EXCLUSIVE: अब `शेरनी` ने पकड़ी जंगल में जंग की जिद, CRPF के `शेर` का नक्सलियों से लेगी बदला!
अपने पति के साथ हुए जुल्मों का बदला लेने के लिए CRPF के कोबरा कमांडो रामदास की पत्नी नक्सलियों से जंग लड़ने के लिए छत्तीसगढ़ के जंगलों में उतरना चाहती है.
अनूप कुमार मिश्र, नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के किस्टाराम और पलोड़ी के जंगल नक्सलियों के गढ़ के रूप में कुख्यात हैं. इन जंगलों का नाम सुनकर अच्छे-अच्छे सूरमाओं के माथे पर न केवल पसीना आ जाता है, बल्कि हिम्मत जवाब देने लगती है. इस इलाके में रहने वाला हर शख्स इसी खौफ में हर पल काटता है कि कब उसका सामना 'मौत' से हो जाए. इस सब के बावजूद, इन दिनों एक 'शेरनी' ऐसी भी है जिसने इस कुख्यात जंगल में जाने की न केवल जिद पकड़ी हुई है, बल्कि वह इन जंगलों को कुख्यात बनाने वाले नक्सलियों से जंग भी लड़ना चाहती है. यह 'शेरनी' कोई और नहीं, बल्कि CRPF की 208 वीं बटालियन के 'शेर' कोबरा कमांडो रामदास भाऊ की पत्नी रेणुका है.
रेणुका ने यह जिद अपने पति रामदास भाऊ के साथ छह महीने पहले हुए दुखद हादसे की वजह से पकड़ी है. दरअसल, रेणुका के पति कमांडो रामदास ने अपनी बाज सी निगाह, चीते सी फुर्ती और अचूक निशाने की बदौलत CRPF की कोबरा टीम में अलग पहचान बना ली थी. करीब छह माह पहले, 29 नवंबर 2017 को कोबरा कमांडो रामदास के दोनों पैर जंगल में हुए एक लैंड माइन ब्लास्ट में बुरी तरह से जख्मी हो गए थे. रायपुर के श्रीनारायण हॉस्पिटल में ऑपरेशन के दौरान कमांडो रामदास के दोनों पैरों को काट दिया गया था.
छह महीने पहले हुए इस लैंडमाइन ब्लास्ट ने भले ही कोबरा कमांडो रामदास से उसकी दोनों टांगों को छीन लिया हो, लेकिन अपने दृढ़संकल्प और कड़ी मेहनत की बदौलत वह एक बार फिर अपने पैरों (कृत्रिम) पर खड़ा होने में कामयाब हो गया. CRPF का यह घायल शेर जल्द ही जंगल में वापसी करने वाला है. जंगल में वापसी के बाद वह खुद से बेहतर सैकड़ों शेरों को तैयार करने के मिशन में जुट जाएगा. CRPF के नए शेरों को वह हर दांव पेंच सिखाएगा, जिनकी मदद से वह लगातार नक्सलियों को मात देता आया है.
CRPF के शेर की कहानी का रोमांच यहीं पर खत्म नहीं होता है. कोबरा कमांडो रामदास की तरह उनकी पत्नी रेणुका भी बेहद मजबूत इरादे वाली महिला है. नक्सलियों द्वारा रची गई साजिश में पति के पैर गंवाने की खबर मिलने के साथ रेणुका ने यह ठान लिया था कि वह अब खुद किस्तराम और पलोड़ी के जंगलों में जंग के लिए उतरेगी. उसे अपने मकसद को हासिल करने के लिए भले ही अनगिनत चुनौतियों का सामना करना पडे़, लेकिन वह तब तक जंगल से वापस नहीं आएगी, जब तक वह अपने अपने पति के दो पैरों की आहूति लेने वाले नक्सलियों का सिर धड़ से अलग नहीं कर देती.
