाले नहीं हैं और वो बार्सिलोना से अपना पिंड छुड़ाने के लिए 700 Million Euros यानी 6 हजार करोड़ रुपये भी दे सकते हैं. ये रकम उनका नया क्लब भी दे सकता है. इसे आम बोलचाल में Buy Out कहा जाता है. अगर ऐसा हुआ तो ये फुटबॉल के इतिहास की सबसे बड़ी ट्रांसफर फीस होगी.


छोड़ने का फैसला क्यों किया?
लियोनेल मेसी जिस क्लब के साथ पिछले 20 वर्षों से खेल रहे थे और जो क्लब उनकी पहचान बन गया था. उन्होंने उसे छोड़ने का फैसला क्यों किया? इसे आप 5 Points में समझ लीजिए. मेसी अपने ही क्लब से इतने नाराज क्यों है ये जानने के लिए आपको फुटबॉल का शौकीन होने की भी कोई जरूरत नहीं है.


इसका पहला कारण ये है कि वो अपने क्लब के हालिया प्रदर्शन से खुश नहीं थे. इसी महीने की 16 तारीख को उनकी टीम जर्मनी के Bayern Munich (बायर्न म्यूनिख) क्लब के साथ मुकाबले में आठ दो से हार गई थी.


दूसरा कारण ये है कि वो अपने क्लब बार्सिलोना में होने वाली राजनीति से बहुत परेशान थे. उन्हें शिकायत है कि मैनेजमेंट उनकी बात नहीं सुन रहा है और क्लब में राजनीति बढ़ती जा रही है.


तीसरी वजह ये है कि पिछले कई वर्षों से बार्सिलोना की टीम पूरी तरह से मेसी पर निर्भर होकर रह गई है. उन पर हमेशा प्रदर्शन का दबाव रहता है और उनकी टीम उनके अलावा मैच जिताने वाले अच्छे खिलाड़ियों का चयन करने में सफल नहीं रही है.


चौथी समस्या पैसों की है क्योंकि, COVID-19 की वजह से बार्सिलोना की हालत ठीक नहीं है और क्लब द्वारा खिलाड़ियों पर ये दबाव बनाया जा रहा है कि वो अपनी फीस में कटौती कर लें. मार्च महीने में मेसी समेत बार्सिलोना के सभी खिलाड़ी अपनी फीस में 70 प्रतिशत तक की कटौती करने के लिए तैयार हो गए थे. लेकिन खिलाड़ियों के लिए आगे भी ऐसा करते रहना बहुत मुश्किल है.


पांचवी वजह ये है कि मेसी अपने दोस्त और साथी खिलाड़ी लुईस सुआरेज (Luis Suarez) को टीम से निकाले जाने से बहुत नाराज हैं. Luis Suarez भी बार्सिलोना के लिए खेलते हैं और उनका भी कॉन्ट्रैक्ट 2021 में समाप्त हो रहा है लेकिन बार्सिलोना का मैनेजमेंट मेसी को बता चुका है कि वो लुईस सुआरेज का कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाने के मूड में नहीं है.


जैसा कि हमने कहा मेसी की पीड़ा को समझने के लिए आपको फुटबॉल का शौकीन होने की जरूरत नहीं है. ये सारे कारण वही हैं जिनकी वजह से हम और आप भी अक्सर अपनी नौकरी, पद और प्रतिष्ठा को गुडबाय कहने का मन बना लेते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि ज्यादातर लोग ये बात सिर्फ मन में रखते है, जबकि मेसी ने इसे सच कर दिखाया है और इसलिए आज हम मेसी के बहाने चीजों को अलविदा कहने की कला का विश्लेषण कर रहे हैं.


 ये क्लब सिस्टम आखिर क्या है?
अब लोग ये सवाल पूछ रहे हैं कि मेसी, बार्सिलोना को छोड़ने के बाद किस क्लब में जा सकते हैं. इनमें सबसे बड़ा नाम है ब्रिटेन का Manchester City Club. इस रेस में शामिल दूसरे क्लब का नाम है, Paris Saint Germain (पेरिस सेंट जर्मेन). ये फ्रांस का एक मशहूर फुटबॉल क्लब है.


