नई दिल्‍ली: फेसबुक के कथित पक्षपात को लेकर पैदा हुए विवाद के बीच इस सोशल मीडिया मंच के इंडिया हेड अजित मोहन से बुधवार को एक संसदीय समिति ने करीब दो घंटे तक पूछताछ की. सूत्रों के मुताबिक उन्होंने माना कि फेसबुक इंडिया में प्रमुख पदों पर बैठे लोग बीजेपी विरोधी हैं. उन्‍होंने ये भी कहा कि जो उन्होंने दस साल पहले लिखा, उसे वापस ले रहे हैं. उनका हृदय परिवर्तन हो गया है.


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संसदीय समिति की बैठक में सत्तारूढ़ गठबंधन विपक्ष पर भारी पड़ा. सत्‍तापक्ष गठबंधन के पक्ष में 11 और  विपक्ष की तरफ से 6 सदस्य रहे. फेसबुक प्रमुख का क़बूलनामा और समिति में बहुमत न होने से विपक्ष और थरूर को कदम पीछे खींचने पड़े.


सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति सोशल मीडिया मंचों के कथित दुरुपयोग पर चर्चा कर रही है. सूत्रों ने बताया कि फेसबुक के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा संपन्न नहीं हो सकी, 10 सितंबर को फिर से बैठक बुलाने का विचार था, लेकिन इस पर आम सहमति नहीं बन सकी क्योंकि कुछ सदस्यों ने इसका इस आधार पर विरोध किया कि समिति का पुनर्गठन होना है.


समिति ने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और डिजिटल क्षेत्र में महिला सुरक्षा पर विशेष जोर देने सहित सोशल/ऑनलाइन न्यूज मीडिया मंचों के दुरुपयोग की रोकथाम के विषय पर फेसबुक के प्रतिनिधियों के विचार सुनने के लिये उन्हें (फेसबुक के प्रतिनिधियों को) बुलाया था.


समिति ने इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के प्रतिनिधियों को भी इस विषय पर बुलाया था, जबकि कुछ डिजिटल मीडिया कार्यकर्ताओं सहित कुछ अन्य ने भी समिति के समक्ष अपने बयान दर्ज कराये हैं.


क्‍या है मामला
दरअसल शशि थरूर की यह घोषणा की थी कि समिति अमेरिकी समाचार पत्र वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित उस खबर के बारे में फेसबुक का पक्ष सुनना चाहेगी, जिसमें (अमेरिकी अखबार की खबर में) दावा किया गया है कि सोशल मीडिया मंच ने नफरत भरे भाषण से जुड़े अपने नियमों को भाजपा के कुछ नेताओं पर लागू करने की अनदेखी की, जिस पर समिति में सत्तारूढ़ दल (भाजपा) के सदस्यों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी.


भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस नेता (थरूर) अपना और अपनी पार्टी का राजनीतिक एजेंडा आगे बढ़ाने के लिये समिति का इस्तेमाल कर रहे हैं और यहां तक कि उन्होंने (दुबे ने) समिति के अध्यक्ष पद से थरूर को हटाने की भी मांग की थी.


वहीं, इस मुद्दे पर सोमवार को राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप फिर से शुरू हो गया, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दावा किया कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने फेसबुक को ‘‘बेनकाब’’ कर दिया है.


कांग्रेस नेता ने ट्वीट किया, ‘‘किसी को भी हमारे राष्ट्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जा सकती. उनकी अवश्य ही जांच होनी चाहिए और दोषी पाये जाने पर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए.’’


वहीं, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मंगलवार को फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग को तीन पृष्ठों वाला पत्र लिखकर कहा कि फेसबुक के कर्मचारी चुनावों में लगातार हार का सामना करने वाले लोगों तथा प्रधानमंत्री और वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों को ‘‘अभद्र शब्द’’ कहने वालों का समर्थन कर रहे हैं.


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