DNA with Sudhir Chaudhary: इतिहास और राजनीति शास्त्र की किताबों से जब कांग्रेस के लिखवाए हुए पन्ने हटाए जा रहे हैं तो कांग्रेस को कष्ट होना स्वाभाविक है. सीबीएसई के इन बदलावों पर कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने एक ट्वीट किया. राहुल गांधी नेहरू-गांधी खानदान की पांचवी पीढ़ी हैं. पोस्ट की पहली ही लाइन में राहुल गांधी ने सीबीएसई के इन बदलावों को आरएसएस का एजेंडा बता दिया. उन्होंने अपना गुस्सा आरएसएस का नाम बिगाड़कर प्रकट किया और उसे नया नाम दिया-'राष्ट्रीय शिक्षा श्रेडर'... SHREDDER  एक मशीन होती है जो किसी चीज को बारीक-बारीक काटकर नष्ट कर देती है. दूसरी लाइन में राहुल गांधी ने सीबीएसई यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन का नाम बिगाड़ा और इसे नया नाम दिया- Central Board of Suppressing Education.... इसके बाद उन्होंने उन 6 टॉपिक के नाम लिखे जिन्हें किताबों से हटाए जाने पर उन्हें भारी तकलीफ पहुंची है.


राहुल गांधी के दुख का पहला कारण?


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राहुल गांधी के दुख का पहला कारण जो दिखता है वो ये हो सकता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू का चैप्टर क्यों हटाया? तो यहां हम उनका थोड़ा ज्ञानवर्धन करेंगे कि 12 वीं क्लास की पॉलिटिकल साइंस की किताब के पार्ट 2 से Challenges of Nation Building को सीबीएसई (CBSE) ने नहीं हटाया है. ये किताब में पहला चैप्टर है, जिसमे पंडित जवाहरलाल नेहरू की देश निर्माण के बारे में बताया गया है. सीबीएसई ने सिर्फ उन्हीं चैप्टर को हटाया है, जिसमें या तो गलत ऐतिहासिक तथ्य थे या ऐसे चैप्टर जो आज के दौर में पॉलिटिकल साइंस में महत्व नहीं रखते.


राहुल गांधी की दूसरी नाराजगी?


राहुल गांधी की दूसरी नाराजगी फैज अहमद फैज की दो नज्मों को लेकर दिखती है. दरअसल देश में एक विशेष प्रकार का बुद्धिजीवी वर्ग है, जो किसी कवि और शायर को भी धार्मिक चश्मे से देखता है. इतिहास में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की भी कविताएं शामिल की जा सकती थीं. फैज और दिनकर दोनों लगभग एक ही समय के शायर और कवि हैं. रामधारी सिंह दिनकर भी ओजपूर्ण और क्रांतिकारी कविताएं लिखा करते थे और सत्ता के विरोध में तो वो खुलकर लिखते थे.


दिनकर ने ही लिखा था-


सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है.


ये कविता देश में इमरजेंसी लागू किए जाने के बाद इंदिरा गांधी के विरोध में लिखी गई थी. एक ये भी वजह हो सकती है कि कांग्रेस को रामधारी सिंह दिनकर की बजाए फैज अहमद फैज ज्यादा सूट करते हैं.



किताबों में कई चीजों को जोड़ा भी गया


किताबों में कुछ हटाया गया है तो कई नई चीजों को जोड़ा भी गया है. 12 वीं की इतिहास की किताब में 2 नए चैप्टर जोड़े गए हैं. एक चैप्टर है- Through the eyes of traveller. जिसमें भारत आने वाले यात्रियों के संस्मरण बताए गए हैं. दूसरा चैप्टर जोड़ा गया है -Peasents, Zamindars and State. जिसमें 16वीं-17वीं शाताब्दी में यानी मुगलों के साम्राज्य में भारत के कृषि आधारित समाज कैसा था, ये बताया गया है.