अब आप ये भी सोच रहे होंगे कि अगर मेसी जैसे खिलाड़ी अपने देश की अंतरराष्ट्रीय टीम में खेलते हैं तो फिर ये क्लब सिस्टम आखिर क्या है.


दुनिया में अलग-अलग देशों की अलग-अलग फुटबॉल लीग होती है. इनमें अलग-अलग क्लब एक दूसरे से मुकाबला करते हैं. उदाहरण के लिए ब्रिटेन की सबसे मशहूर लीग है, प्रीमियर लीग. जर्मनी की लीग का नाम है, Bundes Liga (बुंडस लीगा) और इसी तरह स्पेन की लीग का नाम है La Liga (ला लीगा). मेसी इसी लीग में बार्सिलोना के लिए खेलते हैं.


बार्सिलोना से रिश्ता
मेसी आज दुनिया के सबसे महान फुटबॉलर्स में से एक माने जाते हैं. लेकिन उनकी ये यात्रा आसान नहीं थी. उनके पिता अर्जेंटीना की एक स्टील फैक्ट्री में साधारण से कर्मचारी थे और उनकी मां घरों में साफ सफाई का काम किया करती थीं.


मेसी ने बहुत छोटी उम्र में ही फुटबॉल खेलना शुरू कर दिया था. लेकिन 11 वर्ष की उम्र में पता चला कि उन्हें Growth Hormone Deficiency है. इस स्थिति में किसी व्यक्ति की हाईट बढ़ना बंद हो जाती है और उसका कद छोटा रह जाता है. उस समय मेसी का कद सिर्फ 4 फीट 2 इंच था.


इसके कुछ वर्षों के बाद ही बार्सिलोना ने मेसी की प्रतिभा को पहचाना और उनके इलाज का खर्च उठाने का भी फैसला किया. इसी दौरान वो अर्जेंटीना से स्पेन चले गए और वहीं बस गए. आज मेसी का कद 5 फीट 7 इंच है. जबकि फुटबॉल में खिलाड़ियों का औसत कद 5 फीट 9 इंच के आसपास होता है. लेकिन मेसी ने अपनी इस शारीरिक कमी को अपनी मेहनत के आड़े नहीं आने दिया. उनके क्लब बार्सिलोना ने भी उनका साथ दिया और धीरे धीरे अपने परिश्रम के दम पर मेसी दुनिया के ऑल टाइम ग्रेट यानी महान खिलाड़ियों में शामिल हो गए. लेकिन अब उन्होंने बार्सिलोना के साथ अपने इस रिश्ते को तोड़ने का फैसला किया है. 


मेसी का क्लब छोड़ना कई सबक देता है
मेसी का ये फैसला सिर्फ फुटबॉल की दुनिया की एक बड़ी घटना नहीं है, बल्कि उनका ये फैसला आम लोगों को भी कई सबक देता है और आपको ये सबक 5 प्वाइंट्स  में समझना चाहिए.


पहला सबक तो ये है कि कोई भी रिश्ता हमेशा के लिए नहीं होता. रिश्ता कितना भी मजबूत और पुराना क्यों न हो. अगर उसमें दरार आने लगे तो उससे अलग हो जाना ही बेहतर होता है.


दूसरा सबक ये है कि जीवन में कोई चीज अगर सबसे ज्यादा स्थाई है तो वो है बदलाव. इसलिए बदलाव के लिए आप हमेशा तैयार रहिए. फिर चाहे इसके लिए आपको अपनी पुरानी पहचान ध्वस्त करके नई पहचान ही क्यों ना बनानी पड़े. यानी आपको हमेशा खुद का एक बेहतर वर्जन बनने का प्रयास करना चाहिए.


