किसानों के लिए `सुरक्षा कवच` कहे जाने वाले बिल पर क्यों हो रही सियासत?
सड़क से संसद तक किसान बिल पर संग्राम हो रहा है. कुछ किसानों को सरकार का कृषि विधेयक नापसंद है. वो कहते हैं कि सरकार का कृषि विधेयक किसानों के हित में नहीं है. विपक्षी दलों की राय भी यही है और वो सरकार का जबरदस्त विरोध भी कर रहे हैं.
नई दिल्ली: सड़क पर किसान और संसद में नेता तीन विधेयकों को लेकर हाय-तौबा कर रहे हैं. दरअसल, सोमवार को लोक सभा (Lok Sabha) में तीन बिल पेश किए गए. मंगलवार को उनमें से एक बिल पास हो गया और बाकी दो विधेयक गुरुवार (18 सितंबर) को पारित हुए.
सड़क से संसद तक किसान बिल पर संग्राम हो रहा है. कुछ किसानों को सरकार का कृषि विधेयक नापसंद है. वो कहते हैं कि सरकार का कृषि विधेयक किसानों के हित में नहीं है. विपक्षी दलों की राय भी यही है और वो सरकार का जबरदस्त विरोध भी कर रहे हैं. यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री मोदी को आकर कहना पड़ा कि न तो भारतीय खाद्य निगम किसानों से अनाज खरीदना बंद करेगा और न ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बंद होने वाला है. तब भी अकाली दल नाराज है.
अब सोचने वाली बात ये है कि जो अकाली दल ने इन विधेयकों पर भाजपा के साथ था वह आज ऐसे बर्ताव क्यों कर रहा है? यहां तक कि पंजाब में जून में जारी ऑर्डिनेंस का उसने बचाव भी किया था. अब आखिर ऐसा क्या हो गया कि अकाली दल के तेवर ही बदल गए. पार्टी ने न सिर्फ विधेयकों का विरोध किया बल्कि पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल ने तो मोदी कैबिनेट तक से इस्तीफा दे दिया.
विरोध इतना कि हरसिमरत कौर ने मंत्री पद से इस्तीफा ही दे दिया. उन्होंने ट्वीट किया है, 'मैंने केंद्रीय मंत्री पद से किसान विरोधी अध्यादेशों और बिल के खिलाफ इस्तीफा दे दिया है. किसानों की बेटी और बहन के रूप में उनके साथ खड़े होने पर गर्व है.'
इन घटनाक्रमों के बाद सवाल तो ये है कि अगर अकाली दल को इन विधेयकों से इतनी ही दिक्कत थी तो पहले इसका विरोध क्यों नहीं किया गया?
ये हैं वो 3 बिल
पहला बिल है: कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल
दूसरा बिल है: मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण बिल)
तीसरा बिल है: आवश्यक वस्तु संशोधन बिल
नए कानून से क्या बदलेगा
नए विधेयकों के मुताबिक अब व्यापारी मंडी से बाहर भी किसानों की फसल खरीद सकेंगे. पहले फसल की खरीद केवल मंडी में ही होती थी. केंद्र ने अब दाल, आलू, प्याज, अनाज और खाद्य तेल आदि को आवश्यक वस्तु नियम से बाहर कर इसकी स्टॉक सीमा समाप्त कर दी है. इसके अलावा केंद्र ने कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को बढ़ावा देने पर भी काम शुरू किया है.
किसान विधेयकों पर विपक्षी दलों का तर्क है कि ये विधेयक न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली को कमजोर कर देगा और बड़ी कंपनियां किसानों के शोषण के लिए स्वतंत्र हो जाएंगी, जबकि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इन विधेयकों को परिवर्तनकारी और किसानों के हित में बताते हुए कहा कि किसानों के लिए एमएसपी प्रणाली जारी रहेगी.
आखिर अकाली दल क्यों कर रहा विधेयकों का विरोध
इसे समझने के लिए सबसे पहले पंजाब में अकाली दल की स्थिति को समझना जरूरी है. आपको बता दें कि छोटे किसान और खेत के मजदूर पंजाब में अकाली दल के वोटबैंक हैं. जैसा कि सुखबीर सिंह बादल कहते हैं, हर अकाली एक किसान है और हर किसान एक अकाली है.
पिछले चुनावी नतीजों पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि शिरोमणि अकाली दल ने 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों में 117 में से सिर्फ 15 सीटें जीती थीं. जिस पार्टी ने 2007 से 2017 तक लगातार 10 साल राज्य में शासन किया, उस अकाली दल और भाजपा गठबंधन को सिर्फ 15% सीटें मिली. कांग्रेस को 1957 के बाद राज्य में सबसे बड़ी जीत मिली.
क्या ये NDA में फूट की नींव है?
भाजपा का साथ देने वाली पार्टी के बारे में किसी ने नहीं सोचा होगा कि वह इस मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ खड़ी हो जाएगी. इस आंदोलन से अकाली दल को नई ताकत मिल सकती है. अब सवाल उठता है कि क्या हरसिमरत कौर का इस्तीफा किसान बिल के मुद्दे पर NDA में फूट की नींव है? अभी तक इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है कि अकाली दल मोदी सरकार को समर्थन जारी रखेगी या फिर समर्थन वापस लेगी. खैर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान विधेयक पर ट्वीट किया और कहा, 'लोकसभा में ऐतिहासिक कृषि सुधार विधेयकों का पारित होना देश के किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है. ये विधेयक सही मायने में किसानों को बिचौलियों और तमाम अवरोधों से मुक्त करेंगे.'
किसान क्यों कर रहे हैं विरोध
किसान वैसे तो तीनों अध्यादेशों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा आपत्ति उन्हें पहले अध्यादेश के प्रावधानों से है. उनकी समस्या मुख्य रूप से व्यापार क्षेत्र, व्यापारी, विवादों का हल और बाजार शुल्क को लेकर हैं. किसानों ने आशंका जताई है कि जैसे ही ये विधेयक पारित होंगे, इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली को खत्म करने का रास्ता साफ हो जाएगा और किसानों को बड़े पूंजीपतियों की दया पर छोड़ दिया जाएगा.
ये भी देखें-