फिर से खुलेगा राजीव गांधी के समय का बोफोर्स घोटाला! जानिए क्या है करोड़ों रुपये की रिश्वत का मामला
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फिर से खुलेगा राजीव गांधी के समय का बोफोर्स घोटाला! जानिए क्या है करोड़ों रुपये की रिश्वत का मामला

What is Bofors Scandal: 1986 का बोफोर्स घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है. बताया जा रहा है कि इस संबंध में सीबीआई जल्द ही अमेरिका को न्यायिक अपील करेगी और घोटाले से जुड़ी अहम जानकारी सामने लाने की कोशिश करेगी. 

फिर से खुलेगा राजीव गांधी के समय का बोफोर्स घोटाला! जानिए क्या है करोड़ों रुपये की रिश्वत का मामला

What is Bofors Scandal: बोफोर्स का जिन एक बार फिर बोतल बाहर आ सकता है. कहा जा रहा है कि इस मामले में सीबीआई जल्द ही प्राइवेट जासूस माइकल हर्शमैन से जानकारी मांगने के लिए अमेरिका को कानूनी अपील करेगी. इससे पहले हर्शमैन ने 64 करोड़ रुपये के बोफोर्स रिश्वत घोटाले के बारे में भारतीय एजेंसियों के अहम जानकारी शेयर करने की ख्वाहिश जाहिर की थी. 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अफसरों का कहना है कि अमेरिका को न्यायिक अनुरोध भेजने के बारे में स्पेशल कोर्ट बताया गया है. यह अदालत इस केस आगे की जांच के लिए CBI की अर्जी पर सुनवाई कर रही है. लेटर्स रोगेटरी (एलआर) भेजने का अमल इस साल अक्टूबर में शुरू हुआ था. इस प्रक्रिया में लगभग 90 दिन लग सकते हैं. इसका मकसद मामले की जांच के लिए जानकारी हासिल करना है.

क्या है बोफोर्स घोटाला?

बोफोर्स घोटाला भारतीय राजनीति का एक ऐसा काला अध्याय है, जिसने एक समय देश को हिलाकर रख दिया था. यह घोटाला 1980 के दशक में हुआ था और इसने भारतीय राजनीति पर गहरा असर डाला. 1986 में भारत सरकार ने स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स से 155 एमएम की 400 होवित्जर तोपें खरीदने का सौदा किया था. यह सौदा भारतीय सेना को आधुनिक हथियार मुहैया करने के मकसद से किया गया था. हालांकि, कुछ समय बाद यह बात सामने आई कि इस सौदे में भारी पैमाने पर रिश्वतखोरी हुई थी. 

1437 करोड़ की रिश्वत का आरोप

स्वीडिश रेडियो ने 1987 में सबसे पहले इस घोटाले का खुलासा किया था. उनके मुताबिक बोफोर्स कंपनी ने भारतीय राजनेताओं और सेना के अफसरों को इस सौदे को हासिल करने के लिए भारी रकम दी थी. रेडियो की तरफ से आरोप लगाया गया कि बोफोर्स ने यह ठेका हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों, राजनेताओं और बिचौलियों को भारी रिश्वत दी. इस खुलासे से भारत में सनसनी फैल गई और राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया. यह सौदा लगभग 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था. 

राजीव गांधी की सरकार गिरी

उस समय की राजीव गांधी सरकार के दौरान बोफोर्स के साथ 1,437 करोड़ रुपये के सौदे में रिश्वतखोरी के आरोप लगे थे. रिपोर्ट के बाद यह मामला भारत में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया और विपक्षी पार्टियों ने राजीव गांधी की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, जिससे 1989 में उनकी सरकार गिर गई. हालांकि जांच के दौरान कोई ठोस सबूत नहीं मिले लेकिन राजनीतिक विरोधियों ने इसे राजीव गांधी और उनकी पार्टी के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बनाकर भुनाया. 

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