इसी तरह 12वीं की राजनीति विज्ञान की किताब में 3 चैप्टर जोड़े गए हैं.  पहला- Security in Contemporary World. जिसमे बच्चों को आतंकवाद का मतलब और उसके प्रकार पढ़ाए जाएंगे. दूसरा  Environment and Natural Resources. जिसमें बच्चों को ग्लोबल वार्मिंग, climate change और Natural Resources यानी प्राकृतिक संसाधनों को कैसे बचाया जा सकता है, इसके बारे में बताया जाएगा. वहीं तीसरा चैप्टर Regional Aspiration नाम से जोड़ा गया है. इसमें भारत में क्षेत्रीय पार्टियों का उदय, पंजाब और कश्मीर में अलगाववाद की समस्या के बारे में बताया गया है.


अपडेट और अपग्रेड होता है इतिहास


किसी भी देश का इतिहास खुद को अपडेट और अपग्रेड करता रहता है. उसमें पुराने पन्ने हटाता है और उपलब्धियों के नए पन्ने जोड़ता रहता है. अपने सच्चे नायकों को नई पीढ़ी के सामने रखता है, लेकिन हमारे देश में आजादी के बाद 70 साल में हमारे बच्चों को स्कूलों में, कॉलेजों में जो पढ़ाया गया वो गलत इतिहास था. उसमें गलतियों की भरमार थी. ये गलतियां भी कोई अनजाने में हुई नहीं थीं. इतिहास में जान-बूझकर वो लिखा गया जो एक खास तरह की विचारधारा को सूट करता था और खास तरह के वोट बैंक को लुभाने वाला था.


इस इतिहास में अल्पसंख्यकों को इस तरह से जगह दी गई, जिसमें तुष्टिकरण साफ झलकता है. एक तरह का इको सिस्टम बनाया गया, जिसमें मुगलों का महिमामंडन किया जाता था. इस तरह बताया जाता था कि अगर ये देश आज कुछ है तो मुगलों की ही बदौलत है और इसके बाद अगर किसी ने कुछ अच्छा किया है तो वो एक परिवार ने किया है. ये बताया जाता था कि नेहरू-गांधी परिवार की नीतियां कितनी अच्छी थीं और भारत ने जो कुछ हासिल किया है वो उन्हीं की नीतियों से किया है.


ऐसे भी हुआ इतिहास को ट्विस्ट देने का काम


और इतिहास को TWIST देने का काम सिर्फ किताबों के जरिए ही नहीं हुआ. किताबों के बाहर भी बच्चों के दिमाग में ये बातें बिठाई गईं. जैसे पिकनिक के नाम पर उन्हें कभी लाल किला, कभी हुमायूं का मकबरा और कभी कुतब मीनार ले जाना. या फिर एक परिवार विशेष के म्यूजियम और उन्हीं की समाधियों पर ले जाना. ये भी एक तरीका रहा है. कभी शांति वन तो कभी शक्ति स्थल और कभी वीर भूमि.


मिलावटी इतिहास दिमाग में बिठाने की कोशिश


एक तरह का मिलावटी इतिहास लोगों के दिमाग में बिठाने की कोशिश की गई, जिसमें आपको या तो सिर्फ मुगल दिखाई देंगे या फिर नेहरू-गांधी परिवार. आप सड़क से गुजरें, किसी अस्पताल जाएं, किसी पार्क में टहलें या फिर एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन जाएं. हर तरफ आपको या तो मुगल दिखाई देंगे या फिर एक परिवार नजर आएंगे.