कोबरा कमांडो रामदास की पूरी कहानी जानने के लिए पढ़िए: बिना टांगों के नक्सलियों के गढ़ में कोहराम मचाने के लिए फिर तैयार हुआ CRPF का 'शेर'
रेणुका की आगे की कहानी उसके पति कमांडो रामदास की जुबानी
महाराष्ट्र के पालघर जिले में मेरा छोटा सा गांव है बड़ोली. गांव में मेरी बूढ़ी हो चली मां और उसकी देखभाल करने के लिए मेरी पत्नी रेणुका उनके साथ ही रहती है. रेणुका पेशे से सरकारी विद्यालय में अध्यापिका है. चूंकि मैं CRPF में हूं, लिहाजा मेरे परिजन CRPF के हर जवान की उतनी ही चिंता करते हैं, जितनी चिंता उन्हें मेरी है. फरवरी 2016 से पहले तक मेरी तैनाती जम्मू-कश्मीर में थी, लेकिन मेरे घर में अक्सर चर्चा का केंद्र छत्तीगढ़ में बढ़ती नक्सल गतिविधियों की ही रहती थी. अक्सर छत्तीसगढ़ से दिल को दहला देने वाली कोई न कोई खबर आती ही रहती थी. इसी बीच मेरे घर वालों को पता चला कि 20 फरवरी 2016 को उसे छत्तीसगढ़ में CRPF की 208 कोबरा बटालियन ज्वाइन करना है. इस खबर ने मेरे सभी परिचितों को परेशानी में डाल दिया था, लेकिन उस वक्त मेरी पत्नी ही अकेली ऐसी थी जिसने छत्तीसगढ़ में जाने के लिए भावनात्मक मजबूती दी थी.
छत्तीसगढ़ में 21 महीनों तक सबकुछ ठीक चला. तभी 29 नवंबर को मैं नक्सलियों के बिछाए जाल में फंस गया. एक लैंडमाइन ब्लास्ट की चपेट में आने के चलते मुझे अपनी दोनों टांगों को गंवाना पड़ा. मेरे परिजनों के लिए यह खबर एक वज्रपात से कम नहीं थी. मेरी पत्नी और मां गांव में सबकुछ छोड़कर मेरे पास रायपुर आ गए. जब तक मेरा इलाज चला, तब तक सभी बेसुध होकर मेरी सेवा में लगे रहे. कुछ ही महीनों में मैं ठीक हो गया. अब मैं अपने परिवार के साथ रायपुर स्थित बटालियन हेडक्वाटर्स में रह रहा था. मैंने महसूस किया कि मेरी पत्नी रेणुका जब भी मेरे पास होती थी, वह मुझ पर हुए हमले और नक्सलियों से जुड़ी बाते ही करती थी. मेरा मानना था कि मेरे साथ हुए हादसे के बारे में जब-जब मेरे परिजन सुनेंगे, उन्हें मानसिक पीड़ा होगी. लिहाजा मैं अपने साथ हुए हादसे का जिक्र घर में नहीं करता था. लेकिन मैंने महसूस किया कि रेणुका के पास बात करने के लिए कोई दूसरा विषय ही नहीं था. तब तक मैंने उसके दिल और दिमाग में चल रही बातों को पढ़ नहीं पाया था.
एक दिन अचानक रेणुका मेरी वर्दी पहनकर मेरे सामने आ खड़ी हुई. मुझसे मराठी में बोली ' मी कशी दिसते (मैं कैसी लग रही हूं).' मुझे लगा हर महिला की तरह रेणुका भी मेरी वर्दी में नए लुक के बारे में जानना चाहती है. मैंने हर पति की तरह सामान्य सा जवाब मराठी भाषा में दिया, 'ह्या ड्रेस मधे अगदी कमांडो दिसतेस (इस ड्रेस में बिल्कुल कमांडो दिख रही हो)' . जिसके बाद, वह बेहद धीमी आवाज में बोली, मुझे भी CRPF में भर्ती होना है. मैंने पूछा, तुम CRPF में क्यों भर्ती होना चाहती हो, उसने जवाब दिया- कुछ भी करो, मुझे CRPF में भर्ती करा दो. मेरा सवाल फिर वही था, आखिर तुम CRPF में भर्ती क्यों होना चाहती हो. उसने बेहद जोश में कहा, मैं भी कमांडो बनूंगी, मैं किस्टाराम और पलोड़ी के जंगलों में जाकर नक्सलियों से लड़ाई लड़ूंगी, मुझे आपके पैर छीनने वाले नक्सलियों से बदला लेना है.
मैंने समझाते हुए कहा, तुम एक अच्छी अध्यापिका हो. तुम बच्चों को अच्छी तालीम देकर मेरे जैसे 100 कमांडो तैयार कर सकती हो. लेकिन वह अपनी जिद से टस से मस नहीं हुई. उसने कहा, नहीं मुझे अब टीचर की नौकरी नहीं करनी, अब मैं भी आपके साथ छत्तीगढ़ की 208 कोबरा बटालियन में रहूंगी, मैं किसी भी कीमत में नक्सलियों से आपका बदला लू्ंगी. मैं आज भी उसे बार-बार समझाने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन वह कमांडो बन नक्सलियों से लड़ने की जिद पर अड़ी हुई है...
(कमांडो रामदास की कहानी अभी जारी है ...)