तीसरा सबक ये है कि आपको चीजों को तब नहीं छोड़ना चाहिए, जब तक आप बुरे प्रदर्शन के दौर से गुजर रहे हैं, बल्कि आपको ये फैसला तब लेना चाहिए जब आपका प्रदर्शन अपने चरम पर हो, यानी आप अपमान के साथ नहीं बल्कि सम्मान के साथ विदा लें. मेसी ने भी ये फैसला तब लिया जब उनका प्रदर्शन अच्छा था और वो लगातार स्कोर कर रहे थे.


मेसी के इस फैसले से चौथा सबक आप ये ले सकते हैं कि दुविधा और असुविधा में से अगर किसी एक चीज को चुनना हो तो हमेशा असुविधा को चुन लेना चाहिए, क्योंकि दुविधा से बड़ा रोग कोई नहीं है. गीता में श्री कृष्ण भी अर्जुन से यही कहते हैं कि तुम युद्ध लड़ो या मत लड़ो लेकिन किसी भी प्रकार की दुविधा में मत रहो.


पांचवां सबक ये है कि जिस कहानी को अंजाम तक पहुंचाना मुमकिन ना हो. उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ देना ही बेहतर होता है. बार्सिलोना और मेसी ने एक साथ जो सफलताएं अर्जित कीं. उनका दौर बीत चुका है इसलिए इससे पहले कि एक साथ सफलता की ऊंचाइयां छूने वाले बार्सिलोना और मेसी एक साथ गर्त में जाते. मेसी ने खुद को इस कहानी और रिश्ते से अलग कर लिया.


अलविदा कहने की कला 
भगवत गीता के दूसरे अध्याय के एक श्लोक में लिखा है कि जब आप किसी चीज को जोर से पकड़ते हैं तो आप उसके साथ एक संबंध स्थापित कर लेते हैं. ये संबंध इच्छाओं को जन्म देता है. इच्छाएं क्रोध का कारण बनती हैं. क्रोध की वजह से आप फैसले नहीं ले पाते और फैसले न लेने की यही आदत धीरे-धीरे दुविधा में बदल जाती है और आपका पूरा जीवन कंफ्यूजन का शिकार हो जाता है.


इसलिए अपनी पहचान को छोड़ना कई बार जीवन के लिए बहुत अच्छा साबित होता है. उदाहरण के लिए भगवान श्री कृष्ण ने राजा जरासंध के साथ बार बार युद्ध से तंग आकर मथुरा को छोड़ दिया था. उन्होंने हर बार जरासंध को युद्ध में हराया था. वो चाहते तो जरासंध का वध भी कर सकते हैं. लेकिन उन्होंने इसमें अपनी ऊर्जा नष्ट करना सही नहीं समझा और उन्होंने मथुरा से दूर द्वारिका नाम का एक नया शहर बसाया और अपनी भूमिका बदलकर वो महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रणनीतिकार बन गए.


इसी तरह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एक सफ़ल वकील थे. लेकिन देश की खातिर उन्होंने वकालत छोड़ दी और एक स्वतंत्रता सेनानी बन गए. अगर महात्मा गांधी अपने जीवन में ये बदलाव नहीं करते तो शायद भारत की आजादी की लड़ाई तेज नहीं होती.


दुनिया की मशहूर कंपनी एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स ने भी अपनी ही बनाई कंपनी को छोड़ दिया था और उन्होंने पिक्सर और नेक्स्ट के नाम से नई कंपनियां शुरू की थीं. लेकिन 7 वर्षों के बाद स्टीव जॉब्स एक बार फिर एप्पल का हिस्सा बन गए और उनकी नई कंपनी नेक्स्ट का विलय भी एप्पल में हो गया. मोबाइल फोन और पर्सनल कम्प्यूटर के क्षेत्र में क्रांति का श्रेय स्टीव जॉब्स को ही जाता है. लेकिन जब वो सफलता के चरम पर थे तब उन्होंने अपनी ही कंपनी को अलविदा कह दिया था.


इसलिए अलविदा कहने की कला हर किसी को आनी चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति पुरानी चीजों को छोड़ नहीं पाता वो किसी नई चीज का निर्माण भी नहीं कर सकता.


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