नई दिल्ली: लद्दाख के लेह में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स यानी SFF के कंपनी लीडर न्यिमा तेनजिन (Nyima Tenzin) का अंतिम संस्कार किया गया. स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को विकास रेजिमेंट भी कहा जाता है. ये रेजीमेंट भारतीय सेना का हिस्सा नहीं है. इसके सारे जवान भारत में रह रहे तिब्बती लोग होते हैं. 29 और 30 अगस्त की रात हुई सैनिक कार्रवाई में न्यिमा तेनजिन (Nyima Tenzin) शहीद हो गए थे. लद्दाख के पेंगोंग झील के दक्षिणी इलाके में चीन की सेना के साथ हुए संघर्ष में उन्होंने सर्वोच्च बलिदान दिया और आज पूरे सैनिक सम्मान के साथ उन्हें विदाई दी गई.


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भारत में तिब्बत को दिल से अपनाने की तस्वीर
लेह में हुआ ये अंतिम संस्कार भारत और तिब्बत के बीच एकता की भावुक तस्वीर है. यहां एक ध्यान देने वाली बात ये रही कि कंपनी लीडर न्यिमा तेनजिन की पत्नी को तिब्बत और भारत, दोनों का झंडा दिया गया, जबकि देश के लिए शहीद होने वालों के परिवार को सिर्फ तिरंगा दिया जाता है. यानी ये भारत में तिब्बत को दिल से अपनाने की तस्वीर है.


एक तरफ चीन है जो अपने सैनिकों के शहीद होने की जानकारी भी नहीं देता है और दूसरी तरफ भारत है, जो तिब्बत को मातृभूमि मानने वाले एक सैनिक को सम्मान के साथ विदा करता है. यानी भारत सिर्फ भाई-भाई के नारे नहीं लगाता है बल्कि तिब्बत को अपने भाई की तरह सम्मान देकर फर्ज भी निभाता है. विकास रेजिमेंट एक सीक्रेट फोर्स है, और आज हुए इस सैन्य सम्मान को आप नए भारत की रणनीति और पॉलिसी में बड़े बदलाव का संकेत मान सकते हैं.


कंपनी लीडर तेनजिन लेह के पास एक तिब्बती शरणार्थी कॉलोनी में पले-बढ़े थे. तिब्बत से आए ऐसे शरणार्थियों के लिए चीन से बड़ा दुश्मन कोई नहीं है. इसलिए चीन की सेना से लड़कर बलिदान देने वाले तेनजिन को विदाई देने के लिए आज पूरा लेह मानो ठहर गया. अंतिम संस्कार के समय वहां पर बौद्ध प्रार्थनाओं के साथ भारत का राष्ट्रगान भी गूंज रहा था. आज शहीद तेनजिन के अंतिम संस्कार के दौरान वहां पर लगातार 'भारत माता की जय' और तिब्बत देश की जय के नारे लग रहे थे. ये चुभनेवाले नारे सुनकर चीन आज और भी ज्यादा परेशान हो जाएगा.


कंपनी लीडर तेनजिन वर्ष 1987 में विकास रेजिमेंट में भर्ती हुए थे. उन्होंने अपनी मातृभूमि तिब्बत को चीन के कब्जे से छुड़ाने की शपथ ली थी. कंपनी लीडर तेनजिन ने कई अभियानों में हिस्सा लिया और उन्हें माउंटेन वारफेयर का माहिर माना जाता था. इस समय उनका बड़ा बेटा भी विकास रेजिमेंट का जवान है.


चीन को बड़ा रणनीतिक नुकसान
लेह के पास मौजूद एक शरणार्थी शिविर में तिब्बत से आए लगभग 7 हजार लोग रहते हैं. इनमें से कई विकास रेजिमेंट का हिस्सा हैं. विकास रेजिमेंट की स्थापना वर्ष 1962 में उन तिब्बती योद्धाओं को ट्रेनिंग देकर की गई थी जो चीन के नरसंहार से बचकर भारत आ गए थे. हमारे देश में पहले कभी विकास रेजिमेंट के बारे में बात नहीं की जाती थी. लेकिन कंपनी लीडर तेनजिन की शहादत के बाद इस फोर्स का नाम सबकी जुबान पर है.


विकास रेजिमेंट ने 29 और 30 अगस्त की रात को चीन को बड़ा रणनीतिक नुकसान पहुंचाया है. भारतीय सेना ने उनकी मदद से ऐसे कई इलाकों को अपने कब्जे में ले लिया, जहां पर वो वर्ष 1962 की लड़ाई के बाद से नहीं गई थी. इसका असर अब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तक दिखाई दे रहा है। नई खबर ये है कि भारतीय सेना की कार्रवाई के बाद शी जिनपिंग चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी PLA से नाराज हैं. मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि पैंगोंग झील के पास चीन के एक कमांडर ने भारत का मुकाबला करने के बदले अपनी सेनाएं पीछे कर ली थीं और इसी बात से शी जिनपिंग बेहद नाराज हैं. कुल मिलाकर इसी वर्ष जून में गलवान घाटी के बाद चीन को पेंगोंग घाटी में दूसरा सबक मिला. चीन में लोकतंत्र नहीं है, वहां कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है और ऐसी घटनाओं के बाद चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ नेगेटिव माहौल बन सकता है. जिससे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए नई मुश्किलें शुरू हो सकती हैं.


