फिर अचानक अपने गांव चले गए शिंदे... पिछली बार प्रेशर पॉलिटिक्स थी, इस बार आखिर क्या हुआ?
Eknath Shinde: एकनाथ शिंदे का अचानक गांव जाना ऐसे समय हुआ है जब राज्य में प्रभारी मंत्रियों के पदों को लेकर खींचतान तेज है. बीजेपी शिवसेना और एनसीपी के बीच इन पदों पर अपने नेताओं को बिठाने की होड़ मची है.
Maharashtra Pressure politics: एकनाथ शिंदे फिर खबरों में हैं और इन खबरों से महाराष्ट्र की राजनीति में रोमांच हर दिन बढ़ता जा रहा है. डिप्टी सीएम बने एकनाथ शिंदे के अपने पैतृक गांव जाने की खबर ने राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज कर दी है. शिंदे का तीन दिनों के दौरे पर सतारा जिले के दरेगांव जाना कई सवाल खड़े कर रहा है. यह वही गांव है जहां सरकार गठन से पहले भी वह ठहरे थे. उस समय कहा गया था कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है, लेकिन अटकलें थीं कि वह बीजेपी नेतृत्व पर दबाव बना रहे थे. अब एक बार फिर ऐसा लग रहा है कि शिंदे अपनी नाराजगी जताने के लिए यह कदम उठा रहे हैं.
क्या नाराज हैं शिंदे?
असल में एकनाथ शिंदे का अचानक गांव जाना ऐसे समय हुआ है जब राज्य में प्रभारी मंत्रियों के पदों को लेकर खींचतान तेज है. बीजेपी शिवसेना और एनसीपी के बीच इन पदों पर अपने नेताओं को बिठाने की होड़ मची है. खासतौर पर ठाणे जिले को लेकर शिंदे गुट और बीजेपी आमने-सामने हैं. बीजेपी नेता गणेश नाइक को ठाणे का प्रभारी मंत्री बनाना चाहती है, जबकि शिंदे इसे अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं. इससे पहले भी शिंदे इसी तरह बीजेपी के फैसलों पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बनाते रहे हैं.
शिंदे का गांव दौरा क्या संदेश दे रहा है?
डिप्टी सीएम बनने के बाद पहली बार अपने गांव पहुंचे शिंदे का यह दौरा विश्राम के नाम पर किया जा रहा है. हालांकि एक्सपर्ट्स का साफ मानना है कि यह दौरा केवल विश्राम तक सीमित नहीं है. सोमवार को जब अजित पवार मंत्रालय में कामकाज संभालने वाले हैं, शिंदे का गांव में मौजूद होना यह संकेत देता है कि वह अपने गढ़ और समर्थकों के जरिए अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. सार्वजनिक तौर पर वह भले ही तनाव न होने की बात कहें, लेकिन उनके इस कदम से बीजेपी और अन्य दलों को संदेश देने की कोशिश की जा रही है.
प्रभारी मंत्री पदों को लेकर खींचतान
महाराष्ट्र के 42 मंत्रियों में से ज्यादातर नेता प्रभारी मंत्री पद चाहते हैं. खासतौर पर उन जिलों का, जहां उनका राजनीतिक प्रभाव है. इसका कारण है कि प्रभारी मंत्री को जिले की योजना और विकास परिषद के फंड का नियंत्रण मिलता है. ठाणे, रायगढ़, और संभाजीनगर जैसे जिलों में इन पदों को लेकर सबसे ज्यादा संघर्ष हो रहा है. रायगढ़ में शिवसेना नेता भरत गोगावाले और एनसीपी नेता अदिति तटकरे के बीच विवाद है. वहीं, संभाजीनगर में शिवसेना के संजय शिरसाट और बीजेपी के अतुल सावे आमने-सामने हैं.
क्या शिंदे और फडणवीस के बीच है टकराव?
ठाणे जिले को शिंदे का गढ़ माना जाता है. यहां बीजेपी का प्रभारी मंत्री बनना शिंदे गुट के लिए बड़ा झटका हो सकता है. यही वजह है कि शिंदे इस मुद्दे पर दबाव बना रहे हैं. ऐसे मामलों में बीजेपी के साथ उनकी खींचतान कोई नई बात नहीं है. पहले भी मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर शिंदे ने इसी तरह अप्रत्यक्ष रूप से अपनी नाराजगी जाहिर की थी.
सुलझेगा विवाद?
फिलहाल यह तय है कि प्रभारी मंत्रियों को लेकर खींचतान ने महाराष्ट्र की सरकार में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. तीनों दल अपने नेताओं को हाईप्रोफाइल जिलों में प्रभारी मंत्री बनाना चाहते हैं, जिससे यह संघर्ष और भी बढ़ सकता है. शिंदे का गांव जाना और फडणवीस-अजित पवार के बीच बढ़ती नजदीकियां यह संकेत देती हैं कि सरकार के भीतर टकराव बढ़ सकता है. अब देखना यह है कि यह विवाद कब और कैसे सुलझता है.