रसगुल्ले की `जंग` में पश्चिम बंगाल के ये तर्क पड़े भारी, 2 साल बाद मिली ओड़िशा पर जीत
पश्चिम बंगाल ने ओड़िशा से रसगुल्ले की `जंग` आखिरकार जीत ली है. रसगुल्ला को लेकर दोनों ही राज्यों से कई तर्क दिए थे.
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल ने ओड़िशा से रसगुल्ले की 'जंग' आखिरकार जीत ली है. रसगुल्ला को लेकर दोनों ही राज्यों से कई तर्क दिए थे. जीआई टैग का निर्धारण करने वाली चेन्नई स्थित कमेटी ने पश्चिम बंगाल के तर्कों को सही माना और ‘बांगलार रॉसोगोल्ला’ को विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र के उत्पाद का प्रमाण पत्र सौंप दिया गया. गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल और पड़ोसी ओड़िशा के बीच जून 2015 से इस बात को लेकर कानूनी लड़ाई चल रही है कि रसगुल्ले का मूल कहां है. इसे लेकर दोनों राज्यों में कमेटी भी बनी थी, जिन्होंने रसगुल्ले का इतिहास खंगालने का काम किया और तर्क पेश किए.
दोनों राज्यों ने रखे थे ये तर्क
रसगुल्ले की लड़ाई में पश्चिम बंगाल और ओड़िशा दोनों की ओर से अपने पक्ष में तर्क पेश किए गए थे.
पश्चिम बंगाल के तर्क- पश्चिम बंगाल का दावा था कि मिठाई बनाने वाले नोबीन चंद्र दास ने सन् 1868 में रसगुल्ला तैयार किया था. उन्होंने बंगाल के मशहूर सोंदेश मिठाई को टक्कर देने के लिए रॉसोगोल्ला बनाया था. इससे जुड़ी एक और कहानी का जिक्र भी बंगाल कि ओर से किया गया. जिसमें बताया कि एक बार सेठ रायबहादुर भगवानदास बागला अपने बेटे के साथ कहीं जा रहे थे. बेटे को प्यास लगने पर वे नोबीन चंद्र दास की दुकान पर रुके और पानी मांगा. नोबीन ने सेठ के बेटे को पानी के साथ ही एक रॉसोगोल्ला भी दिया, जो उसे बेहद पसंद आया, जिस पर सेठ ने एक साथ कई रॉसोगोल्ला खरीद लिए. ये रॉसोगोल्ला के प्रसिद्ध होने का पहला वाकया था.
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ओड़िशा का तर्क- वहीं ओड़िशा ने रसगुल्ले को अपना बताते हुए तर्क दिया था कि मिठाई की उत्पत्ति पुरी के जगन्नाथ मंदिर से हुई है. यह वहां 12वीं सदी से धार्मिक रीति-रिवाज का हिस्सा है. इससे जुड़ी कहानी का जिक्र करते हुए बताया गया, एक बार भगवान जगन्नाथ से रूठकर देवी लक्ष्मी ने घर का दरवाजा बंद कर दिया. उन्हें मनाने के लिए भगवान जग्गनाथ ने खीर मोहन नाम का मीठा देवी को दिया, जो उन्हें पसंद आया. वो खीर मोहन दरअसल रसगुल्ला ही था, जिससे ये साबित होता है कि रसगुल्ला ओड़िशा में ही सबसे पहले बना.
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राज्यों के तर्कों पर कमेटी के जवाब
ओड़िशा के तर्कों पर विचार करने के बाद जीआई टैग का निर्धारण करने वाली चेन्नई स्थित कमेटी के अधिकारियों ने कहा कि खीर मोहन और रसगुल्ले में अंतर है. ये सफेद की जगह पीले रंग का होता है, इसका आकार भी रसगुल्ले से काफी बड़ा है, जिस वजह से इसे रसगुल्ला नहीं माना जा सकता.
पश्चिम बंगाल के दावों को कमेटी ने सही माना. कमेटी की तरफ से कहा गया बंगाल का रसगुल्ला पूरा सफेद और छोटा होता है, जो सही रंग व आकार भी है. ऐसे में रसगुल्ला इसे ही माना जाएगा और बंगाल को रसगुल्ले का जीआई टैग दिया जाएगा.