भारत की रणनीति में बड़े बदलाव का इशारा
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के कंपनी लीडर न्यिमा तेनजिन को इस तरह पूरे सैनिक सम्मान के साथ विदा करना कोई सामान्य घटना नहीं है. ये चीन को लेकर भारत की रणनीति में बड़े बदलाव का इशारा भी है. हम आपको बताते हैं वो 5 बड़े मैसेज जो इस अंतिम संस्कार में छिपे हैं.


- ये चीन के खिलाफ भारत की रणनीति में एक बड़ा बदलाव है. भारतीय सेना ने कभी खुलकर यह नहीं दिखाया कि वो स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की कोई सहायता ले रही है.


- भारतीय सेना ने दूसरा सबसे बड़ा मैसेज दिया है स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को लद्दाख में बड़ी भूमिका में भी लाया जा सकता है. ये लोग इस पहाड़ी इलाके के चप्पे-चप्पे से वाकिफ होते हैं. ऐसे में चीन की सेना हमेशा दबाव में रहेगी.


- अब तिब्बत की आजादी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन के आसार हैं. तिब्बत के शरणार्थियों की आवाज अबतक सामने नहीं आती थी. भारत के समर्थन के बाद दूसरे देश भी तिब्बत मसले को अपना समर्थन दे सकते हैं. 


- तिब्बत पर वर्ष 1950 में चीन ने कब्जा किया था. 70 वर्षों के बाद पहली बार तिब्बत के लोगों को उनका देश आजाद होने की संभावना दिखाई दी है. भारत के इस सम्मान के बाद तिब्बत के शरणार्थियों से हमारे रिश्ते और मजबूत होंगे.


अब तक भारत ने चीन पर दबाव बनाने वाले मुद्दे कभी नहीं उठाए थे. अब संभावना है कि भारत ताइवान के मुद्दे पर भी अपना पक्ष स्पष्ट कर दे.


तिब्बती शरणार्थी भारत की कूटनीति का नया चैप्टर 
चीन से तनाव के बीच तिब्बती शरणार्थी भारत की कूटनीति का नया चैप्टर साबित हो सकते हैं. ये वही कूटनीति है जिसकी सीख ईसा से लगभग 300 साल यानी लगभग 2300 साल पहले चाणक्य ने दी थी. चाणक्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री थे. किसी भी देश की कूटनीति यानी Diplomacy और अर्थनीति यानी Economic Policy क्या होनी चाहिए, इस बारे में चाणक्य ने जो कुछ लिखा था वो आज भी पूरी तरह लागू होता है. कूटनीति पर चाणक्य के विचारों को राज मंडल सिद्धांत कहा जाता है.


- राज मंडल सिद्धांत के अनुसार- अगर आपका पड़ोसी आपका शत्रु है तो फिर अपने पड़ोसी के पड़ोसी को मित्र बना लेना चाहिए. तिब्बत के लोगों के साथ भारत के सहयोग को इसी कैटेगरी में रखा जा सकता है.


- अगर भारत के हिसाब से देखें तो चीन और पाकिस्तान हमारे शत्रु हैं. फिलहाल नेपाल भी उनके साथ है.


- ऐसे में भारत ने चीन के पड़ोसी देशों को अपना मित्र बना लिया. ये देश हैं- जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम और मंगोलिया. इन सभी देशों के चीन से अच्छे रिश्ते नहीं हैं.


- यही रणनीति पाकिस्तान के लिए भी अपनाई गई है. पाकिस्तान के पड़ोसी अफगानिस्तान और ईरान के भारत से रिश्ते बहुत मजबूत हैं.


- इतना ही नहीं पाकिस्तान के ठीक उत्तर में बसे देश ताजिकिस्तान में भारतीय वायुसेना के दो एयरबेस भी हैं.


- चाणक्य का कहना था कि शत्रु मजबूत हो तब राजा को अपने मित्रों की संख्या बढ़ानी चाहिए, इससे शत्रु पर नियंत्रण रखा जा सकता है. यही कारण है कि भारत तमाम उकसावे के बाद भी नेपाल से मित्रता की कोशिश जारी रखता है.


- राज मंडल सिद्धांत के अनुसार एक बार जब शक्ति संतुलन बन जाए तो उसके बाद ही पड़ोसी शत्रु देश से संधि पर विचार करना चाहिए. वरना कोई भी समझौता बराबरी का नहीं होता और मजबूत देश अपनी शर्तें थोप देता है. भारत चीन के मामले में इस समय ऐसा ही शक्ति संतुलन देखा जा रहा है.


- चाणक्य ने ऐसे देशों का भी जिक्र किया है, जो न दोस्त होते हैं और न दुश्मन. इन्हें 'मध्यम' या 'उदासीन' कहा गया है. भारत के दृष्टिकोण से श्रीलंका और मालदीव को इस कैटेगरी में डाला जा सकता है. चाणक्य के अनुसार ऐसे देशों से संबंध सुधारने के प्रयास हमेशा करते रहना चाहिए.


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