मुगल शासकों के नाम पर इतने नाम


देश में इस समय 700 से ज्यादा जिलों, कस्बों और गांवों के नाम मुगल शासकों के नाम पर हैं. इनमें 61 जगहों के नाम पहले मुगल शासक जहीरुद्दीन मोहम्मद उर्फ बाबर के नाम पर हैं. दूसरे मुगल शासक हुमायूं के नाम पर 11 जगह हैं. दिल्ली में हुमायूंपुर नाम की जगह, देश की संसद से सिर्फ 8 किलोमीटर दूर है. अकबर के नाम पर सबसे ज्यादा 251 जगहों के नाम हैं. वहीं जहांगीर के नाम पर 141 जगहों के और शाहजहां के नाम पर हमारे देश में 63 जगहों के नाम है. औरंगजेब ने ही काशी और मथुरा में मंदिर तुड़वा कर मस्जिदें बनवाई थीं और हिंदुओं पर जजिया कर लगाया था, लेकिन उसके नाम पर 177 जगह हैं.


गांधी-नेहरू परिवार के नाम ये चीजें


हमारे देश में लोगों को उतना ही इतिहास बताया गया, जितना नेताओं ने जरूरी समझा. मुगलों को समर्पित करने के बाद जो इतिहास बचा उसे गांधी-नेहरू परिवार ने अपने नाम करने की कोशिश की. वर्ष 2012 में एक RTI के माध्यम से पता चला था कि देश की ज्यादातर संपत्तियों पर अब भी गांधी और नेहरू परिवार का लेबल लगा हुआ है. वर्ष 2012 में  नेहरू गांधी परिवार के नाम पर देश में 52 सरकारी राज्य योजनाएं, 27 केंद्रीय योजनाएं, 28 स्पोर्ट्स टूर्नामेंट, 19 स्टेडियम, 98 शिक्षा संस्थान, 5 एयरपोर्ट और बंदरगाह, 39 हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज और 74 सड़कें और बिल्डिंग थीं.


कांग्रेस ने अपनी मनमर्जी का इतिहास लिखवाया?


आपको ये भी जानना चाहिए कि कांग्रेस ने अपनी मनमर्जी का इतिहास लिखवाने के लिए क्या-क्या नहीं किया. इसे आप एनसीईआरटी  (NCERT) के पूर्व निदेशक प्रोफेसर जे एस राजपूत की आपबीती से समझ सकते हैं. प्रोफेसर जेएस राजपूत वर्ष 1999 से वर्ष 2004 तक एनसीईआरटी के निदेशक थे. तब उन्होंने एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तकों के गलत अध्यायों को सुधारने की सिफारिश की थी. उन्होंने इस विषय पर काम भी किया और इतिहास की किताब से ऐसे 9 पैराग्राफ हटवाए थे जो सिख धर्म के गुरु 'गुरु नानकदेव जी' के बारे में गलत जानकारी देते थे. प्रोफेसर राजपूत ये भी चाहते थे कि इन किताबों में मुगलों का महिमामंडन करने वाले और अकबर को महान बताने वाले अध्यायों को हटाकर मुगलों की क्रूरता के इतिहास को पढ़ाया जाए. जो वास्तविकता अब तक छिपाई गई है, उसे भी विद्यार्थियों के सामने लाया जाए, लेकिन इतिहास को सुधारने की इस कोशिश का प्रोफेसर जे एस राजपूत को क्या इनाम मिला, वो आपको आश्चर्य में डाल देगा.


वर्ष 2004 में कांग्रेस सरकार ने प्रोफेसर राजपूत पर शिक्षा के भगवाकरण का आरोप लगा दिया. इतिहास में बदलाव की उनकी कोशिश को संविधान के मूल्यों से छेड़छाड़ का नाम दिया गया. तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने प्रोफेसर जे एस राजपूत के खिलाफ एक जांच भी बिठा दी. अर्जुन सिंह ने UNESCO को पत्र लिखकर शिक्षा के क्षेत्र में मिलने वाला उनका अवॉर्ड रुकवा दिया. लेकिन वर्ष 2009 में जब प्रोफेसर जे एस राजपूत इस जांच में बरी हुए. शिक्षा के भगवाकरण और संवैधानिक मूल्यों से छेड़छाड़ से आरोप गलत साबित हुए. उसके बाद जाकर UNESCO का अवार्ड मिल पाया.


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