दिल्ली: नवरात्र में दुर्गा सप्तशती के पाठ से हर इच्छा पूरी हो सकती है। बशर्ते आप कुछ बातों का ध्यान रखें।4 वेद की तरह ''सप्तशती'' भी अनादि ग्रंथ है। श्रीवेद व्यास के मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा सप्तशती का अध्याय है। 700 श्लोक वाली दुर्गा सप्तशती के 3 भाग में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती नाम से 3 चरित्र हैं। प्रथम चरित्र में केवल पहला अध्याय, मध्यम चरित्र में दूसरा, तीसरा और चौथा अध्याय और बाकी सभी अध्याय उत्तम चरित्र में रखे गये हैं।


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दुर्गा सप्तशती के 3 चरित्र के मंत्र 
प्रथम चरित्र में महाकाली का बीजाक्षर रूप ऊँ 'एं है। मध्यम चरित्र (महालक्ष्मी) का बीजाक्षर रूप 'हृी' और तीसरे उत्तम चरित्र महासरस्वती का बीजाक्षर रूप 'क्लीं' है। तीनों बीजाक्षर ऐं ह्रीं क्लीं किसी भी तंत्र साधना के लिये ज़रूरी हैं। सप्तशती में मारण के नब्बे, मोहन के नब्बे, उच्चाटन के दो सौ, स्तंभन के दो सौ और वशीकरण और विद्वेषण के साठ प्रयोग हैं। 


 दुर्गा सप्तशती पाठ में रखें 20 बातों का ध्यान
-पहले, गणेश पूजन, कलश पूजन,,नवग्रह पूजन और ज्योति पूजन करें।
-श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक शुद्ध आसन पर लाल कपड़ा बिछाकर रखें।
-माथे पर भस्म, चंदन या रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिये 4 बार आचमन करें।
-श्री दुर्गा सप्तशति के पाठ में कवच, अर्गला और कीलक के पाठ से पहले शापोद्धार करना ज़रूरी है। 
-दुर्गा सप्तशति का हर मंत्र, ब्रह्मा,वशिष्ठ,विश्वामित्र ने शापित किया है। 
-शापोद्धार के बिना, पाठ का फल नहीं मिलता।
-एक दिन में पूरा पाठ न कर सकें, तो एक दिन केवल मध्यम चरित्र का और दूसरे दिन शेष 2 चरित्र का पाठ करे।
-दूसरा विकल्प यह है कि एक दिन में अगर पाठ न हो सके, तो एक, दो, एक चार, दो एक और दो अध्यायों को क्रम से  सात दिन में पूरा करें।
-श्रीदुर्गा सप्तशती में श्रीदेव्यथर्वशीर्षम स्रोत का नित्य पाठ करने से वाक सिद्धि और मृत्यु पर विजय।
-श्रीदुर्गा सप्तशती के पाठ से पहले और बाद में नवारण मंत्र ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे का पाठ करना अनिवार्य है।
-संस्कृत में श्रीदुर्गा सप्तशती न पढ़ पायें तो हिंदी में करें पाठ।
-श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ स्पष्ट उच्चारण में करें लेकिन जो़र से न पढ़ें और उतावले न हों।
-पाठ नित्य के बाद कन्या पूजन करना अनिवार्य है।
-श्रीदुर्गा सप्तशति का पाठ में कवच, अर्गला, कीलक और तीन रहस्यों को भी सम्मिलत करना चाहिये। दुर्गा सप्तशति के -  पाठ के बाद क्षमा प्रार्थना ज़रुर करना चाहिये
-श्रीदुर्गा सप्तशती के प्रथम,मध्यम और उत्तर चरित्र का क्रम से पाठ करने से, सभी मनोकामना पूरी होती है। इसे महाविद्या  क्रम कहते हैं।
-दुर्गा सप्तशती के उत्तर,प्रथम और मध्य चरित्र के क्रमानुसार पाठ करने से, शत्रुनाश और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इसे  महातंत्री क्रम कहते हैं।
-देवी पुराण में प्रातकाल पूजन और प्रात में विसर्जन करने को कहा गया है। रात्रि में घट स्थापना वर्जित है।