Political Funding: सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना को कल सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया है, हालांकि राजनीतिक फंडिंग को लेकर कानून में संशोधन पर निर्वाचन आयोग ने चार साल पहले ही चिंता जताई थी. जी हां, चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को सुविधाजनक बनाने के लिए राजनीतिक फंडिंग से जुड़े कई कानूनों में बदलाव पर 2019 में ही सुप्रीम कोर्ट में चिंता जताई थी. तब आयोग ने कहा था कि पारदर्शिता पर इसका गंभीर असर होगा. फैसले के बाद निर्वाचन आयोग के सूत्र ने कहा कि आयोग की पहचान पारदर्शिता रही है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

2017 से ही खिलाफ में चुनाव आयोग


ET की रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव आयोग 2017 से ही इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का विरोध करता आ रहा है. जब नसीम जैदी मुख्य चुनाव आयुक्त थे, तब 2017 में ही निर्वाचन आयोग पहली सरकारी संस्था थी जिसने इस पर लाल झंडी दिखाई थी. तब स्कीम को लॉन्च करने के लिए इनकम टैक्स एक्ट, द कंपनीज एक्ट 2013 और रिप्रजेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट 1951 में संशोधन किए गए थे. इसी के विरोध में ECI ने लॉ मिनिस्ट्री को तीन पेज का लेटर लिखा था. 26 मई 2017 को आयोग ने विधि मंत्रालय से कहा था कि आयकर अधिनियम, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम और वित्त अधिनियम में किए गए बदलाव राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता के प्रयास के खिलाफ होंगे. 


विदेशी फंडिंग पर चिंता


दरअसल, 27 मार्च 2019 को हलफनामा दाखिल कर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि इस मुद्दे पर उसने केंद्र सरकार को भी लिखा है. आयोग ने कहा था कि विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) 2010 में बदलाव से राजनीतिक दलों को अनियंत्रित रूप से विदेशी फंडिंग की अनुमति मिलेगी, जिससे भारतीय नीतियां विदेशी कंपनियों से प्रभावित हो सकती हैं.


निर्वाचन आयोग के हलफनामे के लगभग एक हफ्ते बाद केंद्र सरकार ने 3 अप्रैल 2019 को शीर्ष अदालत में नया हलफनामा दायर किया. इसमें केंद्र ने आयोग की चिंताओं का विरोध किया और कानूनों में किए गए बदलावों को जायज बताया. 


पूर्व CEC बोले, फैसला सही है


पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा है कि यह स्वच्छ लोकतंत्र के हित में है. चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता के लिए सही नहीं है. आप कैसे जानेंगे कि यह पैसा सही है? कल सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चुनावी बॉन्ड स्कीम फूल प्रूफ नहीं है. इसमें पर्याप्त खामियां हैं. जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र को जानने का अधिकार सर्वोपरि है. 


उधर, याचिकाकर्ता जया ठाकुर ने फैसले पर कहा कि जो लोग चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा दे रहे थे और अपना नाम नहीं बता रहे थे. कहीं न कहीं वे सरकार से मेहरबानी चाहते थे. लोकतंत्र के लिए ऐतिहासिक फैसला है. शरद पवार ने भाजपा पर निशाना साधा. उन्होंने कहा गुमनाम दानदाताओं से भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए चुनावी बॉन्ड को व्यवहार में लाया गया था. 


हालांकि TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चुनाव आयोग के भीतर अब इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही है कि चुनावी साल में चुनाव प्रचार के लिए बेहिसाब नकदी या कहें कि अस्पष्ट कैश डोनेशन लेने का दौर शुरू हो सकता है. (फोटो- lexica AI)